इस महापोस्ट को पढ़कर आप समझ सकेंगे के कितने शानदार तरीके से जिहाद आपके घर में घुस जाता है और आपको व आपकी सँस्कृति को लील जाता है।
आप जानेंगे के कैसे बार बार अपना सब कुछ बलिदान कर के भी कश्मीरी हिंदुओं ने भारत के हिंदुत्व को बचाए रखा। और कश्मीरी हिन्दू ही नहीं , ये अफगानी हिन्दू और ये ईरानी हिन्दू भी तो थे जिन्होंने हमारे हिंदुत्व को बचाए रखा खुद बलिदान हो गए – खत्म हो गए लेकिन आपका और मेरा हिंदुत्व बचा लिया !
यही उपयुक्त समय है जब आप जानें के जिहाद किस तरह से कार्य करता है और आपकी ज़मीन, जायदाद , बच्चे , और आपके धर्म को लील जाता है जिहाद एक आक्रमण की स्ट्रेटजी है और किसी भी तरह की आक्रमणकारी स्ट्रेटजी से निपटने के लिये युद्ध में एक फॉर्मेशन होती है – एक डिफेंसिव स्ट्रक्चर होता है।
हिंदुत्व का डिफेंसिव स्ट्रक्चर कभी हाथियों का झुंड देखा है आपने ?! कितने सधा हुआ होता है , इसमें आगे सबसे पहले एक अनुभवी हाथी होता है- जिसे अनुभव होता है के कौनसा रास्ता बेहतर है , कहाँ ज़्यादा भोजन व पानी मिल सकता है और कौनसा रास्ता सबसे सुरक्षित है उसके बाद कुछ शक्तिशाली जवान हाथी होते हैं जो किसी भी परिस्थिति के अनुसार लड़ने में सक्षम होते हैं उसके बाद बीच में कम उम्र की फीमेल्स होती हैं बच्चों के साथ और अंत में फिर शक्तिशाली हाथी होते हैं …
ये एक डिफेंसिव स्ट्रक्चर है जैसे बाहुबली फ़िल्म में भी देखा होगा।
सामाजिक डिफेंसिव स्ट्रक्चर की सबसे खास बात यह होती है के ये Aligned (समरूप ) न होकर अलग अलग हिस्सों में होता है इससे होता यह है के जब बाहरी हिस्से पर आक्रमण होता है तो केवल उसी हिस्से पर फर्क पड़ता है और बाकी सिस्टम लगभग अछूता रहता है – Undamaged रहता है … लेकिन नुकसान यह होता है के जिस बाहरी हिस्से पर आक्रमण होता है – अगर भीतरी हिस्से उसका साथ न दें तो उस हिस्से पर शत्रु का आधिपत्य हो जाता है …
स्ट्रक्चर में शक्ति होती है ऐसा ही डिफेंसिव स्ट्रक्चर हिंदुत्व में भी देखने को मिलता था – भौगोलिक रूप से – पश्चिम से पूर्व की ओर …
पहले (बिल्कुल पश्चिमी छोर पर) सबसे अनुभवी और मारक सिस्टम वाला हिंदुत्व हुआ करता था (जिसे ‘आर्याणाम हिंदुत्व’ कहा जाता था – वर्तमान ईरान में ).. फिर लड़ने वाले खास योद्धाओं का हिंदुत्व (गांधार-अफ़ग़ानिस्तान से लेकर राजस्थान के मरुस्थलों और कश्मीर की घाटी तक ) फिर भक्ति रस में डूबा हुआ सॉफ्ट हिंदुत्व (वर्तमान पाकिस्तान और भारत के हृदय प्रदेशों में ) और फिर पूर्वी छोर पर फिर से लड़ने वाली हिन्दू जातियां , जनजातियां (नेपाल, म्यांमार , गोरखा जाति)
इस तरह से हिंदुत्व का डिफेंसिव स्ट्रक्चर हुआ करता था पारसी मज़हब के आने से पहले तक (जरथुस्त्र के आने से पहले और उसके कुछ समय बाद तक ) ईरानी हिंदुत्व बहुत मारक सिस्टम हुआ करता था आपको आश्चर्य होगा जानकर के ईरान का वास्तविक नाम ‘आर्याणाम ‘ है मतलब आर्यों का देश !
ईरान में जो हिंदुत्व था उसमें भी हमारी वैदिक वर्ण व्यवस्था की ही तरह चार वर्ण थे और उसे “शाक वर्ण व्यवस्था” कहा जाता था – :
- शाक होम वर्ग (ईरानी ब्राह्मण – जो होम/सोम के द्वारा यज्ञ किया करते थे और दूसरे विधर्मी राष्ट्रों पर आक्रमण करवाने की रणनीति बनाते थे – यज्ञ जैसे राजसूय यज्ञ , अश्वमेध यज्ञ इत्यादि जो अधिक भूमि पर हिंदुओं का आधिपत्य करवा सकें )
- शाक तीग्र क्षौदा (तीव्र अक्षोदय) ( ये ईरानी क्षत्रिय होते थे – जो ब्राह्मणों द्वारा बनाई हुई रणनीति के हिसाब से चलकर हिंदुओं के लिए अधिक भूमि पर आधिपत्य स्थापित करते थे )
- शाक पार दरया (ईरानी वैश्य – जो दरिया के पार जाते थे व्यापार करने )
- शाक परा सोगदान (ईरानी शूद्र : सोगदान प्रान्त से पार से आने वाले इमिग्रेंट्स )
- सोचने वाली बात है ना – इतनी दूर Greece तक पर आक्रमण करने वाले ईरानी राजाओं (जैसे Cyrus , Darius , Xerxes) ने कभी बगल के ही अफगानी और भारतीय राज्यों पर हमला क्यों नहीं किया ?
