वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हेमंत शर्मा का व्यंग्य बेदह धारदार, चुटीला और प्रवाहमान होता है। उनकी एक पुस्तक ‘तमाशा मेरे आगे’ में ऐसे ही व्यंग्य भरे पड़े हैं, जिसमें से एक ‘केसन असि करी’ शीर्षक से बालों की सफेदी पर लिखे व्यंग्य को उन्होंने ‘अजीत ने फंसाया, बालों ने बचाया’ नाम से अपने ही साथी पत्रकार अजित अंजुम को माध्यम बनाकर एक खूबसूरत मोड़ दिया है। अजित लिखते हैं, ‘हेमंत मुझे मुल्ला नसिरुद्दीन बनाकर अपनी कहानियां सुनाने का बहाना तलाश लेते हैं।’ बालों की सफेदी पर इससे बेहतर व्यंग्य शायद ही आपने पढ़ा हो। हेमंत शर्मा जी के ही वॉल से साभार इसे पढि़ए और रस लीजिए…
हेमंत शर्मा। एक बार फिर मुश्किल में डाल दिया अजीत अंजुम ने! इस दफ़ा उनके अस्थिर चित्त से उनकी परेशानी कम पर मेरी मुश्किल ज्यादा बढ़ी। वो तो मेरे झक सफ़ेद बालों ने मुझे बचा दिया वरना उनकी चलती तो मैं पिट भी सकता था। हम दोनों थिएटर में एक फ़िल्म देख रहे थे। अजीत मेरे बग़ल में ही बैठे थे। फ़िल्म जब ख़त्म हुई। हाल में रौशनी हुई। हम उठे और निकास की ओर बढ़ने लगे। घंटों बैठ कर फ़िल्म देखने से पॉंव सो गए थे। मैं भी कुछ उनींदा सा था, अजीत आगे आगे चल रहे थे। मैं अजित के कन्धे पर हाथ रख धीरे धीरे हॉल के निकास की ओर सीढ़ियां उतर रहा था। थोड़ी दूर ही चला हूँगा तो मुझे एकदम से झटका लगा। अजीत ने तो पूरी बॉंह की शर्ट पहन रखी थी। मुझे लगा कि जिस कन्धे पर मेरे हाथ हैं वे तो ‘स्लीवलेस’ हैं। मैंने पाया कि मेरा हाथ जिनके कन्धे पर हैं वह कोई भद्र मोहतरमा थी। अजीत अपनी आदत और चपलता के मुताबिक़ न जाने कब सरक गए और मेरा हाथ मोहतरमा के कन्धे पर। मुझे लगा अब तो बवाल तय है। मै अजीत को ढूँढने लगा। वे पाँच सात लोगों के आगे निकल चुके थे। झटके से हाथ खींचा और मोहतरमा से क्षमाप्रार्थी हुआ। मेरे इन्नोसेन्स को बूझती हुई मोहतरमा पूरी विनम्रता के साथ बोली कोई बात नही और मेरी जान में जान आई।
अजीत षड्यन्त्रकारी नही है। इसलिए इसके पीछे उनकी कोई साज़िश हो, यह मैं नही मानता। दरअसल इसके पीछे भी उनकी हडबडाहट, अधीर रहने की आदत, अभी यहां अभी वहां वाली प्रवृत्ति ही थी, जिसका मैं अनजाना शिकार बना। और मुझे बचाया मेरे सफ़ेद बालों ने, जो मेरे प्रति करूणा उत्पन्न करता है। पहली बार मुझे सफ़ेद बालों के फ़ायदे समझ आए। वरना मुझे लगता था कि बीच उम्र में ये सफेद बाल मेरी दुर्दशा करा रहे हैं।
मेरे इन तर्कों से अजीत में भी एक आश्वस्ति का अहसास हुआ। वे कहने लगे दाड़ी तो मेरी भी सब पक गयी है। बल्कि ढूँढ कर उन्होंने अपनी भौ(आई ब्रो) के तीन सफ़ेद बाल भी दिखाए।और कहने लगे अब तो मुझे भी ऐसे अवसर मिलने चाहिए। मैंने कहा सिर्फ़ बालों की सफ़ेदी से ऐसा नहीं होता। आपका परशेप्शन भी ठीक होना चाहिए। एम जे अकबर के तो सारे सफ़ेद है। और ग़ायब भी। फिर चरक कहते है कि भौवो की सफ़ेदी शरीर के दूसरे हिस्सों की शिथिलता की सूचना देते है। वे सोच में पड़ गए।
