
Movie Review’बिहार डायरीज’ पर आधारित खाकी – द बिहार चैप्टर ने शो लूट लिया
विपुल रेगे। नीरज पांडे की नई वेब सीरीज ‘खाकी – द बिहार चैप्टर वन ओटीटी के नेटफ्लिक्स प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो गई है। सात एपिसोड्स की ये वेब सीरीज सत्रह वर्ष पूर्व के असंगठित अपराधयुक्त बिहार को निर्माता-निर्देशक नीरज पांडे के दृष्टिकोण से देखती है। इस वेब सीरीज का निर्देशन नीरज के सहायक भव धुलिया ने किया है। फिल्म का कथानक प्रसिद्ध आईपीएस अमित लोढ़ा द्वारा लिखी किताब ‘बिहार डायरीज’ पर आधारित है। उस समय के कुख्यात गैंगस्टर अशोक महतो गैंग और अमित लोढ़ा के बीच का संघर्ष बड़े रोचक ढंग से दिखाया गया है।
निर्माता-निर्देशक नीरज पांडे का सिनेमा देखना एक ख़ास अनुभव होता है। उनकी फ़िल्में वास्तविक कथाओं पर आधारित होती हैं या वास्तविकता का पुट लिए हुए रहती है। पिछले कुछ वर्षों में नीरज पांडे सिनेमा का एक विशेष वर्ग तैयार हो गया है। ये दर्शक वर्ग उनकी फिल्मों का बेसब्री से इंतज़ार करता है। इस बार भी उन्होंने दर्शकों की अपेक्षाओं को पूरा किया है। सात एपिसोड्स की ये वेब सीरीज कैची है और रोमांचित करती है।
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बिहार डायरीज के पन्नों को निर्देशक भव धुलिया ने इंट्रेस्टिंग ढंग से प्रस्तुत किया है। हर एपिसोड का एक अलग शीर्षक है। ‘पात्र परिचय, चंदनवा का जन्म, अमित कौन, मुंह दिखाई, मीताजी की लव स्टोरी, मीताजी की लव स्टोरी-2 और फेस टू फेस के जरिये संपूर्ण कथा दिखाई गई है। ये कहानी उन दिनों की है, जब बिहार का अपराध जगत तकनीक को अपनाने लगा था। जातिवादी समूहों में बंटकर गैंगवार होने लगे थे।
अगड़ी और पिछड़ी राजनीति चरम पर थी। ऐसे में बिहार की धरती से एक नया नाम उभरता है ‘चंदन महतो। चंदन एक खूंखार हत्यारा है। वह जेल तोड़कर भागता है और गिरोह बनाता है। अपनी जाति के लोगों को भड़काकर, उनका इस्तेमाल कर वह और भी ताकतवर हो जाता है। एक दिन चंदन का गिरोह एक सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देता है।
इसके बाद पनिशमेंट पोस्टिंग पर भेजे गए एक पुलिस अधिकारी अमित लोढ़ा को शेखपुरा एसपी बनाकर भेजा जाता है। यहाँ अमित लोढ़ा और चंदन के बीच लुकाछुपी का खेल चलता है। फिल्म का हर एपिसोड शानदार ढंग से कथा को सिलसिलेवार ढंग से आगे बढ़ाता है। नीरज पांडे की ये वेबसीरीज बिना लाग-लपेट उस समय के बिहार और लचर सिस्टम को जस का तस प्रस्तुत करती है।
आज भी बिहार कुछ अधिक नहीं बदला है, वहां की टूटी सड़कों, स्वयं के विकास की राजनीति और अपराधीकरण ने उसे कभी बदलने ही नहीं दिया। कलाकारों में अमित लोढ़ा की भूमिका करण टेकर ने प्रभावशाली ढंग से निभाई है। उन्होंने अपना सब कुछ अमित लोढ़ा के पात्र को दे दिया है। आशुतोष राणा का किरदार प्रभावी रहा है। एक तरह से उन्होंने शो जीत लिया है।
वे एक ऐसे पुलिस अधिकारी की भूमिका में हैं, जो राजनीति और पुलिस में बैलेंस बनाकर चलते हैं, दूसरों के कायों पर स्वयं श्रेय ले जाते हैं। भारतीय पुलिस सिस्टम में ऐसे अधिकारियों की भरमार है। वे अधिकारी आशुतोष राणा द्वारा निभाए पात्र में अपना अक्स देख सकते हैं। चंदन महतो का किरदार अविनाश तिवारी ने निभाया है। चंदन का किरदार इससे बेहतर और कोई निभा ही नहीं सकता था।
नीरज पांडे ने फिल्म उद्योग को एक शानदार अभिनेता दिया है। अविनाश तिवारी आने वाले समय की प्रबल संभावना है। उनकी टाइमिंग बहुत शानदार है। वे अंडरप्ले के खिलाड़ी हैं और भविष्य में बहुत नाम कमाने वाले हैं। रंजन कुमार के रुप में अभिमन्यु सिंह का किरदार आप भूल नहीं सकेंगे। उनके आने से फिल्म और रोचक हो जाती है। रवि किशन और अनूप सोनी के किरदार भी कम दिलचस्प नहीं हैं।
चंदन महतो एक शातिर अपराधी है। उसे पकड़ने के लिए सेटेलाइट की तकनीक का सहारा लिया जाता है। पुलिस कैसे उसके इर्द गिर्द जाल बुनती है, ये बहुत रोचकता से दिखाया गया है। बिहार की जातीय राजनीति की छलनी से इस राज्य का अपराधीकरण कैसे किया गया, ये ‘खाकी – द बिहार चैप्टर वन’ बारीकी के साथ दिखाती है। इसमें एक्शन कम है लेकिन ड्रामा भरपूर है।
अपराधियों को पकड़ने की पुलिसिया कवायद बहुत इंट्रेस्टिंग है। कलाकारों की कैरेक्टर बिल्डिंग ऐसे की गई है, जैसे कोई चित्रकार पोर्ट्रेट बनाता है। राजनीति और अपराध पर आधारित एक जीवंत सीरीज दर्शकों की प्रशंसा लूट रही है। यदि आप पॉलिटिकल बेस्ड थ्रिलर देखना पसंद करते हैं और आपको नीरज पांडे का सिनेमा भाता है, तो आज ही नेटफ्लिक्स पर इसे देख सकते हैं।
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