Cyrus , Darius , Xerxes ने कभी भारत पर हमला इसीलिये नहीं किया क्योंकि ये हिन्दू सिस्टम पर आधारित लोग थे जिन्होंने पारसी मज़हब भले अपना लिया था लेकिन संस्कार वही हिंदुत्व वाले थे इनके नाम भी वास्तव में कुछ ऐसे थे -: Cyrus – कुरुष Darius – द्रुह्युस / द्रौस (द्रुह्यु एक वैदिक कबीला था जो वेदों में वर्णित है ) Xerxes – कर्कश / करअक्ष
इन लोग के नाम Cyrus, Darius इसलिये पढ़ाए जाते हैं क्योंकि भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली अंग्रेज़ों की वोकेबलरी को उधार लेती है और अंग्रेज़ों ने greece की पूरी वोकेबलरी चुराई हुई है … तो चूंकि ग्रीक लोग कर्कश को Xerxes कहते थे इसीलिये आप भी कर्कश को Xerxes कहते हैं जबकि ये लोग अपने ही भाई बांधव थे … तभी तो दुनिया की सबसे बड़ी फौज होते हुए भी ईरानियों ने पास के ही भारत पर हमला नही किया
जरथुस्त्र की ‘सॉफ्ट – आत्मबलिदानी फिलॉसोफी’ आने के आने के बाद ये ‘शाक हिन्दू व्यवस्था’ समाप्त हो गई ईरान से मारक हिंदुत्व नष्ट हो गया और बचा क्या ?!! एक कालीन बुनने वाला समाज और एब्स्ट्रैक्ट फिलॉसोफी करने वाला आधारविहीन पारसी मिस्टिक सिस्टम जिसपर जिहाद ने बहुत आसानी से काबू कर लिया (“कालीन बुनने वाला” पर ध्यान दें , बहुत महत्वपूर्ण है )
इस ईरानी हिंदुत्व के बाद हिंदुत्व के अगले प्रहरी थे अफगानी हिन्दू सिकन्दर महान के आक्रमण को इन्हीं अफगानी हिन्दू योद्धाओं ने रोका था लेकिन बिल्कुल ईरान के जरथुस्त्र की ही तरह यहां पर भी एक ‘सॉफ्ट – आत्मबलिदानी फिलॉसोफी’ ने जड़ें जमा लीं जिसे बुद्धिज़्म कहा जाता है तो अफगानिस्तान के मारक योद्धाओं के सॉफ्टी सॉफ्टी बौद्ध में परिवर्तित हो जाने के कारण अगानिस्तान से भी हिंदुत्व नष्ट हो गया
अब आते हैं राजस्थान के राजपूताना क्षत्रिय हिंदुत्व और कश्मीर का दैव आक्रमण राजपूताना क्षत्रिय हिंदुत्व ने आक्रमणकारियो को इतनी बार धूल में मिला दिया के सौ – दो सौ साल तक वे सम्भल ही नहीं पाए और आंख उठा कर देखा भी नहीं भारत की ओर अगर हर हिंदुत्व के रक्षक राजपूत राजा , जागीरदार और योद्धा का नाम लिख दूं तो पोस्ट कई किलोमीटर लम्बी हो जाएगी शायद संसार में राजपूत क्षत्रिय समाज के योद्धाओं से अधिक वीरगति किसी समाज ने नहीं प्राप्त की सैकड़ों वर्षों तक बचाए रखा इन्होंने हिंदुत्व को
उधर कश्मीर के राजाओं , महाबलियों और सूरमाओं ने मंगोल व इस्लामी आक्रमणों को सैकड़ों वर्षों तक न सिर्फ रोके रखा बल्कि महाराज ललितादित्य मुक्तपीड ने तो 700 ईसवी के अंत के वर्षों में islamized हो चुके अफगानिस्तान के कई प्रान्तों से लेकर ईरान के मुख्य प्रान्त तक वापस हिंदुत्व के साम्राज्य में मिला लिए थे – जिसे कर्कोटक नाग साम्राज्य कहा जाता था !
यहां पर गौर करने वाली बात यह है के इन सभी अलग अलग तरह के मारक हिंदुत्व समाजों में सामाजिक तौर पर बहुत सी अलग अलग बातें भी थीं – जो बहुत अच्छी बात है क्योंकि यदि किसी कारण आततायी लोग एक हिन्दू समाज का भेद जान भी लेते थे तो दूसरे हिन्दू समाज के संदर्भ में उनकी ये जानकारी व्यर्थ हो जाती थी … और हिंदुओं को लड़ने के लिये एक और टैक्टिकल एडवांटेज मिल जाती थी जैसे ईरानी हिंदुओं में शाक वर्ण व्यवस्था लागू थी लेकिन अफगानी हिंदुओं , कश्मीरी हिंदुओं में नहीं थी वहीं भारत के अंदर के हिन्दू समाज में वैदिक वर्ण व्यवस्था लागू थी
अब आप पूछेंगे के इतना शानदार डिफेंसिव स्ट्रक्चर होने के बावजूद हम गुलाम कैसे हो गए तो उसका उत्तर है जिहाद जिहाद कैसे कार्य करता है ये समझिये के हिंदुत्व के डिफेंसिव स्ट्रक्चर को ध्यान में रखकर ही बनाया गया है जिहाद का आक्रमणकारी स्ट्रक्चर । हिंदुत्व एक जीवंत व प्रैक्टिकली जीतने वाला सिस्टम है और न के रूढ़िवादी मृत सिस्टम आइए आपको दिखाता हूँ के वैदिक वर्ण व्यवस्था से पहले हिन्दू सिस्टम क्या हुआ करता था और आपको दिखाता हूँ हिंदुत्व का उद्भव !
कश्मीर – हिंदुत्व की जन्मस्थली – जहाँ हिंदुत्व की आत्मा बसती है कश्यप ऋषि मानवों, दैत्यो, देवताओं , नागों के पिता कहे जाते हैं कश्यप ऋषि से ही सारे मानवों का उदय हुआ है आज भी जब किसी को उसका गोत्र नहीं पता होता तो उसका गोत्र कश्यप मान लिया जाता है और इन मानवता के पिता कश्यप ऋषि की भूमि है कश्मीर सम्पूर्ण मानवता का उद्भव यहीं से होता है और यहीं बसते थे संसार की सबसे पुरानी परम्परा और हिंदुत्व की आत्मा के प्रहरी – कश्मीरी हिन्दू
