भरतमुनी का नाट्यशास्त्र आज की पीढ़ी में से कम ने ही पढ़ी होगी। लेकिन शारीरिक भाषा को पढ़ने में एक्सपर्ट एलन पीज ने एक किताब लिखी थी, ‘बॉडी लैंग्वेज’, और संभवतः इसे अधिकांश लोगों ने जरूर पढ़ी होगी। दुनिया के बेस्ट सेलर पुस्तकों में से यह एक पुस्तक है। इस पुस्तक के जरिए एलन पीज ने हाव-भाव के जरिए दूसरों के मन की बातों को पढ़ने की कला से पाठकों को अवगत कराने का प्रयास किया है। कमाल की पुस्तक है।
कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसे देखने के बाद अचानक से मुझे एलन पीज की ‘बॉडी लैंग्वेज’ का ध्यान आ गया। तस्वीर में टेबल की एक तरफ कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और प्रियंका चतुर्वेदी बैठे हैं, तो टेबल की दूसरी तरफ आजतक और इंडिया टुडे को संचालित करने वाले टुडे ग्रुप के मालिक और प्रमुख संपादक अरुणपुरी बैठे हैं। उनके साथ उनके ही ग्रुप के एक संपादक राहुल कंवल बैठे हैं। चारों की बॉडी लैंग्वेज को देखने पर साफ पता चलता है कि रणदीप सुरजेवाला अरुण पुरी को उंगली दिखाकर कोई आदेश दे रहे हैं, अरुण पुरी हथेली को खोले सफाई की मुद्रा में हैं, प्रियंका चतुर्वेदी अपने मोबाइल पर लगी हुई उनकी बातों के प्रति उपेक्षा दर्शाने की कोशिश कर रही है तो राहुल कंवल मुंह पर हाथ रखे रणदीप सुरजेवाला द्वारा अपने बॉस को डांटने की घटना पर असहज भाव से देख रहा है।
चारों जिस टेबल पर बैठे हैं, वहां पांच पानी की बोतल रखी है, सभी के आगे चाय का कप और प्याली पड़ी है और सबका मोबाइल टेबल पर पड़ा है। यानी यह सिचुएशन दर्शाता है कि उनके बीच काफी समय से बातचीत चल रही है। कुछ ऐसी बातचीत है, जिसमें कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला और अरुणपुरी के बीच मतभेद-सी स्थिति है, शायद! रणदीप आदेश देने की मुद्रा में हैं और अरुणपुरी सफाई देने की मुद्रा में! राहुल कंवल की स्थिति यह दर्शाती है कि उन दोनों के बीच बैठक उसी ने फिक्स किया है! और वह रणदीप सुरजेवाला की बातों को समझने का प्रयास कर रहा है। उसके पैर कैंची मुद्रा में हैं, यानी वह सुरजेवाला की बात से सहमत नहीं दिख रहा है, लेकिन अपने बॉस की सफाई से असहज भी है!
केवल एलन पीज के बॉडी लैंग्वेज के विश्लेषण के कारण नहीं, बल्कि डेढ़ दशक से अधिक समय तक पत्रकारिता में रहने के कारण मैं इस सिचुएशन को अच्छे से समझ सकता हूं। अपने किसी वरिष्ठ संपादक या प्रमुख के लिए किसी नेता या अधिकारी से समय लेने की जिम्मेदारी हम रिपोर्टरों की ही होती थी। जब मीटिंग फिक्स हो जाती थी तो हम वहां ऐसे ही बैठे रहते थे, जैसे राहुल कंवल बैठा है।
सवाल उठता है कि एक पार्टी के अध्यक्ष भी नहीं, बल्कि प्रवक्ता से मिलने और उसकी डांट खाने के लिए चैनल का मालिक क्यों गया? या तो कांग्रेस बीट का रिपोर्टर कांग्रेस प्रवक्ता से मिल सकता है या फिर उस चैनल का कोई वरिष्ठ संपादक, जो राहुल कंवल है! लेकिन ग्रुप के प्रमुख संपादक और मालिक का एक प्रवक्ता से मिलना, उस प्रवक्ता का उसे उंगली दिखाकर बात करना और चैनल मालिक का सफाई की मुद्रा में आना, पत्रकारिता के लिहाज से अनुचित व्यवहार की श्रेणी में निश्चित रूप से आएगा ही! इसमें किंतु-परंतु का सवाल ही नहीं उठता है!
क्या अरुण पुरी किसी तरह की डीलिंग के लिए वहां गये थे? या फिर कर्नाटक चुनाव को प्रभावित करने की मंशा लेकर कुछ समझौता करने वहां गये थे? हर चुनाव से पूर्व ‘पेड न्यूज’ पर पूरी मीडिया बीरादरी करीब एक दशक से नंगी हो रही है। अदालत तक यह मसला पहुंचा था। तो कहीं यह कर्नाटक चुनाव को पेड तरीके से प्रभावित करने की कोई योजना तो नहीं थी? आखिर चैनल मालिक एक पार्टी प्रवक्ता से मिलने क्यों जाएगा? और गया भी तो उसके द्वारा उंगली दिखाने पर चुप क्यों रहेगा?
