पुस्तक का नाम: ए नेवर एंडिंग कॉन्फ्लिक्ट: एपिसोड्स फ्रॉम इंडिक रेसिस्टेन्स
लेखक: अमित अग्रवाल
प्रकाशक: गरुड़ प्रकाशन
पृष्ठ: 428
मूल्य: 599 (प्रिंट)
ट्वीट की गति से चलने वाले इस युग में पिछले कुछ वर्षों से इतिहास लेखन के क्षेत्र में बहुत से सुधीजनों ने कदम रखा है। जिसके कारण एक मिथक तो जरूर टूटा है कि इतिहास लेखन का कार्य या फिर इतिहास पर शोध का कार्य केवल वही लोग कर सकतें हैं जिनके पास इतिहास विषय में डिग्रियां हों। इसके पीछे का कारण कदाचित यह ही होगा कि भारत में जिन लोगों के लिखे इतिहास को पढ़ाया गया है अथवा पढ़ाया जा रहा है वो हिस्टोरियन कम डिस्टोरियन अधिक निकले। इन तथाकथित इतिहासकारों ने भारत के इतिहास के साथ बहुत बड़ा छल किया है, और ये बात आज अच्छी तरह से सिद्ध हो चुकी है। इतिहास लेखन और शोध के स्वतंत्र प्रयास आज ज्यादा ख्याति प्राप्त कर रहे हैं ऐसा लिखने में मुझे कोई दुविधा नहीं है।
लेखक अमित अग्रवाल भी ऐसे ही एक स्वतंत्र लेखक और इतिहास के साधक हैं। आईआईटी रुड़की से पढ़े अमित की पृष्ठभूमि इतिहास विषय की नहीं है। लेकिन ये इतिहास पर अंग्रेजी भाषा में दो पुस्तकें लिख चुके हैं और दोनों पुस्तकें भारत के सुप्रसिद्ध प्रकाशन गरुड़ प्रकाशन से प्रकाशित हुईं है। इनकी प्रथम पुस्तक ‘स्विफ्ट हॉर्सेज शार्प स्वोर्ड्स’ पहले ही पाठकों पर अपनी छाप छोड़ चुकी है। इस पुस्तक पर आधारित टॉक्स मैंने भी देखे हैं। अब लेखक अमित अग्रवाल की दूसरी पुस्तक आयी है जिसका शीर्षक है ‘ए नेवर एंडिंग कॉन्फ्लिक्ट: एपिसोड्स फ्रॉम इंडिक रेसिस्टेन्स’, (A Never-Ending Conflict: Episodes from Indic Resistance) जिसकी समीक्षा लिखने का प्रयास मैं कर रहा हूँ।
सामान्य पुस्तकों की तुलना में आकार में थोड़ी बड़ी 428 पृष्ठों की इस पुस्तक में मुख्यतः 6 अध्याय हैं। अध्यायों में अनेक जगह चित्र, आंकड़ों को लेकर सारणियाँ और विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण लेखक ने कुछ जगह ग्राफ आदि का उपयोग भी किया है। जो इतिहास पुस्तकों में शायद ही देखने को मिलते हैं। इस पुस्तक की विषयवस्तु को प्रामाणिक बनाने के लिए हर अध्याय के लिए सन्दर्भ सूची भी है ।
पुस्तक का प्राक्कथन भारत के सुप्रसिद्ध लेखक और टीवी डिबेट्स की चर्चित हस्ती श्री रतन शारदा ने लिखा है। ‘एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति’ ध्येय वाक्य के आधार पर लिखा गया प्राक्क्थन इस पुस्तक की प्रासांगिकता को सहजता से बताता है। पुस्तक के प्रीफेस में लिखी पंक्ति,”यदि आपने इतिहास से सीख न ली, तो आप इतिहास बन जाओगे’ अपने आप में इस पुस्तक को पढ़ने के लिए प्रेरित करने वाला उत्प्रेरक जैसा है। प्रीफेस में स्वयं लेखक स्वीकार कर रहे हैं कि ये इतिहासकारों के हिसाब से स्कॉलरली कार्य नहीं है। मुझे लगता है लेखक कि पंक्ति डिस्टोरियन लोगों के लिए एक तंज है। जिन्होंने इतिहास के नाम पर गुलामी के अजेंडे को आगे बढ़ाया और माल कमाया।