अब कश्मीर क्योंकि महर्षि कश्यप की कर्मभूमि है इसलिये ये वैदिक सिस्टम के सामाजिक व्यवस्था बनने से बहुत पहले से अस्तित्व में है यहाँ कभी वैदिक सिस्टम का बहुत वर्चस्व नहीं रहा यहां कभी चार वर्णों का हुआ ही नहीं समाज – यहां के लोग देवाधिदेव द्वारा बनाए हुए सिस्टम के अनुसार ही चलते थे (जिसे तन्त्र कहते हैं) और हर व्यक्ति बराबर हुआ करता था । इसीलिये जो कश्मीरी पंडित हैं – वे सभी बराबर हैं और इसीलिये जब जैसी स्थिति आती थी तब पूरा समाज वैसे ही कार्य करता था जब शांति हुई तो सब ब्राह्मणों की तरह पठन पाठन में लग जाते थे और जब लड़ने की स्थिति आई तो पूरा समाज ही क्षत्रियों की तरह लड़ने को ततपर हो जाता था यही तांत्रिक समाज की विशेषता है
यहाँ रहने वाले लोग महर्षि कश्यप के ही वंशज थे जिन्हें ‘नाग’ कहा जाता था और उन नागों के राजा को पदनाम से वासुकि कहा जाता था कश्मीरी हिंदुओं का एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है जिसे नीलमत पुराण कहा जाता है उसमें लिखा भी है के जब भारत से ब्राह्मण व अन्य समाज कश्मीर में आए तब तत्कालीन कश्मीर पर राज्य करने वाले नागों के राजा ने उन्हें कश्मीर में रहने देने के लिये एक शर्त रखी के उन्हें अपना सामाजिक सिस्टम त्याग कर वही सामाजिक परम्पराएं अपनानी होएंगी जो कश्मीर में उस समय लागू थीं इसीलिये जो भी हिन्दू कॉम्युनिटी कश्मीर आई – वह क्षत्रिय वैश्य शूद्र ब्राह्मण इत्यादि न रहकर केवल ‘कश्मीरी हिन्दू’ हो गया क्योंकि कश्मीर में वर्ण व्यवस्था थी ही नहीं
कायस्थों का भी कुछ ऐसा ही है – कायस्थ किसी वर्ण के नहीं माने जाते बल्कि देवता (चित्रगुप्त भगवान) से उद्भव के कारण दैव कुल माने जाते हैं और दैव कुल पर महाराज मनु की वर्ण व्यवस्था लागू नहीं होती
कुछ चुनिंदा हिन्दू कॉम्युनिटीज़ पर वर्ण व्यवस्था लागू न होने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है के वह कॉम्युनिटी जब किसी अन्य राज्य को जीत लेती थी तो वहाँ के कल्चर और लोगों को स्वयं में जज़्ब कर लेती थी – और हिन्दू बना लेती थी इसी तरह से धीरे धीरे ईरान तक हिंदुत्व का राज्य हो गया था वर्ण व्यवस्था , क्योंकि सामाजिक व्यवस्था है इसलिये थोड़ी रिजिड भी है और सही भी है – ये यूजेनिक्स (Eugenics) की तरह कार्य करती है और समाज का भीतर से परिष्कार करती है वहीं बिना वर्ण व्यवस्था वाली हिन्दू कॉम्युनिटीज़ बाहर से हिंदुत्व को सशक्त करती हैं
ये है प्रैक्टिकली जीतने वाली व्यवस्था जिसमें जन्मना वर्ण व्यवस्था वाली हिन्दू कॉम्युनिटीज़ भी हैं (वैदिक वर्ण व्यवस्था), कर्मणा वर्ण व्यवस्था वाली हिन्दू कॉम्युनिटीज़ भी हैं (शाक वर्ण व्यवस्था) , और बिना वर्ण व्यवस्था वाली कॉम्युनिटीज़ भी हैं (कश्मीरी हिन्दू ), वर्ण व्यवस्था के सामाजिक सिस्टम बनने से पहले की हिन्दू कॉम्युनिटीज़ भी हैं (कायस्थ) , और वर्ण व्यवस्था को न मानने वाली हिंदुत्व प्रधान कॉम्युनिटीज़ भी हैं (जैन , आदिवासी , जनजातियां ) लेकिन वर्तमान में कुछ लोग हिंदुत्व का आधार ही वर्ण व्यवस्था को मानते हैं ये लोग बहुत बड़ा कारण हैं
हिंदुत्व के पतन का उदाहरण के तौर पर आज से 30-40 वर्ष पूर्व भी किसी ब्राह्मण लड़के की शादी किसी मुस्लिम लड़की से करवा के देखें बहुत सारे ब्राह्मण ही उस लड़के के घर का पानी भी पीने से मना कर देंगे बहुत सम्भव है के उस लड़के से सम्बन्ध ही तोड़ लिए जाएं और ऐसा ही कुछ हुआ भी – हमारे आज के सबसे बड़े खलनायकों का जन्म ही इस रिजिड वर्ण व्यवस्था के कारण हुआ (जैसे मुहम्मद अली जिन्नाह के पिता और कश्मीर के फारुख अब्दुल्ला के परदादा) कैसे? ये बाद में बताऊंगा क्लियर?
इतना सशक्त डिफेंसिव स्ट्रक्चर होने के बावजूद हम कैसे गुलाम हो गए ?! उत्तर है – जिहाद”
नाम सुनते ही मन में लादेन व अल कायदा , हाफ़िज़ सईद व लश्कर ए तोइबा , जैश ए मोहम्मद , हिजबुल मुजाहिदीन और ISIS की छवियां आपकी आंखों के आगे तैरने लगती होएंगी है ना ? आपकी आंखों के सामने राइफल लिये कसाब , अफ़ज़ल गुरु की छवि आ जाती होगी ‘जिहाद’ शब्द सुनते ही है ना ?!
लेकिन क्या हो ?! क्या हो जो मैं आपको बताऊं के ये राइफल लिये आतंकी तो जिहाद का केवल 1 भाग है जिहाद का और टोटल जिहाद के 8 भाग हैं !!
मतलब के ये जो जिहाद के नाम पर दुनिया भर में आप नरसंहार देखते हैं – ये नरसंहार केवल ‘Tip of the Iceberg ‘ है! और जिहाद वास्तव में आपकी कल्पना से भी कहीं ज़्यादा बड़ा और कहीं ज़्यादा गहरा सिस्टम है जो धीरे धीरे बिल्कुल लीच की तरह पहले आपको सुन्न कर देता है और फिर आपकी सेल्फ आऐडेन्टिटी (खुद की पहचान) को नोंच नोंच के खा जाता है और आपको पता भी नहीं चलता … और अंत में जब आपकी पहचान पूरी तरह नोंच ली जाती है तब आप रह जाते हैं एक पत्थरबाज जिहादी !
