सत्तर साल से भ्रष्ट रही है , राजनीति इस भारत की ;
अभी भी नेता दिशाभ्रमित हैं , यही त्रासदी भारत की ।
राष्ट्र के दुश्मन न पहचानें , राष्ट्र के हित को न जाने ;
ऐसी बुद्धि भ्रष्ट हो गई , अच्छी सलाह को न माने ।
पता नहीं क्या राष्ट्र का होगा ? हिंदू में कमजोरी छाई ;
कभी एकता हो न पाती , कैसी ये किस्मत पाई ?
जात-पांत और ऊंच-नीच में , नेताओं ने बांट दिया ;
अपनी ताकत खुद ही खोयी , तब गुंडों ने काट दिया ।
एक -एक कटने से बेहतर , सारे मिलकर शक्ति बनायें ;
अपने बीच से नेता चुनकर , भारतवर्ष की सत्ता पायें ।
आवश्यकता है आज राष्ट्र को , सच्चे एक सपूत की ;
शूरवीर की , राष्ट्रभक्त की , निर्भय , वीर सपूत की ।
राष्ट्र के सारे हिंदू मिलकर , हर हालत में एक हों ;
आपस का हर फर्क मिटा कर , सारे हिंदू एक हों ।
सही राह में लाओ भाजपा , वरना अपनी राह बनाओ ;
अपना सच्चा नेता चुनकर, एक ध्वजा के नीचे आओ ।
सबसे पहले राष्ट्र है होता , भारत को हिंदू राष्ट्र बनाओ ;
धर्म सनातन विश्व धर्म है,उस पर चलकर मंजिल पाओ।
कोई न ऊंचा , कोई न नीचा , कहीं न कोई शोषण हो ;
संप्रदाय सब रहें शांति से , सच्चे धर्म का पोषण हो ।
कोई अत्याचार न होगा , भ्रष्टाचार कदापि न होगा ;
अनाचार फिर कभी न होगा , ऐसा हिंदू राष्ट्र बनेगा ।
सबको सबकुछ मिलजायेगा,राष्ट्रका स्वर्णिमयुग आयेगा;
रामचरितमानस में वर्णित , अपना रामराज्य आयेगा ।
“वंदे मातरम- जय हिंद”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”