मैं अपने जिन मित्र के साथ सुबह टहलने जाता हूं। उनके बाल पूरे काले हैं। दो तीन दिन मैं टहलने नहीं जा पाया। पार्क में मिलने वाली एक महिला ने उन मित्र से पूछा “आजकल पिताजी नहीं आ रहे हैं ”। यह सुन मुझे झटका लगा था। बेवक्त की सफेदी ने मेरी दुकान बंद करा दी थी। तब मुझे मध्यकालीन कवि केशवदास की पीड़ा समझ में आई। जब ऐसे ही हादसे का शिकार हो उन्होंने लिखा ‘केशव केसन असि करी जस अरिहु न कराय। चन्द्रवदन मृगलोचनी बाबा कहि-कहि जाय’। यानि केशव दास लिखते हैं कि श्वेत बालों ने मेरी ऐसी हालत कर दी है, जैसा शत्रु भी नही कर सकते। आलम ये है कि चन्द्र जैसे शरीर और हिरणी जैसे नयनो वाली सुंदरी मुझे बाबा कहकर आगे बढ़ जाती है।
मेरे बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं। कुछ उम्र का असर और कुछ अनुवांशिकता से यह विरासत मिली। इन बालों का कालापन बना रहे, मैंने इसके तमाम नुस्खे आजमाए। पर बाल हैं कि मानते नहीं। किसी ने मुझसे कहा नाखून रगड़िए, कुछ की राय थी कि शीर्षासन कीजिए तो बाल काले होगें। मैंने एक रोज शीर्षासन की भी कोशिश की। काफी मशक्कत के बाद सिर के बल खड़ा हो पाया। मेरे कुत्ते को लगा कि मेरा दिमाग कुछ गड़बड़ाया हैं। उसने पूरे घर में बवाल मचा दिया। मुझे काटने को दौड़ा। तबसे मैंने यह कसरत बंद कर दी। नाखून रगड़ना शुरु किया तो कई उगंलियों के नाखून उखड़ गए।
अगर बाबा रामदेव पहले हुए होते तो आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी अपना प्रसिद्ध निबन्ध ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ नहीं लिख पाते। बाल काले करने के लिए बाबा रामदेव ने समूचे राष्ट्र से जो नाखून रगड़वाए हैं। उससे कइयो के नाखून उखड़ गए। वे अब बढ़ते ही नहीं। तो आचार्य द्विवेदी लिखते क्या? पागलपन की हद तक लोग मुझे पार्को में नाखून रगड़ते मिलते हैं। नाखून के नीचे जो ग्रन्थियां और नसें हैं। उनका सम्बन्ध बालों से है। इसलिए नाखून रगड़ कर बाल काला करने का चौतरफा उन्माद आजकल समाज में है। सुबह जिन पार्कों से गुजरता हूं। उसमें नाखून रगड़ने में लगे लोगों की एकाग्रता देख, मुझे समझ में आने लगा कि इस देश में गणेश जी क्यों दूध पीते हैं? और हम इतने वर्षों तक ग़ुलाम क्यो रहे।