चौंक गए ? क्योंकि आपको सुन्न कर दिया गया है जिहाद के उन बाकी 7 पार्ट्स ने जो बनाये ही इसलिये गए हैं ताकि मुजाहिदीन आपका खून चूसते रहें और आप उनके विरुद्ध कुछ भी न कर पाएं मुजाहिदीन के विरुद्ध कुछ करना तो दूर की बात है क्योंकि आप तो खुद सुन्न कर दिए गए हैं जिहाद के उन बाकी के 7 पार्ट्स के द्वारा ! जिहाद एक बहुरूपिया स्ट्रेटजी है जो राष्ट्रों के हिसाब से अपना स्वरूप बदल लेती है
जिहादी डिक्शनरी में चार तरह के राष्ट्र होते हैं
- दर अल इस्लाम (दारुल इस्लाम) (जिहादी राष्ट्र जैसे, सऊदी अरब ,तुर्की , ईरान इत्यादि )
- दर अल दावाह (ऐसे राष्ट्र जो नॉन जिहादी हैं लेकिन उनमें इस्लाम फैलाने पर कोई पाबंदी नहीं है जैसे जर्मनी , ब्रिटेन , अमरीका , नॉर्वे इत्यादि )
- दर अल हरब (ऐसे राष्ट्र जो इस्लाम के साथ सीधे या सामाजिक तौर पर जंग में हों जैसे भारत , म्यांमार , श्रीलंका , थाईलैंड )
- दर अल हुदना (इस्लाम से लड़ने वाले राष्ट्र लेकिन जो कमज़ोर हो चुके हों और इस्लाम के साथ समझौता कर के बैठे हों – जैसे चाइना , तजाकिस्तान)
और इन राष्ट्रों के हिसाब से जिहाद अपना रूप बदल लेता है और वो दो मुख्य रूप हैं -:
- सब्जेक्टिव जिहाद
- ऑब्जेक्टिव जिहाद
बात करते हैं सब्जेक्टिव जिहाद की – ये जिहाद अंदरूनी जिहाद है , लेकिन ये केवल और केवल जिहादी राष्ट्रों में (दारुल इस्लाम ) में चलता है इस जिहाद के अंतर्गत शरिया कानून का अधिक से अधिक सख्ती से पालन करवाया जाता है और इन राष्ट्रों में रहने वाले लोगों को और अधिक इस्लाम के प्रति प्रोग्राम किया जाता है जिससे इस्लामी हुकूमत को कोई दिक्कत न हो इन राष्ट्रों में ।
- ऑब्जेक्टिव जिहाद – इस तरह का जिहाद केवल बाकी तीन तरह के राष्ट्रों में चलाया जाता है (दर अल हरब , दर अल दावाह , दर अल हुदना ) बताने में आसानी हो इसलिये मैं सारी जिहादी फोर्सेज को “मिस्टर जिहाद ” कह रहा हूँ।
जब से Mr.जिहाद ने अपने पैर पसारने शुरू किये हैं – तभी से उसका एक सेट पैटर्न रहा है … लेकिन अजीब बात यह है के ये पैटर्न बार बार बार बार रिपीट होता है लेकिन अभी तक लगभग सभी बुद्धिजीवियों की नज़रों से दूर है …
Mr.जिहाद की एक अति विकसित गुरिल्ला युद्ध प्रणाली है अरब देश से शुरू कर के Mr.जिहाद सबसे पहले बिना सूचना दिए ही किसी ‘दर अल हरब राष्ट्र ‘ (दर अल हरब = नॉन इस्लामिक राष्ट्र ) पर आक्रमण करता है और लूटपाट शुरू कर देता है , जब तक उस राष्ट्र की सेना संभलती है तब तक Mr.जिहाद काफी लूटपाट कर चुका होता है फिर भले ही उस राष्ट्र की सेना Mr.जिहाद को धूल चटा दे लेकिन फिर भी Mr. जिहाद उस राष्ट्र के एक बहुत छोटे से हिस्से पर कब्ज़ा कर लेता है (जो आमतौर पर सबसे पश्चिमी हिस्सा होता है )और लूटा हुआ धन लेकर वापस अपने स्ट्रांगहोल्ड पर लौट जाता है ये जो छोटा सा हिस्सा है ना – जिसे Mr. जिहाद ने जीत लिया है यही मुख्य शक्ति है Mr. जिहाद की आसानी से समझाने के लिए इस छोटे से हिस्से को “Proto” ( पूर्ववर्ती) कह लेते हैं
बड़े राष्ट्र से मात खाने के बाद Mr. जिहाद शुरू करता है अपना अगला पैंतरा – वह लूटे हुए धन को ज़िहाद के दूसरे रूपों (जिहाद बिल लिसान , जिहाद बिन नफ़्ज़ , ज़िहाद बिल कलम) पर खर्च करता है और धीरे धीरे (10-15 सालों में ही ) उस “Proto” एरिया में रहने वाले सारे लोगों को ही जिहादी बना देता है …
अब इन नए जिहादियों को ज़ुबान के जिहाद (जिहाद बिल लिसान) के द्वारा इतना ब्रेनवॉश कर दिया गया होता है के वे उसी राष्ट्र को अपना दुश्मन समझने लगते हैं जिसका वो खुद एक पार्ट थे 15-20 वर्ष पहले तक ! उन्हें लगने लगता है के उनके पूर्वजों के साथ अत्याचार किया था उस बड़े राष्ट्र ने इसलिये अब वे भला काम कर रहे हैं उस बड़े राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़कर और इस तरह Mr. जिहाद को नए सैनिक मिल जाते हैं जो उस एरिया की भौगोलिक स्थिति से भी वाकिफ होते हैं और स्थानीय भाषा व परम्पराओं से भी ऊपर से देखने में भी वे उसी स्थान के निवासी लगते हैं इसलिये बड़े राष्ट्र का गुप्तचर सिस्टम भी फेल हो जाता है
अब Mr. जिहाद उस proto एरिया के जिहादियों और पहले लूटे हुए धन की सहायता से फिर एक बार आक्रमण करता है इस बार फिर हार जाता है Mr. जिहाद लेकिन इस बार भी पहले की ही तरह लूटपाट करता है और इस बार भी थोड़ा और एरिया कब्ज़ा लेता है जिसे वह अपने Proto एरिया में जोड़ देता है
पूरी प्रोसेस फिर रिपीट होती है और तब तक रिपीट होती रहती है जब तक उस बड़े राष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा Mr. जिहाद के काबू में नहीं आ जाता और फिर Mr. जिहाद खेलता है कूटनीति और दर अल हरब राष्ट्र से कहता है कि सीजफायर हो जाए क्योंकि हम अमनपसंद हैं लेकिन आपको हमारी कुछ शर्तें माननी होएंगी (जिनमें से मुख्य होती है के दर अल हरब राष्ट्र उनके कुछ अमन का पैगाम देने वाले प्रतिनिधियों को अपने यहाँ रहने देगा और Mr. जिहाद की रिलिजियस बातों को फैलने से नहीं रोकेगा
वर्षों से युद्ध की विभीषिका झेल रहे दर अल हरब राष्ट्र आम तौर पर Mr. जिहाद की ये बात मान लेते हैं – सीजफायर कर देते हैं और दर अल हरब राष्ट्र से बन जाते हैं “दर अल हुदना राष्ट्र “- मतलब ऐसे राष्ट्र जो Mr. जिहाद के साथ सीजफायर का कॉन्ट्रैक्ट कर चुके हों लेकिन वे राष्ट्र इस बात को नहीं जानते के “अमन का पैगाम” देने की आड़ में Mr. ज़िहाद के वे प्रतिनिधि केवल दिल, ज़ुबान और कलम का जिहाद फैलाते हैं और धन इत्यादि का लालच देकर दर अल हरब राष्ट्र के भीतर ही एक जिहादी सेना तैयार कर देते हैं और एक दिन ऐसा आता है जब डायरेक्ट एक्शन डे होता है और दर अल हुदना बन चुके दर अल हरब राष्ट्र को भीतरी और बाहरी जिहादी मिलकर खा जाते हैं और दर अल हुदना से वह राष्ट्र बन जाता है दर अल इस्लाम (दारुल इस्लाम)
उदाहरण के तौर पर ईरान को देख लीजिये जब पहली बार Mr. जिहाद ने ईरान पर आक्रमण किया तो ईरानी शासकों ने ऐसी की तैसी मार दी Mr. जिहाद की लेकिन फिर भी Mr. जिहाद ने ईरान के एक छोटे से पश्चिमी प्रान्त “Proto” को कब्ज़ा लिया ईरान में इस “Proto” प्रान्त का नाम था कदिसियाह ! यही कदिसियाह (proto) प्रांत आने वाले वर्षों में पारसी ईरान में होने वाले सारे जिहादी आक्रमणों का केंद्र बना और धीरे धीरे स्थिति यहाँ तक पहुंच गई के ईरान दो भागों में विभाजित हो गया – एक जिस पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से Mr. जिहाद का आधिपत्य था और दूसरा जो अभी भी पारसियों के हाथ में था
धीरे धीरे ये जो पारसियों के हाथ में ईरान था (जो दर अल हरब से दर अल हुदना बन चुका था) इस पर वहशी दरिंदों की तरह डायरेक्ट एक्शन डे जैसे हमले हुए भीतर व बाहर से और पूरा ईरान बन गया दारुल इस्लाम !
