हिन्द युग्म द्वारा प्रकाशित सौरभ कुदेशिया रचित महाभारत आधारित पौराणिक शृंखला की दो पुस्तकें (खंड 1: आह्वान और खंड 2: स्तुति) 2020 में रिलीज होने के बाद से पाठकों को इसके तीसरे भाग ‘खंड 3: आहुति’ की प्रतीक्षा थी। खंड 3: आहुति की कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ खंड 2: स्तुति में छोडी गयी थी। वसीयत के रहस्य खोलने की कोशिश में हर साँस के लिए लड़ता जयंत का सामना जब अपने जीवन के सबसे विचित्र प्रतिद्वंद्वी से होता है तो शुरुआती अध्याय साँस रोके पढ़ते हुए निकल जाते हैं।
उसके बाद शुरू होता है परत दर परत उन रहस्यों का उधड़ना जो ‘खंड 1: आह्वान’ और ‘खंड 2: स्तुति’ पढ़ने के बाद से पाठकों के दिलों-दिमाग पर हावी थे। एक तरफ डॉ. स्वामी और डॉ. महापात्रा की कारगुजारियों से पर्दा उठता है, दूसरी तरफ रोहन की वसीयत के नए आयाम खुलते हुए कहानी नए मोड़ पर लाकर खड़ा करते हैं। वसीयत के सच का पीछा करते श्रीमंत परिवार और जयंत की कशमकश और बेचैनी जब उभरती है तो पाठक उसका हिस्सा बन जाते हैं।
महाभारत से जुड़े अध्याय आने तक कहानी पूरी तरह पाठकों पर हावी हो जाती है। मौनपर्व के हर अध्याय में महाभारत में वर्णित घटनाओं और उनके पात्रों के बारे में कई सवाल उठते हैं। कई सवाल तर्क और वितर्क में इतने उलझे हैं कि शक होने लगता है कि ‘आहुति’ वाकई एक कहानी है, या इतिहास का हिस्सा। कहानी पढ़ते हुए इतिहास कब सच और कल्पना की ओट से झाँकता है और कब छुप जाता है समझ ही नहीं पड़ता। लेखक की तारीफ करनी होगी जो उसने पंच तत्त्वों से जुड़ी एक अनोखी परियोजना की परिकल्पना कर उसे इतने सरल शब्दों में प्रस्तुत किया है। कई अध्याय ऐसे लिखे गए हैं, जो दोबारा पढ़ने पर इतिहास और कहानी के अलग मायने प्रस्तुत करते हैं।
एक रिसर्च की भांति लिखे गए इस शृंखला की सभी भागों में कथा हावी है। हर पात्र रहस्यमय, हर शब्द में एक संपूर्ण कहानी छिपी लगती है। प्रत्येक किरदार अपने बिखरे हुए टुकड़ों को जोड़ते हुए खुद को पूर्ण करने के लिए जूझ रहा है। टुकड़ों में खुलता उनका व्यक्तित्व उनके बारे में एक डरावनी उत्सुकता पैदा करता है। कहानी के हर कदम पर उनकी चिंता होती है। डर लगता है कि जाने आगे उनके साथ क्या होने वाला है। कसी कथा के मधुर और दिलचस्प प्रवाह के चलते हर प्रसंग, हर संवाद जीवंत लगता है। बखूबी पिरोई घटनाओं का तालमेल दिमाग पर अमिट छाप छोड़ता है।
‘आह्वान’ और ‘स्तुति’ पढ़ने के बाद जो उम्मीदें इस शृंखला से जागी थी, ‘आहुति’ उन सब पर खरी उतरते हुए ‘खंड 4 : अग्निहोत्र’ से जुड़ी उम्मीदें को कई गुना बढ़ाती है। लेखक ने कहानी और लेखनी पर तगड़ी मेहनत की है, किन्तु प्रमोशन की कमी के कारण पाठकों का एक बड़ा वर्ग अभी भी इस अद्भुत शृंखला से वंचित है। आज जब हर प्रोडक्ट, हर किताब प्रमोशन की मोहताज है, इस शृंखला में बेस्टसेलर होने की भरपूर क्षमता होने और पाठकों का समर्थन मिलने के बाद भी इसके बारे में हिन्द युग्म की उदासीनता हैरान करती है। यदि हिन्द युग्म अपने नए डार्क हॉर्स की तलाश में है, तो इस श्रृंखला के रूप में उसके पास एक सुनहरा अवसर है।
‘खंड 1: आह्वान’ और ‘खंड 2: स्तुति’ के बाद पाठकों को एक और बेहतरीन पुस्तक देने के लिए सौरभ जी का धन्यवाद ‘खंड 3: आहुति’ के बाद अब ‘खंड 4: अग्निहोत्र’ की बेसब्री से प्रतीक्षा है। उम्मीद है कि हिन्द युग्म इस बार पाठकों को लंबा इंतजार नहीं करवाएगा।