अब्बासी – हिंदू डरा हुआ है , जल्दी चुनाव करवा लेगा ;
सत्ता-लोलुप है हद-दर्जे का , कुछ भी ये करवा देगा ।
उठते – बैठते सोते – जागते , केवल चुनाव की बातें हैं ;
कोई भी सिद्धांत नहीं है , केवल साजिश की घातें हैं ।
तृप्तिकरण बढ़ाता जाता , हिंदू को लुटवाता है ;
फिर भी महामूढ़ जो हिंदू , उसी के पीछे जाता है ।
टैक्स-बोझ बढ़ता ही जाता , जिसमें हिंदू दबता जाता ;
कोल्हू का बैल बना है हिंदू , जिसका तेल निकाला जाता ।
हिंदू के खून को समझे पानी , चाहे कितना भी बह जाये ;
एक भी आंसू नहीं गिराता , कितने ही हिंदू मर जायें ।
कभी-कभी ही ये रोता है , जब म्लेच्छ चोट भी खा जाये ;
दुश्मन देशों को दाना – पानी , भूकंप – बाढ़ जब आ जाये ।
अब्राहमिक का ये दलाल है , उनका ही नमक-हलाल है ;
धर्म-सनातन क्यों जिंदा है ? इसका ही इसे मलाल है ।
अनगिनत ये मंदिर तोड़ रहा है , गलियारा बनवाता है ;
हिंदू-धर्म मिटा देने की , भरसक कोशिश करवाता है ।
इसीलिये ये सत्ता चाहे , हर कीमत पर जीतना चाहे ;
इसका भेद खुल रहा तेजी से , इसीलिये जल्दी चाहे ।
मध्यावधि – चुनाव की आहट , इसका ही षड्यंत्र है ;
हिंदू ! सदा जागते रहना , यही जीत का मंत्र है ।
अब्बासी-हिंदू का परम-शत्रु है , हिंदू का ये मित्र है ;
“एकम् सनातन भारत” जीतेगा , यत्र – तत्र – सर्वत्र है ।
लगभग हिंदू जाग चुका है, अब्बासी-हिंदू पहचान चुका है ;
क्रिया-कर्म करेगा अबकी , जाग्रत-हिंदू ठान चुका है ।
सर्वश्रेष्ठ जब विकल्प मिला हो , तब क्यों हिंदू भटकेगा ?
“एकम् सनातन भारत” दल ही , भारी मतों से जीतेगा ।
अस्सी प्रतिशत की हमें है चिंता, बीस प्रतिशत को सारे दल
हिंदू ! करो धर्म की यात्रा , छोड़ो सभी पाप के दलदल ।
असावधान हिंदू ! मत होना , दुश्मन बड़ा ही छलिया है ;
अलतकिया हथियार है इनका, इन्हीं की लगभग दुनिया है ।
पर ये सब के सब जुगनूँ हैं , अंधकार में दिखते हैं ;
धर्म-सनातन महासूर्य है, जिसके प्रकाश में छिपते हैं ।
हिंदू-धर्म का सूर्योदय जो , “एकम् सनातन भारत” है ;
पूरा विश्व चलेगा पीछे , भाग्य – विधाता भारत है ।