Mr. जिहाद के इस पैटर्न की खूबसूरती यह है के जिस भी Proto प्रान्त पर वह कब्ज़ा करता है तो वहाँ से पलायन कर चुके नॉन मोमिन लोगों को वह जिहाद बिल लिसान व जिहाद बिल कलम के बल पर demonize करवाता है – जिससे बाकी का दर अल हरब राष्ट्र उन पीड़ित नॉन मोमिनों से घृणा करता रहे और उन्हें भगोड़ा कहता रहे इससे होता यह है के उन पीड़ितों के लिए उनके अपने राष्ट्र में कोई सहानुभूति नहीं पैदा होती है और सहानुभूति के अभाव में वह दर अल हरब राष्ट्र कभी कोई आंदोलन नहीं खड़ा करता उसके अपने सताए हुए लोगों के लिये और अंदर ही अंदर Mr. ज़िहाद उस पूरे के पूरे दर अल हरब राष्ट्र को खोखला कर देता है और निगल जाता है
बिल्कुल यही पैटर्न अफगानिस्तान पर चलाया Mr.जिहाद ने और उसे भी दारुल इस्लाम बना दिया फिर यही पैटर्न भारत पर अपनाया Mr. जिहाद ने लेकिन यहाँ उसे बहुत लम्बा retaliation झेलना पड़ा राजपूतों से और कश्मीरियों से भारत पर आक्रमण बहुत वर्षों तक हुए 17 बार तो महमूद गज़नबी ने ही किया आक्रमण उसके अलावा अरब आक्रांताओं ने कितनी ही बार अलग अलग छोरों पर आक्रमण किया कश्मीर के सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड़ ने तो अरब आक्रांताओं को कैस्पियन सागर तक खदेड़ दिया था लेकिन फिर भी धीरे धीरे Mr. जिहाद ने अपने पैटर्न पर कार्य जारी रखा और धीरे धीरे लेकिन भारत पर कुछ समय के लिये ही सही लेकिन इस्लामी झंडा फहरा
और ये होता ही है यही तो सबसे बड़ी शक्ति है Mr. जिहाद की के वह किसी एरिया पर तब तक आक्रमण करता रहता है हर तरह से जब तक वह एरिया उसका न हो जाए तो सैकड़ों आक्रमणों के बाद Mr. Jihad ने धीरे धीरे भारत के अलग अलग प्रान्तों पर फतेह कर ली और यहाँ से शुरू होती है कहानी हमारे वीर राजपूत भाई बहनों व कश्मीरी हिन्दू भाई बहनों की दोनों ही हिन्दू कॉम्युनिटीज़ शुरू से लड़ ही रहे थे Mr. जिहाद से दोनों की भाषाएं अलग अलग, पहनावे अलग अलग , दोनों की समाजिक व्यवस्थाएं व खान पान अलग अलग … लेकिन फिर भी दोनों के आराध्य शिव ! दोनों कॉम्युनिटी हिन्दू !
हिन्दू होने की मूल भावना क्या है ?!
हिन्दू होने की मूल भावना है संसार व स्वयं दोनों के लिए अच्छे से अच्छे करना .. इसलिये चाहें कोई भी हिन्दू कॉम्युनिटी हो – वह सदा ज्ञानियों को प्रोटेक्ट करती है क्योंकि यदि ज्ञानी जीवित रहे तो वे फिर से लड़ने में सक्षम योद्धा पैदा कर ही लेंगे सबसे पहले क्षत्रिय हिन्दू प्रोटेक्ट करते हैं ज्ञानियों और बाकियों को , फिर जब वे असफल रहते हैं तो वैश्य अपने धन का बलिदान कर में प्रोटेक्ट करते हैं
ज्ञानियों व बाकियों को , फिर जब वे भी असफल रहते हैं तो ज्ञानी खुद ही प्रोटेक्ट करते हैं स्वयं को और उनके स्वयं के साथ उनका सारा सांस्कृतिक व आध्यात्मिक ज्ञान भी होता है जिस पर पूरी संस्कृति निर्भर करती है … इसलिये जब कोई रास्ता नहीं बचता लड़ने का तो ज्ञानी कभी कभी पलायन भी कर लेते हैं… और ये पलायन करना एक बेहतरीन रणनीतिक चाल भी है (अरे ज्ञानी यदि ज़िंदा रहे तो 20-25 वर्षों में वे योद्धा भी पैदा कर लेंगे लेकिन यदि ज्ञानी ही मर गए तो योद्धा कभी पैदा ही नहीं होंगे ) इसीलिये महाबली श्रीकृष्ण भगवान भी रणछोड़ होने का कलंक सहते हैं – ताकि बाद में आने वाले ज्ञानियों के लिये वे एक मिसाल रख सकें के समय यदि बिल्कुल ही प्रतिकूल हो तो पलायन करना भी युद्ध की ही एक रणनीति होती है …
पूरी की पूरी राजपूत कॉम्युनिटी ही क्षत्रिय कॉम्युनिटी है – वे जन्मे ही लड़ने के लिये हैं और जीतने के लिये हैं या वीरगति प्राप्त करने के लिए हैं जीते तो वसुंधरा का भोग करेंगे और अगर नहीं जीते तो वीरगति प्राप्त करेंगे इसलिये जब कभी राजपूत असफल हुए अपने राज्य को बचाने में तो राजपूत पुरुषों ने साका (अंतिम युद्ध) किया और जब वे सभी वीरगति को प्राप्त हो गए तो राजपूत महिलाओं ने जौहर की अग्नि में स्वयं का दहन कर वीरगति प्राप्त की ! और मृत्यु के पलों में भी उन्हें शांति होती थी के भारत के ज्ञानी लोग उनका बदला अवश्य लेंगे – नए योद्धाओं को पैदा कर के !
लेकिन कश्मीरी हिंदुओं के साथ ऐसा नहीं था –
राजपूत वीर – वीरांगनाओं के लिए तो फिर भी अंत में साका व जौहर के द्वार खुले थे लेकिन लड़ने और वीरगति प्राप्त करने के अतिरिक्त भी कश्मीरी हिंदुओं के पास कुछ था जो बचाना आवश्यक था कश्मीरी हिंदुओं को बचानी थी हिंदुत्व की आत्मा जो तन्त्र के रूप में देवाधिदेव महादेव ने उन्हें दी है !