पुस्तक के पहले अध्याय में अलेक्जैंडर (सिकंदर) का नागा साधुओं के साथ संवाद का चित्रण किया गया है। सच कहूं तो मुझे ये सब पता न था। इतिहास में हिन्दू धर्म का ध्वज शीर्ष पर उठाकर चलने वाले नागा साधुओं ने क्या क्या पराक्रम किये होंगे यह जानने की इच्छा अब प्रबल होती जा रही है क्योंकि कुछ दिन पहले लिखी एक पुस्तक की समीक्षा में मैंने नागा साधुओं द्वारा मुग़ल लुटेरों का बैंड बजाने की घटना के बारे में संकेत किया था। अब इस पुस्तक में नागा साधुओं का सिंकंदर के साथ संवाद देख रहा हूँ। नागा साधुओं के बारे में अब ऐतिहासिक दृष्टि से जानना अपरिहार्य हो गया है। इस अध्याय में केवल संवाद ही नहीं है बल्कि यह भी बताया गया है कि सिकंदर कोई महान वहान नहीं था। डिस्टोरियनों ने उसे महान बनाया था, मेरे लिए अलेक्जैंडर दी ग्रेट नहीं है बल्कि अलेक्जैंडर दी माउस है। ये शब्द मेरे एक मित्र के हैं। और मैं भी उनसे सहमत हूँ। इसलिए लेखक अमित अग्रवाल को साधुवाद।
पुस्तक का दूसरा अध्याय विराट विजयनगर साम्राज्य को लेकर है। यह अध्याय पाठक को विजयनगर के मूल, उत्थान आदि के बारे में तो बताएगा ही साथ में बुक्का प्रथम के पुत्र कुमार कम्पना द्वारा मदुरई की विजय और उसके बाद के घटनाक्रम और दक्षिण सल्तनत का जन्म कैसे हुआ इस पर भी विस्तार से बताएगा। पुर्तगालियों के उत्थान की कहानी के साथ साथ रायचूर की लड़ाई के बारे में भारतीय मानसिकता के साथ इस अध्याय में लेखक ने लिखा है। पाठक को इस अध्याय में हम्पी के बारे में विशेष रूप से जानने को मिलेगा।
अगला अध्याय पूर्वोत्तर भारत और आसाम के नायक लाचित बरफुकन को लेकर है। लाचित बरफुकन को डिस्टोरियनों ने इतिहास से लगभग गायब ही कर दिया था। इस अध्याय में आसाम का पौराणिक उद्गम साथ में मध्यकालीन आसाम पर भी प्रकाश डाला गया है। अहोम राजाओं ने मुगलों की बैंड किस तरह बजाई थी इस अध्याय में पाठक विस्तृत रूप से जान सकेंगे। इस अध्याय में पाठक को ऐतिहासिक दिव्य शक्ति पीठ माँ कामाख्या देवी मदिर के बारे में भी जानकारी मिलेगी। इस अध्याय में मुगलों और अहोम राजाओं के मध्य लड़ी गई ग्यारह लड़ाईयों का विस्तृत वर्णन है और लाचित बरफुकन के पराक्रम का विवरण भी है।
पुस्तक का चौथा अध्याय ‘द लेजेंड ऑफ़ कोहिनूर’ इस पुस्तक का छुपा हुआ मणि है। जो भारत के कोहिनूर हीरे की कहानी बहुत विस्तार से बताता है और उसका उद्गम महाभारत काल में बताता है। साथ ही यह अध्याय यह संकेत भी करता है कि जिस किसी पुरुष ने इसको धारण किया उसका बंटाधार ही हुआ है। इस अध्याय के बारे में अधिक नहीं लिखा रहा हूँ, पाठक जब ये अध्याय पढ़ेंगे तब ये बात समझ जाएंगे कि मैं ऐसा क्यों लिखा रहा हूँ।
पाचंवा अध्याय बहुत छोटा है जिसमें जलियांवाला नरसंहार की ही तरह उड़ीसा के एक गुमनाम स्थान एरम नरसंहार का इतिहास है। पुस्तक का अंतिम अध्याय भारत विभाजन की जड़ें ख़िलाफ़त आंदोलन में ढूढंता है। ये एक लंबा अध्याय है जिसमें ख़िलाफ़त आंदोलन के क्या दुष्परिणाम हुए उनका विस्तृत विवरण दिया गया है। मुझे लगता है इस अध्याय में बहुत कुछ ऐसा लिखा गया है जिसकों पढ़ने के लिए पाठक को कई पुस्तकें छाननी पड़ेंगी। बेहतर होगा ये अध्याय पढ़ा जाए।
इस पुस्तक के माध्यम से लेखक अमित अग्रवाल बता रहे हैं कि भारत की सभ्यता और संस्कृति के साथ जो भारत को मिटाने की मानसिकता वाले हिंसक मत पंथ है उनका संघर्ष अंतहीन है, जो ईसा पूर्व 326 सिकंदर के आक्रमण से शुरू होकर आज तक चल रहा है। पुस्तक के उपसंहार में लिखी निम्नलिखित पंक्तियाँ इस पुस्तक को पढ़ने के लिए प्रेरित करेंगी:
किसी ने पूछा
युद्ध और बुद्ध तो दो विपरीत ध्रुव हैं!!
मुस्कुराते हुए विराथू ने कहा:
युद्ध न हुआ तो बुद्ध मारा जाएगा!!
इस पुस्तक को निम्न लिंक से खरीदा जा सकता है:
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