देवासुर – संग्राम चल रहा , युद्ध भयंकर होना है ;
एक पक्ष ही विजयी होगा , दूजे को तो मरना है ।
आधे देवता महामूर्ख हैं , युद्ध में लड़ना भूल गये ;
लक्ष्मी पूजन करते करते , दुर्गा काली भूल गये ।
इन्द्र बन गया इतना कायर , वज्र देखकर डरता है ;
कुछ भी उसके बस का नहीं है , केवल रोता धोता है ।
महामूर्ख है जितने देवता , धिम्मी और सेकुलरिस्ट हैं ;
जबकि ज्यादातर राक्षस तो , पक्के टेरेरिस्ट हैं ।
आधे जितने बचे देवता , फौरन सारे होश में आयें ;
कायर इंद्र को छुट्टी देकर , परम साहसी इंद्र को लायें ।
लक्ष्मी छोड़के काली पूजो, अस्त्र-शस्त्र काली के लाओ;
आपसमें सब मिलकरबैठो, विजयी युद्धनीति को लाओ।
अस्त्र -शस्त्र लेकर दौड़ाओ, असुरों का संहार करो ;
दुश्मन होंगे धूलधूसरित , युद्ध का उपसंहार करो ।
ये सारा सब कुछ संभव है, परम साहसी इन्द्र को लाओ;
वज्र सुशोभित जिसकेकरमें, उसकी ध्वजाकेनीचे आओ।
सारे देव संगठित होकर , धर्म – युद्ध में फौरन आयें ;
अपने नये इंद्र को लेकर , विजयश्री को गले लगायें ।
विजयश्री जब मिल जायेगी , शांति सुरक्षा आ जायेगी ;
सारे राक्षस मिट जायेंगे , विश्व – शांति भी आ जायेगी ।
सारे देवता उठ बैठें अब , इसको अब साकार करें ;
परमसाहसी इंद्र को ढूंढें , समय न अब बर्बाद करें ।
एक इन्द्र ऐसा यूपी में , भगवा वस्त्र -धारी है ;
सदा धर्म की रक्षा करता , सभी देव आभारी हैं ।
उसको ही अब वज्र थमाओ , युद्ध में जीत तुम्हारी है ;
कला , संस्कृति , धर्म की रक्षा, करने की अब बारी है ।
हम सब इसकी रक्षा करेंगे , ये सौगंध हमारी है ;
कायर इन्द्र को छुट्टी दे दो , इसमें क्या लाचारी है ?
इसके बिना न काम चलेगा , ये तो बहुत जरूरी है ;
कायर इंद्र को फौरन त्यागो , तब ही जीत तुम्हारी है ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”