इसलिये कश्मीरी हिन्दू लड़े बहुत लड़े , स्ट्रेटिजिकली लड़ें , आमने सामने के युद्ध भी लड़े जैसे कश्मीर की कोटा रानी जी – जिन्होंने हर प्रयास किया कश्मीर में हिंदुत्व को जीवित रखने का और वही प्रयास करते करते वे वीरगति को प्राप्त भी हुईं तो कश्मीरी हिन्दू लड़े , हर तरह से लड़े लाखों कश्मीरी हिन्दू बार बार वीरगति को प्राप्त हुए उस Mr. जिहाद से लड़े जो अरब देश से लड़ता और जीतता हुआ ईरान, अफगानिस्तान के हिंदुत्व को लीलता हुआ पूरे भारत पर काबिज़ हो चुका था लेकिन जब कोई बचने का साधन नहीं रहा तो हिंदुत्व की आत्मा बचाने के लिये कश्मीरी हिंदुओं ने पलायन भी किया एक बार नही अपितु बार बार ऐसा हुआ और पलायन कब होता है ?!
पलायन तब होता है जब लड़ने वाले सारे योद्धा मारे जा चुके हों तो लॉजिकली कश्मीरी हिंदुओं ने यदि राजपूतों से ज़्यादा नहीं तो उनसे कम भी नहीं झेला है Mr. जिहाद के दंश को लेकिन फिर भी उन्होंने हिंदुत्व के एक पूरे सिस्टम को न सिर्फ जीवित रखा बल्कि आज तक उसकी सामाजिक परम्पराओं का निर्वहन कर रहे हैं मैंने इसी पोस्ट में पहले बताया है के Mr. जिहाद एक खास समय पर सीजफायर के लिये हाथ आगे बढ़ाता है और दर अल हरब राष्ट्र को अपनी शर्तें मनवाकर “दर अल हुदना राष्ट्र” बना देता है ऐसा कई दफा हुआ है आज तक और Mr. ज़िहाद की इन शर्तों में वैवाहिक सम्बन्ध भी शामिल होते हैं …
जब Mr. जिहाद ने तुर्की से Transylvaniya व अन्य क्रिश्चियन राज्यों पर हमला किया तो कई क्रिश्चियन राज्यों ने अपनी प्रजा को बचाने के लिये तुर्की ऑटोमन साम्राज्य की वैवाहिक शर्तों को मान लिया ऐसे ही कई राजपूत घरानों ने अपनी प्रजा को बचाने की खातिर Mr. जिहाद की वैवाहिक शर्तें मानी ऐसी ही कुछेक छिटपुट घटनाएं कश्मीर में भी रही होएंगी लेकिन ये कहना के “कश्मीरी हिन्दू अपनी बेटियाँ मुसलमानों में ब्याह देते थे” – ये हमारी महान कश्मीरी हिन्दू कॉम्युनिटी पर सीधा सीधा गंदा और घिनौना आरोप है
कश्मीरी हिन्दू कॉम्युनिटी महान इसलिये है क्योंकि बार बार Mr. जिहाद का आक्रमण राजपूतों के अतिरिक्त इसी हिन्दू कॉम्युनिटी ने झेला है … और यही लोग हैं जो बड़ी आसानी से कन्वर्ट हो सकते थे और अपनी बड़ी बड़ी जागीरें, सेबों के बाग़ , केसर के बाग़ रख सकते थे लेकिन फिर भी इन्होंने हिन्दू बन कर मरना बेहतर समझा , पलायन कर के श्रीकृष्ण की तरह रणछोड़ होने का कलंक भी सहा लेकिन फिर भी हिंदुत्व नहीं छोड़ा करोड़ों की ज़मीनें और घर छोड़े – फटेहाल भूखे प्यासे टेंट्स में रहे लेकिन हिंदुत्व नहीं छोड़ा और न ही छोड़ा देवाधिदेव महादेव द्वारा दिया गया ज्ञान जिसे कश्मीर शैव व्यवस्था कहते हैं – तंत्रयोग कहते हैं !
भारत ने जब 1947 में तथाकथित आज़ादी प्राप्त की ठीक उसी समय Mr. जिहाद ने फिर आक्रमण किया कश्मीर पर ! और कश्मीर का एक पश्चिमी हिस्सा (गिलगित बाल्टिस्तान) अपने कब्ज़े में कर लिया उसके अलावा भी Mr. जिहाद के जिहादियों ने श्रीनगर से लेकर अनंतनाग तक बहुत लूट खसोट मचाई … (याद रखें Mr. जिहाद का Proto वाला तरीका) फिर भारतीय आर्मी की दखल से Mr. जिहाद को पीछे हटना पड़ा लेकिन फिर भी तब तक लूट तो हो ही चुकी थी ना और एक proto एरिया Mr. जिहाद के पास जा चुका था (गिलगित बाल्टिस्तान के रूप में)
इसी Proto एरिया में धीरे धीरे Mr. जिहाद ने बाकी के जिहादों के बल पर फिर से जिहादियों की एक फौज खड़ी कर ली – जो कश्मीरी भाषा बोलते थे , कश्मीरी हिन्दू जैसे दिखते थे और चूंकि Mr. जिहाद को सपोर्ट करने वाली पॉपुलेशन थी ही कश्मीर में तो धीरे धीरे इन नए जिहादियों के माध्यम से Mr. जिहाद ने अपनी जड़ें मज़बूत कीं और इस बार कश्मीर की जिहादी मेजॉरिटी के दम पर चुने हुए Mr. जिहाद के गुर्गे शेख अब्दुल्ला को सत्ता मिली जिसने जब्बरलाल नेहरू के साथ मिलकर कश्मीरी हिंदुओं के आगे सीजफायर का प्रस्ताव रखा अभी अभी (1947 में ) जिहादी आक्रमण की विभीषिका झेले हुए कश्मीरी हिंदुओं ने पूरे भारत की तरह ही ये समझा के नेहरू हमारा साथ देगा (क्योंकि वह भी कश्मीरी हिन्दू ही है ) लेकिन वास्तव में उनके साथ छल किया जा रहा था – जैसे पूरे भारत के साथ छल किया जा रहा था जैसे पूरे भारत के हिन्दू जब्बरलाल नेहरू को पंडित जी और पूरे भारत के हिन्दू बच्चे जब्बरलाल नेहरू को चाचा नेहरू बुला रहे थे , ठीक वैसे ही कश्मीरी हिंदुओं को भी लगा के ये नेहरू भला आदमी है
लेकिन वास्तव में तो नेहरू Mr. जिहाद का ही एक गुर्गा था और इसीलिये उसने Mr. जिहाद के पैटर्न को ही आगे बढाया और Mr. जिहाद का पैटर्न है – सीजफायर के बाद तब तक अपनी शक्ति बढाते रहो जब तक “डायरेक्ट एक्शन डे ” करने में सक्षम न हो जाओ और यही हुआ भी 1990 में जब Mr. जिहाद की शक्ति बढ़ गई तो कश्मीर में डायरेक्ट एक्शन डे भी हुआ लाखों कश्मीरी हिंदुओं को सरेआम मार डाला गया , सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू बच्चियों के बलात्कार हुए , जिहादी बहुल इलाकों में कई कई दिनों तक गैंगरेप्स किये गए और अंगों को काटा गया मुठ्ठीभर कश्मीरी हिन्दू – जिनके हथियार तो जिहादी सरकार ने पहले ही छीन लिए थे
उन कश्मीरी हिंदुओं का सामना गिलगित बाल्टिस्तान से लाई हुई AK 47 से हुआ लड़े बहुत लड़े और न जाने कितने वीरगति को प्राप्त भी हुए कश्मीरी हिन्दू हिंदुत्व और अपनी लाज बचाने के लिये न जाने कितनी कश्मीरी हिन्दू लड़कियों बच्चियों औरतों ने वितस्ता नदी में जल समाधि ले ली लेकिन जब सामना AK 47-56 लिए भीड़ से हो जो आपकी बेटियों का गैंगरेप करना चाहते हों और आपके लड़कों को हिजड़ा बना देना चाहते हों तो अपने परिवार व अपनी संस्कृति बचाने के लिये कश्मीरी हिंदुओं ने वही किया जो रणनीति कहती है – और रणनीति कहती है के आज बुरी परिस्थिति में अगर जीवित बच गए तो शायद कल जब परिस्थिति अनुकूल हो तब जीत भी जाओ कश्मीरी हिंदुओं ने पलायन किया और ज़िंदा रहे !