सफेद बालों को लेकर उठे तमाम झंझावतों के बीच इन दिनों अनूप जलोटा एक नई मुसीबत बनकर आ गए। मेरे 25 साल पुराने मित्र गुप्ता जी के पास मुझे ताने मारने का नया हथियार आ गया। गुप्ता जी एक रोज़ अचानक बदले बदले नज़र आए। सर पर सफेद कबूतरों के रैन बसेरे की जगह धनबाद की कोल माइंस का लाइसेंस चस्पा था। पूरा काला सफेद हो चुका था। जैसे नोटबंदी के बाद हुआ कि रातों रात काला सफ़ेद हो गया। मैं उन्हें देखकर दंग रह गया। पूछने पर उन्होने बताया कि अनूप जलोटा ने अपनी ताज़ा ‘उपलब्धि’ के दम पर उनके भीतर जीने की नई आस भर दी है। 65 की उम्र में क्या काले बाल हैं! क्या हेयर स्टाइल है!! वे बात बात में अपनी बेसुरी आवाज़ में गाइड फ़िल्म का सीडी प्लेयर ऑन कर देते- “आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का….।”
गुप्ता जी मेरे जवानी वाली सफेदी के साथी थे। उन्हें देख देखकर मुझे हिम्मत मिलती रही थी। उनके होते हुए मैंने कभी भी अलग-थलग होने का एहसास नही किया। पर अनूप जलोटा से मेरा ये सुख भी न देखा गया। पता नही, श्याम पिया ने चुनरिया रंगने की उनकी गुहार सुनी कि नही, पर उनकी प्रेरणा से गुप्ता जी के समूचे बाल ज़रूर रंग गए। गुप्ता जी अब मुझ पर भी बाल रंगवाने का दबाव डालते हैं। खुद को 25 साल का नौजवान बताते हैं। अक्सर ही महिलाओं के कॉलेज, बुटीक और ब्यूटी पार्लर के बाहर स्कूटर खड़ाकर न जाने क्या सोचते पाए जाते हैं। मुझे उनकी बड़ी फिक्र रहती है। वो तो गनीमत है कि यूपी सरकार का एंटी रोमियो दस्ता आजकल रोमियो की धर पकड़ छोड़कर बाकी सभी कुछ कर रहा है, वरना 55 की उम्र में गुप्ता जी की धुनाई का समाचार मुझे बहुत व्यथित कर जाता।
बालों में सफेदी इस बात की सूचना है कि अब आप अपनी दुकान समेटिए। आपके समाचार समाप्त हो रहे हैं। आप राम भजन में लगें। लेकिन मैं क्या करुं मेरे पास कुदरत की यह खबर तो उम्र के पच्चीसवें बरस में ही आ गयी थी। जबकि इन बालों की सेवा में मैंने कुछ उठा नहीं रखा। सालों इन्हे सिर पर ढोता रहा। मेरी खोपड़ी में अगर कुछ था तो उसे इन बालों ने खूब चूसा। हजारों शीशी तेल पी गए। कई देशों के शैम्पू लगाए। फिर भी धोखा। मेरे एक चचा थे। उन्होंने सफेद बाल उखड़वाने के लिए बाकायदा एक आदमी रखा था। मैं अगर यह करूं तो गंजा हो जाऊंगा। मुझे इस बात से संतोष है की संसद के उच्चसदन राज्यसभा के 76 प्रतिशत लोगों के बाल सफेद हैं। शायद धूप में नहीं पके हैं।
पर क्या जवानी सिर्फ काले बालों का नाम है? ऋषि ययाति हों या च्यवन, नारायण दत्त तिवारी हो या वी.एस. येदियुरप्पा या फिर कल्याण सिंह इन सभी लोगों ने इस तथ्य को नकार दिया है। दूसरी तरफ काले बालों वाले भी जीवन से लाचार, बुद्धि से पैदल और शरीर से अशक्त दिखायी पड़ते हैं। यह पुरानी बात है जब काला बाल यौवन का और सफेद बाल बुढापे का चिन्ह माना जाता था। कुछ के बाल सफेद हो जाते है पर दिल काला ही रहता है। रामकथा गवाह है कि सिर्फ एक सफेद बाल ने इतिहास की धारा बदल दी। एक रोज राजा दशरथ को कान के पास सिर्फ एक बाल सफेद दिखा था। दशरथ ने राजपाट छोड़ने का एलान कर दिया। फौरन राम और भरत की किस्मत बदल गयी। लक्ष्मण जरुर गेंहू के साथ घुन की तरह पिसे। तुलसीदास लिखते हैं। “श्रवण समीप भये सित केसा”। पर अब यह सुनने समझने को कौन तैयार है। कुछ लौह पुरुष तो उम्र के 90 वें साल में भी सत्ता की दौड़ में बने रहने को व्याकुल हैं।