अब संबंधों पर आते हैं। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा और सर्वेसर्वा सोनिया गांधी ने आज तक चार ही संपादकों को अपना साक्षात्कार दिया है, जिसमें से एक अरुणपुरी हैं। हाल ही में इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में अरुणपुरी की चापलूसी भरी बातों को सुनकर सोनिया गांधी खुद झेंप गयी थी! पूरे देश ने उस कार्यक्रम को देखा था और अरुणपुरी की भद्द पिट गयी थी। सोनियाा गांधी की चापलूसी में उन्होंने मोदी सरकार के समय लोकतंत्र तक को खतरा बता डाला था! यह अलग बात है कि उनका चैनल खुलकर मोदी सरकार की आलोचना करता है और यह लोकतंत्र के जीवित होने की निशानी है। लेकिन चूंकि उन्हें सोनिया गांधी की चापलूसी करनी थी तो उन्होंने भारत के लोकतंत्र को ही ‘रेड कारपेट’ बनाकर अपनी भाभी की चरणों में बिछा डाला था!
हाल ही में गुजरात चुनाव संपन्न हुए। आजतक चैनल के अंदर के सूत्र बताते हैं कि इस चुनाव से पूर्व अरुणपुरी की बेटी और चैनल में उनके बाद सर्वेसर्वा कलिपुरी चैनल के वरिष्ठ साथियों के साथ बैठक कर रही थी। बैठक के बीच में उस समय संपादकों में से एक रहे पुण्य प्रसून वाजपेयी ने कलिपुरी से यह सवाल पूछा-‘मोदी कि राहुल?’ सूत्र कहते हैं, कलि मुस्कुराई और कहा-‘राहुल!’ यानी चुनाव में राहुल के लिए न्यूज के जरिए लॉबिंग करनी है, यह कोई भी समझ सकता है! और उसके बाद जिस तरह से आजतक ने खबरें की, उससे भी स्पष्ट हो गया कि टुडेग्रुप के लिए पूर्वग्रहमुक्त खबर से ज्यादा ‘राहुल गांधी’ का महत्व है!
आजतक के जुड़े सूत्र बताते हैं कि गुजरात चुनाव में हार्दिक पटेल के साथ भी अरुणपुरी ने बैठक की थी! आखिर Aaj Tak चैनल का मालिक अरुणपुरी हर चुनाव से पूर्व मोदी सरकार के विरोधियों के साथ गुप्त बैठकें क्यों कर रहा है? कांग्रेस और टुडे ग्रुप के बीच क्या खिचड़ी पक रही है?
यहां जानकारी के लिए यह बता देना भी जरूरी है कि अरुणपुरी और राजीव गांधी साथ ही देहरादून स्कूल में पढ़ते थे। अरुणपुरी दिल्ली की लुटियन मीडिया का हिस्सा इंदिरा गांधी के कार्यकाल से ही हैं और गांधी परिवार के बेहद नजदीकी रहे हैं। 2009-14 में उनकी भाभी सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के समय जब देश में भ्रष्टाचार की लगातार एक के बाद दूसरी खबर सामने आ रही थी तब कोयला घोटाले में फंसे एक बड़े उद्योगपति द्वारा टुडे ग्रुप में 27 फीसदी शेयर खरीदने की चर्चा मीडिया में आम हुआ करती थी!
बाद में इसका खुलासा भी हुआ था कि उस उद्योगपति को कोयला खदान देने का निर्देश पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय को 10 जनपथ से ही मिला था और उस मामले में मनमोहन सिंह से जांच एजेंसी पूछताछ करने वाली थी, लेकिन पूछताछ नहीं हुई। बाद में तो मनमोहन सिंह के प्रेस सलाहकार रहे संजय बारू ने ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ पुस्तक लिखकर यह खुलासा भी किया कि मनमोहन सिंह केवल नाम मात्र के प्रधानमंत्री थे। सारा आदेश तो 10 जनपथ से सोनिया गांधी देती थी!
अरुणपुरी,’आजतक’ व ‘टुडे ग्रुप’ को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर चैनल के मालिक से एक पार्टी का प्रवक्ता बंद कमरे में उंगली दिखाकर बात क्यों कर रहा है? आखिर क्यों अरुणपुरी सफाई देने की मुद्रा में थे? चैनल का एक संपादक जो बाहर तो बड़े-बड़े सवाल करता है, वह बंद कमरे में मुंह पर हाथ रखे क्यों असहाय की मुद्रा में था?
मुद्राएं बहुत कुछ कहती है। भरतमुनी का नाट्शास्त्र हो या एलन पीज का ‘बॉडी लैंग्वेज’, मनुष्य के हाव-भाव से उनके अंदर के मनोभाव को समझने का विज्ञान आम लोगों को समझाती हैं! अरुणपुरी जी आपकी मुद्रा पत्रकारिता के लिहाज से बेहद शर्मनाक है! आपको अपनी इज्जत की भले ही परवाह न हो, लेकिन पत्रकारिता की इज्जत को बरकरार रखने के लिए बता दीजिए कि आखिर एक पार्टी के प्रवक्ता की हैसियत आपको उंगली दिखाने की हुई तो आखिर क्यों हुई? एक पार्टी प्रवक्ता खुद को नंबर वन चैनल कहने वाले ग्रुप के मालिक को उंगली दिखाए तो समझ जाइए कि उस ग्रुप की पत्रकारिता का स्तर कितना गिर चुका है?
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