लेकिन जैसा मैं ऊपर बता चुका हूँ कि “Mr. जिहाद के इस पैटर्न की खूबसूरती यह है के जिस भी Proto प्रान्त पर वह कब्ज़ा करता है तो वहाँ से पलायन कर चुके नॉन मोमिन लोगों को वह जिहाद बिल लिसान व जिहाद बिल कलम के बल पर demonize करवाता है – जिससे बाकी का दर अल हरब राष्ट्र उन पीड़ित नॉन मोमिनों से घृणा करता रहे और उन्हें भगोड़ा कहता रहे इससे होता यह है के उन पीड़ितों के लिए उनके अपने राष्ट्र में कोई सहानुभूति नहीं पैदा होती है और सहानुभूति के अभाव में वह दर अल हरब राष्ट्र कभी कोई आंदोलन नहीं खड़ा करता उसके अपने सताए हुए लोगों के लिये और अंदर ही अंदर Mr. ज़िहाद उस पूरे के पूरे दर अल हरब राष्ट्र को खोखला कर देता है और निगल जाता है “
और यही तो कर रहा है Mr. जिहाद !1990 में कश्मीरी हिंदुओं के पलायन से लेकर आज तक !ज़िहाद बिल लिसान और जिहाद बिल कलम के बल पर Mr.जिहाद Demonize करवाता है proto एरिया से पलायन कर चुके नॉन मोमिनों को !
और इसी जिहाद बिल लिसान और जिहाद बिल कलम का उपयोग कर के Mr. जिहाद ने एक नैरेटिव बनाया ! जिसमें उसने ख़बरण्डीयों (Presstitutes) का खूब उपयोग किया जिसके अंतर्गत बुर्का दत्त कहती है के “कश्मीरी हिन्दू भले ही कश्मीर में माइनॉरिटी में थे लेकिन फिर भी सबसे ज़्यादा अमीर थे और सरकारी जॉब्स पर भी कश्मीरी हिंदुओं का कब्ज़ा था ! अरे मेरे भाइयों , ज़रा सा दिमाग लगाओ अगर तुम्हारे बाप और दादा और उनके भी बाप और दादा एक ही जगह पर बहुत समय से रह रहे हों तो क्या उस जगह पर तुम्हारी ज़मीन बढ़ेगी या घटेगी ?! ज़ाहिर है बढ़ेगी ही – क्योंकि पैसा जो कमाओगे वो कहीं तो लगाओगे ना
जहाँ तक रही सरकारी जॉब्स की बात – तो वे तब मेरिट पर मिला करती थीं और कहाँ जाहिल कश्मीरी म्युस्लमान जो पढ़ना ही नहीं चाहते थे (क्योंकि गिलगित बाल्टिस्तान से पैसा निरन्तर आता रहता था ) और कहाँ कश्मीरी हिन्दू – जो विद्या को ही परमधन मानते थे तो ज़ाहिर है के जाहिल को तो नहीं मिलेंगी न सरकारी जॉब्स !
लेकिन Mr. जिहाद के इशारे पर ख़बरण्डियों ने नैरेटिव ऐसा बनाया जिससे पीड़ित कश्मीरी हिन्दू को ही demonize किया जा सके
खान्ग्रेस के इशारे पर पूरे देश में इस तरह का माहौल पैदा किया गया के मानो कश्मीरी हिन्दू कोई अलग ही जाति का जीव है जो है पंडित लेकिन मांस खाता है और इसी मांस खाने के कारण कश्मीरी हिंदुओं को प्रताड़ित किया गया ! अरे कौनसी हिन्दू कॉम्युनिटी में मांस नहीं खाया जाता ?? मैं कायस्थ हूँ मेरी अपनी कॉम्युनिटी में खूब मांसाहार किया जाता है लेकिन मैं शुद्ध शाकाहारी हूँ। शैवाचार्य ईश्वरस्वरूप स्वामी लक्ष्मण जू रैना जी ने तो साफ साफ मना किया हुआ था के वे किसी भी मांसाहारी कश्मीरी हिन्दू के घर भोजन नहीं करेंगे !
