तुम योगी हो योग निभाओ , अपने गुरु का ऋण लौटाओ ;
अब्बासी-हिंदू है धर्मविरोधी , उसके फंदे में मत आओ ।
धर्म तुम्हारी राह तक रहा , उसी राह पर वापस आओ ;
धर्म में जीना धर्म में मरना , परमश्रेष्ठ ये जीवन पाओ ।
सत्ता का उद्देश्य यही है , धर्म का शासन लाना है ;
जरा भी इससे नहीं है डिगना , इसमें खरा उतरना है ।
सदियों से अत्याचार हो रहे , भारत की इस धरती पर ;
धर्म के दुश्मन म्लैच्छ-यवन हैं , यही भार हैं धरती पर ।
धर्म का शासन हमको लाना , गुंडाराज मिटाना है ;
एक नजर से सबको देखो , जंगलराज हटाना है ।
जस का तस कानून हो लागू , पक्षपात बिल्कुल न हो ;
भ्रष्टाचार है सबकी जड़ में , इससे समझौता कतई न हो ।
ज्यादातर नेता व अफसर महाभ्रष्ट गुंडों के यार ;
ज्यादातर ऐसी सरकारें , धर्मविरोधी व मक्कार ।
नई सुबह तुम लेकर आये , आशा का संचार जगाये ;
इसी में आगे बढ़ते जाना , देखो कदम न पीछे आये ।
तुम पर किया भरोसा जिनने , उसे टूटने मत देना ;
चाहे कुछ भी हो जाये , अब मंदिर नहीं टूटने देना ।
अब्बासी-हिंदू की चाल यही है , काशी को बैंकॉक बनाये ;
धर्मभ्रष्ट हिंदू को करके , अब्राहमिक-एजेंडा ले लाये ।
जागो हिंदू ! अब तो जागो , योगी को मजबूती दो ;
अब्बासी-हिंदू है धर्म का दुश्मन , उसको देश-निकाला दो ।
“हिंदू का ब्रह्मास्त्र” है “नोटा”, अब्बासी-हिंदू जीत न पाये ;
हर चुनाव में उसे हराओ , “हिंदू-धर्म” केंद्र में आये ।
केंद्र बिंदु हो “धर्म-सनातन” , केसरिया ध्वज को लहराओ ;
कट्टर-हिंदू सरकार बनाकर , देश को “हिंदू-राष्ट्र” बनाओ ।
“हिंदू-युवा-वाहिनी” जागृत हो , घर-घर में ये दीप जले ;
आशा का संचार उदय हो , हिंदू-मन में फूल खिले ।
हर दबाव से बाहर निकलो , तुम्हें गुरु का आशीर्वाद ;
सत्यमेव – जयते ही होगा , बस ले आओ हिंदू-वाद ।
धर्म-सनातन की शक्ति से , हर मुश्किल का करो सामना ;
अंधकार सब छंट जायेंगे , धर्मदंड मजबूत बनाना ।
दृढ़ता से सब करो फैसले , कोई ढुलमुल – नीति न हो ;
गोरक्षपीठ के अनुयायी हो , सदा धर्म की जीत ही हो ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”, रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”