आयुर्वेद (आयुः + वेद = आयुर्वेद) विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है। यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। ‘आयुर्वेद’ नाम का अर्थ है, ‘जीवन से सम्बन्धित ज्ञान’। आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है। आयुर्विज्ञान यानि कि विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने अथवा उसका शमन करने तथा आयु बढ़ाने से है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को एलोपैथी (Allo = अन्य तथा pathy = पद्धति, विधि) कहते हैं। यह नाम होम्योपैथी के जन्मदाता सैमुएल हैनीमेन ने दिया था जिनका यह नाम देने का आशय यह था कि प्रचलित चिकित्सा-पद्धति (अर्थात एलोपैथी) रोग के लक्षण के बजाय अन्य चीज की दवा करता है। उस समय एलोपैथी से संबोधित होना हीन भावना का प्रतीक था। लोग स्वयं को एलोपैथ कहलाने में अपमानित महसूस करते थे। किसको पता था कि अपमानित करने वाला यह शब्द एक दिन समूचे विश्व पर शासन करेगा और एलोपैथ कहलाने पर लोग गौरवान्वित महसूस करेंगे।
यह विडंबना है कि एलोपैथी किसी भी बीमारी का इलाज नहीं करती फिर भी स्वास्थ्य की सर्वोत्तम प्रणाली कहलाती है। एलोपैथी महज़ लक्षण कंट्रोल करती है और साइड इफ़ेक्ट के रूप में शरीर को छति पहुँचाती है। एलोपैथी में लक्षण कंट्रोल करने के लिये ड्रग्स का प्रयोग किया जाता है और इनकी विशेषता यह है कि यदि ये ड्रग्स किसी स्वस्थ व्यक्ति को दिये जायें तो कुछ समय बाद स्वस्थ व्यक्ति वही लक्षण दिखाने लगेगा जो मरीज़ बिना एलोपैथी की दवा के दिखलाता है। जिसका तात्पर्य यह है कि एलोपैथी में प्रयोग होने वाले ड्रग्स बीमारियों को जन्म देते हैं। अत: एलोपैथी की दवायें लक्षण कंट्रोल के लिये उस समय तक लें जब तक लक्षण असहनीय हो और शीघ्र किसी अन्य पद्धति को अपनायें जो आपकी बीमारी का सही इलाज कर सके। बहुत से लोग इन दवाओं को लगातार जीवन भर प्रसाद समझ कर खाते रहते हैं जिससे शरीर में अन्य बीमारियाँ हो जाती हैं। वास्तविकता तो यह है कि एलोपैथी में प्रयोग होने वाले ड्रग्स ज़हर हैं दवा नहीं, अत: इन्हें ड्रग्स ही कहा जाना चाहिये ना कि दवा। एक तरफ़ हम समाज में ड्रग्स पर रोक लगाते हैं और दूसरी तरफ़ ड्रग्स बाँटते हैं !
कहते हैं कि लोहा ही लोहे को काटता है। एक समय पर इनफ़ेक्शन (चेचक, हैज़ा, प्लेग) ने एलोपैथी को शिखर पर चढ़ाया था और आज वही इनफ़ेक्शन कोरोना के रूप में डाउनफॉल का कारण बनने जा रहा है। एच आई वी तथा कोरोना इनफ़ेक्शन के अलावा असंख्य बीमारियाँ हैं जिनका एलोपैथी में कोई निदान नहीं है। एलोपैथी अपने जन्म से ही लोगों को गुमराह करती रही है। परन्तु अब लोगों को समझ आ रहा कि स्वयं को साइन्टिफिकली प्रूवेन और दूसरों को सूडोसाइन्स कहने वाली यह मॉडर्न स्वास्थ्य पद्धति पूरी तरह से अनसाइन्टिफिक है। प्रकृति ही विज्ञान है और वैज्ञानिकों ने विज्ञान की खोज प्रकृति से ही की है क्योंकि आज जो भी विज्ञान में प्रमाणित है उसका प्रकृति में साक्ष्य है। एलोपैथी पूरी तरह से प्रकृति विरोधी है और इसके कोई भी साक्ष्य प्रकृति में नहीं मिलते-
(1) दवा के रूप में ड्रग्स का प्रयोग प्राकृतिक रूप से मानव शरीर के लिये हानिकारक है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर बनाता है।
(2) स्टेरॉयेड के प्रयोग से तात्कालिक लाभ तो मिलता है पर इसके प्रभाव से ब्रेन की क्रिया बाधित होती है जो बहुत ही हानिकारक है।
(3) इम्यूनोसप्रेसेन्ट के प्रयोग से इम्यूनिटी निष्क्रिय होती है जिसके कारण शरीर सदैव अस्वस्थ बना रहता है।
(4) कीमोथिरैपी में शरीर को विष दिया जाता है जो पूरी तरह अप्राकृतिक है। रेडियेशन के ज़रिये सेल को जलाया जाता है जो प्राकृतिक नहीं है।
(5) सभी प्रकार के साइकोलॉजिकल एवं न्यूरो संबंधित समस्याओं में सेडेटिव दिये जाते हैं जो ब्रेन को शिथिल करते हैं। यह भी अप्राकृतिक है।
(6) प्रतिरोधक क्षमता को दबाकर ऑर्गन ट्रॉंसप्लॉन्ट भी पूरी तरह अप्राकृतिक है।
समझ नहीं आता कि पूरी तरह से अप्राकृतिक होते हुये भी एलोपैथी किन तथ्यों पर स्वयं को साइन्टिफिकली प्रूवेन कहती है ? वास्तविकता यह है कि एलोपैथी सिर्फ़ प्रोपोगैन्डा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना का इलाज और भारत का हाई रिकवरी रेट है। आजतक कोरोना की कोई दवा नहीं बनी, कोई थिरैपी कारगर नहीं है, वैक्सीन ना ही बना है और नाही बन पायेगा फिर भी अस्पतालों में कोरोना का काफ़ी मंहगा इलाज हो रहा है और रिकवरी रेट भी बहुत हाई है। यही नहीं बाक़ी अन्य कारगर पद्धतियों को बदनाम करने के साथ शमन का कार्यक्रम भी जारी है। मानवता के लिये यह बहुत बड़ा अभिशाप है।
दूसरी ओर आयुर्वेद नाम और काम दोनों में पूर्णरूपेण प्राकृतिक है और प्रकृति के नियमों का पालन करती है, अत: पूरी तरह से साइन्टिफिकली प्रूवेन है। आयुर्वेद में कोरोना की रोकथाम तथा इलाज दोनों मौजूद हैं और यही कारण है कि भारत का रिकवरी रेट हाई है। एलोपैथी के दबाव में सरकारी व्यवधान से आयुर्वेद तथा अन्य भारतीय स्वास्थ्य पद्धतियों को कोरोना की रोकथाम और इलाज करने का मौक़ा ही नहीं दिया गया। जिन्होंने कुछ किया भी तो उन्हें दबा दिया गया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज स्वदेशी पद्धतियों को दरकिनार कर सरकार सिर्फ़ एलोपैथी को बढ़ावा दे रही है।
कमान्डर नरेश कुमार मिश्रा
फाउन्डर ज़ायरोपैथी
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