ऐसे सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू परिवार हैं जो मांसाहार नहीं करते और ऐसे सैकड़ों कश्मीरी हिन्दू परिवार भी हैं जो मांसाहार करते हैं मांसाहार करने या ना करने के कारण किसी पूरी हिन्दू कॉम्युनिटी को तो आप सही या गलत नहीं कह सकते ! मेरे पिताजी, मेरे दादाजी मांसाहार करते थे , लेकिन मैं नहीं करता … तो क्या मैं हिन्दू नहीं रहा ?! या मैं कायस्थ नहीं रहा ?! आहार विहार समय काल परिस्थिति के अनुसार किया जाता है। हां इतना अवश्य है के इस बात की गारंटी मैं लेता हूँ के कश्मीरी हिंदुओं में से कभी किसी के घर में भी गौमांस न तो कभी पका है और न कभी पकेगा
क्योंकि कश्मीरी हिन्दू शिवभक्त होते हैं और शिवभक्तों में नन्दी से ज़्यादा प्रिय कोई नहीं होता उस नंदी के वंश को मार कर खाने वाला कभी कश्मीरी हिन्दू हो ही नहीं सकता रही बात जब्बरलाल नेहरू की तो आप सभी जानते हैं के उस आदमी ने न सिर्फ कश्मीरी हिंदुओं को अपितु पूरे भारत के हिंदुओं को न सिर्फ गुमराह किया बल्कि एक तरह से पूरा भारत थाली में सजा कर Mr. जिहाद को पेश कर दिया वह जब्बरलाल नेहरू केवल हम सब की आंखों में धूल झोंकने के लिए हिन्दू है … वरना आप जानते हैं के उसने कहा था : “मैं एजुकेशन से अंग्रेज़ हूँ , कल्चर के हिसाब से मैं म्युस्लमान हूँ और हिन्दू केवल एक्सीडेंट से हूँ ” ऐसा खुद कहने वाला जब्बरलाल नेहरू यदि गौमांस खाता भी है तो उसे हिन्दू समझना या कश्मीरी हिन्दू समझना हम सब की सबसे बड़ी भूल है !
आगे बढ़ते हैं अब आप जानते हैं के कैसे Mr. जिहाद की 4 स्टेप रणनीति में फंसकर कश्मीरी हिंदुओं ने कैसे अपने बेटे खोए , कैसे अपनी बच्चियों के गैंगरेप्स की विभीषिका झेली , कैसे अपने करोड़ों के मकान और पीढ़ियों की मेहनत से संजोई हुई ज़मीनें खोईं लेकिन फिर भी न तो हिंदुत्व छोड़ा और न ही अपनी संस्कृति को समाप्त होने दिया और आज जो आप इन कश्मीरी हिंदुओं को ही गलत ठहरा रहे हो ना – तो भाई साहब , एक दफा बहुत ठंडे दिमाग से सोचना … के कहीं आप भी Mr. ज़िहाद की उस स्ट्रेटजी का मोहरा तो नहीं बन रहे जो विषम परिस्थितियों में अपनी संस्कृति बचाने के लिए पलायन किये हुए पीड़ित नॉन
मोमिनों को ही demonize करती है ! जिससे कभी आप और बाकी का हिन्दू समाज अपने ही उन पीड़ित कश्मीरी हिन्दू भाइयों बहनों के लिए आंदोलन करे ही ना और इसी बात का फायदा उठाकर धीरे धीरे Mr. जिहाद पूरे भारत को ही खोखला कर दे मुझे लगता है के ऐसा ही है ! आप में से बहुत सारे लोग अनजाने ही Mr. जिहाद की इसी स्ट्रेटजी का मोहरा बन गए हैं जो आप विश्वास करते हैं ख़बरंडियों द्वारा फैलाए गए उन नैरेटिव्स पर जो किसी भी तरह से कश्मीरी हिंदुओं को demonize करते हैं !
कश्मीरी हिन्दू चीख चीख कर बता रहे हैं पिछले 30 वर्षों से के Mr. जिहाद खोखला कर रहा है भारत को भीतर ही भीतर क्योंकि वे झेल चुके हैं ये सब पहले ही वे जानते हैं के कितनी सुगठित तरीके से Mr. जिहाद अपना वर्चस्व बनाता है और धीरे धीरे आपका सब कुछ लील जाता है आप भी देख रहे हैं तथाकथित हिंदूवादी सरकार में आप यदि गलती से भी तबला जमात का नाम लेकर पोस्ट कर देते हैं तो आपके खिलाफ FIR तैयार रहती है लेकिन Mr. जिहाद के लोग थूक
थूक कर कोरोना फैलाते भी हैं , डॉक्टरों पर पत्थर बरसाते भी हैं , नर्सों से अश्लील हरकतें भी करते हैं तो भी सरकार उन्हें 700-1200 रुपये प्रतिदिन के खर्चे पर पालती है पूरा सरकारी तन्त्र विफल है Mr. जिहाद से लड़ने में – जो आप देख ही चुके हैं शाहीन बाग़ में एक अदना सा शरजील इमाम पूरे नार्थ ईस्ट को काटने की बात करता है और सोशल मीडिया पर Mr. जिहाद के लोग उसका खुला समर्थन करते हैं उन पर FIR नहीं होतीं ! JNU में खुलकर नारे लगते हैं के अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं – तेरे कातिल ज़िंदा हैं लेकिन वही नारे लगाने वाले लोग कुछ वर्षों बाद अपने गृह क्षेत्र से इलेक्शन लड़ते हुए नज़र आते हैं आपके मंदिरों का धन लेकर इफ्तार पार्टी करवाई जाती हैं , आपके दक्षिणा के पैसे लेकर संघ इंद्रेश पोटली बांटता है , आपके टैक्स के पैसे से उन्हें सब्सिडियां दी जाती हैं संघ के सरसंघसंचालक महोदय जी अपनी लाखों साल के हिंदुत्व को 1400 साल पहले पैदा हुए और करोड़ों हिंदुओं के कातिल मज़हब से जोड़ते हुए कहते हैं के “मुसलमानों के बिना हिंदुत्व नहीं ” और संघी तालियाँ बजाते हैं
ये Mr. जिहाद के जीतने के लक्षण ही तो हैं ! बंगाल में तो सुनाई भी देने लगा है के छिटपुट डायरेक्ट एक्शन डे जैसी घटनाएं घट भी चुकी हैं केरल में भी , मेवात में तो मैंने सुना है के करीब 100 गांव हिन्दू विहीन हो चुके हैं ये सब इसलिये हो रहा है क्योंकि पहले Mr. जिहाद ने बाकी जिहादों और ख़बरंडियों के साथ मिलकर आपके मन में एक नैरेटिव गढ़ दिया के “कश्मीरी हिन्दू ही वास्तविक ज़िम्मेदार है अपनी बर्बादी का ” जबकि ज़िम्मेदार तो Mr. जिहाद व उसके गुर्गे नेहरू व फारूक अब्दुल्ला हैं अब चूंकि आप नफरत करने लगे कश्मीरी हिंदुओं से तो आप कभी सजग नहीं हो पाए अपनी तरफ बढ़ते हुए Mr. ज़िहाद रूपी खतरे से और यही Mr. जिहाद चाहता भी था !
और इस बार उसके मानसिक विक्टिम आप हैं जो कश्मीरी हिन्दू कम्युनिटी को बुरा कह रहे हैं ! अरे कुछ दया धर्म बाकी है आप में या नहीं ?!
भाई लाख बुरा कर ले लेकिन फिर भी युद्ध में भाई का ही साथ दिया जाता है और कश्मीरी हिंदुओं ने आप के साथ कौनसा कुछ बुरा कर दिया ?!
बस सुनी सुनाई बातों में आकर Mr. जिहाद का मोहरा बन गए आप के कश्मीरी हिन्दू बुरे थे !
नमः परमशिवाय
मनन Rita Sinha