जीवन की सच्चाई को नकार चिर युवा बने रहने की ललक बड़ी दुर्दशा कराती है। मेरे एक मित्र हैं। जब एक दफा घर लौट जाएं तो आप उनसे दुबारा मिल नहीं सकते। वे अपने को ‘डिसमेन्टल’ कर लेते हैं। सफेद बालों को छुपाने वाला ‘विग’ उतार खूंटी पर टांगते हैं। नकली दांत निकाल डिब्बे में रखते हैं। आंखों से लेंस उतारते हैं। कान से मशीन निकालते हैं। पर क्या मजाल कि वे बुढ़ापे की आहट सुनने को तैयार हों। उनकी पत्नी भी शनिवार तक बूढ़ी दिखती है और सोमवार को जवान हो जाती हैं। इतवार उनके रंगाई-पुताई का दिन होता है।
सफेद बालों को काला करने में लगे हुए देश के लाखों लोगों की जिजीविषा भी गजब की है। नोटबन्दी में तमाम काम धंधे वालों ने मार्केट डाउन होने की शिकायत की मगर ख़ुदा हिसाब करे अगर बाल डाई करने वालों के माथे पर ज़रा भी शिकन आई हो।नोटबन्दी की धूप में चमकते सफेद बालों पर खिजाब की बरसात हमेशा तय समय पर होती रही। नोटबन्दी के सवाल पर दिन रात सरकार को घेरने की रणनीति बनाते नेताओं ने भी एक भी काले बाल सफेद नही दिखने दिए। उधर नोटबन्दी को जायज़ ठहराने वाले नेता भी पीछे नही रहे। जितना ध्यान नोटबन्दी के विरोधियों को काले धन से जोड़ने में दिया, उतने ही समर्पण से अपने काले बालों को भी मेंटेन रखे रहे। नोटबन्दी के दौरान की घोर कडुवाहट के बीच भी डाई की दुकानें पक्ष-विपक्ष के नेताओं के बीच पुल का काम करती रहीं। दिन भर टीवी चैनलों पर एक दूसरे का जमकर काला-सफेद करने वाले ये नेता शाम होते होते डाई की दुकानों पर साथ पाए जाते। फिर कुछ भी सफेद न रहता। दोनो ओर सब काला काला हो जाता।
अपने यहां सफेद बालों का बाजार चाहे जितना खराब हो। पर पश्चिम में ‘ग्रे हेयर’ की बड़ी प्रतिष्ठा है। वहां इसे परिपक्वता की निशानी मानते हैं। हालांकि हमारे समाज में सिर्फ पके बालों को ज्ञान की गारन्टी नहीं माना जाता। कबीर भी कहते हैं “सिर के केस उज्जल भये, अबहूं निपट अजान”। मनुस्मृति में मनु भी कहते हैं। “न तेन वृद्धो भवति वेनास्य पलितं शिर”। सिर्फ बाल सफेद हो जाने से कोई ज्ञानी नहीं हो जाता। पत्रकारिता में ‘ग्रे हेयर’ के फायदे हैं। आजकल कुछ आधुनिकाएं जरूर इसे ‘साल्ट एंड पेपर स्टाइल’ कहती हैं। ‘ग्रे हेयर’ नया आकर्षण है। ‘साल्ट एंड पेपर’ फिर से चलन में आ रहा है। अजीत और मैं अब इसी उम्मीद में जी रहे हैं।अपने सफेद बालों और दाढ़ी के साथ।
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