इम्तियाज़ अली की लव आजकल : 2 पहाड़ियों से गुजरती रेल का सफ़र है। कभी रेल खुशनुमा धूप में वादियों के नज़ारें दिखाती है तो कभी बोगदों में प्रवेश करते ही मनहूस अंधेरा छा जाता है। ये धूप-छाँव मीठी लग सकती थी लेकिन कमबख़्त बोगदे इतने बड़े हैं कि वादियों के नज़ारे छुप-छुप जाते हैं। कहने का मतलब ये कि इम्तियाज अली की प्रेम कहानी के रंग चटख नहीं है। उनका सिनेमा अब धवल से धूसर हो चुका है। निर्देशक अपनी हर फिल्म के साथ मैच्योर होता चला जाता है लेकिन उसे अपने दर्शकों से मैच्योर होने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
निर्देशक इम्तियाज अली की फिल्म ‘लव आजकल :2’ उनकी पिछली फिल्म का दूसरा संस्करण है। फर्क ये है कि इस प्रेम कहानी के धागें बड़े जटिल हैं। इसमें दो कहानियां एक साथ ट्रेक पर चलती है। यदि इम्तियाज का ट्रीटमेंट डार्क नहीं होता तो ये कहानी बड़ी सफलता हासिल कर सकती थी। नब्बे के दशक की कहानी में लड़का अपनी प्रेमिका के लिए कॅरियर छोड़ देता है और 2020 में लड़की को पसंद नहीं आता कि एक लड़के की दीवानगी उसके कॅरियर में बाधक बन रही है।
इन दोनों कहानियों का पुल बांधने का काम एक पात्र के जिम्मे है। वह बताता है कि ‘हमारे ज़माने में तो दीवानगी अच्छी समझी जाती थी’। कहानी 2020 से बार-बार उठकर 1990 में जाती है। एक कहानी में बेइंतेहा दीवानगी है तो दूसरी मटमैले रंगों में अपना असर खो देती है। फिल्म में अच्छे लम्हें वही हैं, जब फिल्म नब्बे के दशक में जाती है।
बहुत बुरे रिव्यूज और बहुत ही बुरी ओपनिंग के बाद ये सवाल उठता है कि इस फिल्म का हासिल क्या रहा। इस फिल्म का हासिल है कार्तिक आर्यन का अविस्मरणीय अभिनय। फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर चाहे जो हश्र हो लेकिन इसने कार्तिक आर्यन को बतौर स्टार स्थापित कर दिया है। उन्होंने रघु और वीर के किरदार में फूंक दी है। यदि इस बोझिल फिल्म को आखिर तक झेला जा सकता है तो केवल कार्तिक के सहज अभिनय के कारण झेला जा सकता है। ये फिल्म उनके कॅरियर में हमेशा याद रखी जाएगी लेकिन अफ़सोस कि बाकी डिपार्टमेंट्स में फिल्म बेहद कमज़ोर साबित हुई है। इस कहानी में कुछ ऐसे प्रसंग डाल दिए गए, जिनके कारण फिल्म ट्रेक से उतर जाती है।
सारा अली खान को इस किरदार के लिए लिया जाना बड़ी गलती रही। अभी वे इतनी परिपक्व नहीं हुई हैं जो ऐसे जटिल किरदार निभा सके। हर दृश्य में देने के लिए उनके पास दो-तीन एक्सप्रेशंस ही होते हैं। वें आँखों से भी नहीं खेल पातीं। सारा का चेहरा-मोहरा पारंपरिक भारतीय नायिकाओं की तरह भी नहीं है, इसलिए उनकी स्वीकार्यता कठिन लगती है। रणदीप हुडा बेहतर रहे हैं। बाकी किरदार औसत ही रहे हैं। जैसा कि मैंने कहा इम्तियाज कहानी को जस्टिफाई नहीं कर सके हैं। जो व्यक्ति किसी के प्यार में मेडिकल का कॅरियर छोड़ दे और बाद में उसे छोड़कर अय्याशी की राह पर चल पड़े, तो उसका सशक्त कारण होना चाहिए। ये कारण इम्तियाज नहीं दिखा सके।
एक मीठी सी कहानी को तेज़ाब डालकर झुलसा दिया गया है। कार्तिक आर्यन के लिए ये फिल्म मील का पत्थर हो सकती थी लेकिन इम्तियाज के गलत ट्रीटमेंट ने इसे गर्त में पहुंचा दिया है। 40 करोड़ के बजट से बनी फिल्म का भविष्य क्या होगा, कहना मुश्किल है, क्योंकि दर्शकों की प्रतिक्रियाएं और निगेटिव रिव्यू अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं। फिल्म में ज़ोई वीर से कहती है ‘तुमने मेरे साथ नाइट स्पेंड करने से इंकार किया’। इम्तियाज जी की फ़िल्में महानगर में ही नहीं छोटे शहरों में भी रिलीज होती है।
माना प्यार बदल गया है लेकिन इतना भी नहीं बदला, जैसा वे दिखा रहे हैं। युवा जोड़े जब फिल्म देखकर बाहर आए, तो फिल्म का समग्र प्रभाव उनके चेहरों पर दिखाई दिया। जब दर्शक फिल्म देखकर बाहर निकलते हैं तो जो भाव उनके चेहरों पर देखने को मिलता है, वही फिल्म का सच्चा रिव्यू होता है। लिहाजा लव आज कल देखकर निकले युवा जोड़ों के चेहरों पर कोई उल्लास नहीं था, गुदगुदाहट नहीं थी। जैसे इम्तियाज ने उनका वेलेंटाइन ख़राब कर दिया था।