ओटीटी कंटेंट के लिए केंद्र सरकार ने जो निर्देश जारी किये हैं, उन्हें पढ़कर समझ नहीं आता कि रोया जाए या हंसा जाए। केंद्र ने ओटीटी के आपत्तिजनक कंटेंट पर कानून बनाने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने कानून की जगह दिशा-निर्देश का झुनझुना हमें पकड़ा दिया है। इस झुनझुने को पाकर जितनी दुःखी देश की जनता हो रही है, उससे दोगुनी प्रसन्नता फिल्म उद्योग ने व्यक्त की है। जब ओटीटी पर नीली फ़िल्में परोसने वाली एकता कपूर केंद्र सरकार को इन दिशा-निर्देशों के लिए बधाई देती है, तो ही समझा जाना चाहिए कि सूचना व प्रसारण मंत्री द्वारा हमें झुनझुना पकड़ा दिया गया है।
इस मुद्दे पर Sandeep Deo का Video
गत वर्ष ओटीटी पर कानून बनाने के लिए आवश्यक शक्तियां राष्ट्रपति से पाने के बाद प्रकाश जावड़ेकर ने आठ माह बाद जो दिशा-निर्देश जारी किये हैं, उन्हें देखकर लगता नहीं कि बॉलीवुड के विषैले देश और संस्कृति विरोधी मुहिम पर नियंत्रण पाया जा सकेगा। यदि आठ माह की कसरत के बाद ऐसे ढीले निर्देश बनाए जाते हैं तो केंद्र को सोचना होगा कि एक अत्यंत महत्वपूर्ण पद पर बैठा ये व्यक्ति उनके किसी काम का नहीं है।
प्रकाश जावड़ेकर ने खुद कुछ नहीं किया। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और सिंगापुर की नकल कर ये दिशा-निर्देश बना दिए। ये ऐसे निर्देश हैं जो फिल्म उद्योग को स्वयं पर स्वतः लागू करने होंगे। जावड़ेकर साहेब की ओर से कहा गया है कि उन्होंने इन दिशा-निर्देशों का अध्ययन करने के बाद अपने निर्देश बनाए हैं। किसी और देश की संस्कृति के अनुरुप बने निर्देश भारत में कैसे संचालित किये जा सकेंगे।
जावड़ेकर साहब जानते हैं कि भविष्य में इन दिशा-निर्देशों के उल्लंघन पर न्यायालय जाने की नौबत आई तो वहां इनकी चटनी बना दी जाएगी। बात तो कानून की हुई थी, आप ये दिशा-निर्देश लेकर कहाँ से टपक पड़े। दिशा निर्देश भी ऐसे जो, फिल्म उद्योग खुद लागू करेगा। इस सेल्फ रेगुलेटरी में सरकार कहाँ है, जावड़ेकर जी ये भी बता देते।
भारत की जनता को सरकार ने कहा था कानून लेकर आएँगे। इस घोषणा के आठ माह बाद मंत्री जी कहते हैं दिशा-निर्देश लेकर आए हैं। सरकार ज़रा ये तो बता दे कि राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त शक्तियों का अचार बनाकर आपने किसको खिला दिया है। बॉलीवुड प्रसन्न है कि वह सरकार पर भारी पड़ा। ये दिशा-निर्देश तो अपनी शर्मनाक पराजय को ढांपने के लिए लाए गए हैं।
सोशल मीडिया को लेकर जारी गाइडलाइंस में ये झलक रहा है कि सरकार अपनी तरफ से कुछ नहीं करने जा रही है। ओटीटी की तरह ही सरकार ने सोशल मीडिया पर भी सेल्फ रेगुलेशन लगाया है। सरकार अपनी ओर से कुछ नहीं कर रही है बल्कि सबकुछ सोशल मीडिया और कंपनियों को सौंप रही है। ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि ओटीटी और सोशल मीडिया कंटेंट पर सरकार का नियंत्रण कैसे होगा।
अभिनेता रोनित रॉय ने इन दिशा-निर्देशों पर सरकार से बहुत से प्रश्न किये हैं। जाहिर है कि सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देश न केवल भ्रमित करेंगे, बल्कि उल्लंघन करने वालों को इसका कोई डर नहीं होगा। सोशल मीडिया को लेकर गाइडलाइंस की समस्या ये है कि सोशल मीडिया या ओटीटी के लिए यूजर के अकाउंट का वेरिफिकेशन कैसे होगा। उस यूजर की सही आयु कैसे पता की जाएगी, जो सच में बालिग़ है। सरकार ने इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है।
आख़िरकार जावड़ेकर को कहीं तो छुपने की जगह चाहिए। इन झंडू नियमों से आप उन सैकड़ों फिल्मों पर रोक कैसे लगा सकेंगे, जो विशेष रुप से भारत की संस्कृति और धर्म पर आक्रमण करने के लिए बनाई जा रही है। केंद्र ने तो उल्टा दाऊद एन्ड कंपनी को सेफ पैसेज दे दिया है कि आओ और हमारी संस्कृति को बर्बाद कर दो।
केंद्र ने बॉलीवुड के विषय को पिछले छह वर्ष से गंभीरता से नहीं लिया। इस सरकार के राज़ में बॉलीवुड दिन प्रतिदिन उद्दंड होता चला गया। सरकार द्वारा दी गई अत्याधिक उदारता का परिणाम हम आज देख पा रहे हैं। मिस्टर प्रकाश जावड़ेकर हमेशा से बॉलीवुड के घनघोर समर्थक रहे हैं। दीपिका पादुकोण के देशविरोध जेएनयू स्टैंड पर उन्होंने खुले मन से उनका बचाव किया था।
ये दिशा-निर्देश बनाकर प्रकाश जावड़ेकर ने बॉलीवुड की सहायता ही की है देश की नहीं। तो कुल मिलाकर एक वर्ष बाद भी भारत के हाथ खाली है। कानून का झांसा देकर हमें ये कमज़ोर दिशा-निर्देश पकड़ा दिए गए हैं। मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि बॉलीवुड के साथ अत्याधिक प्रेम में पड़ी केंद्र सरकार ने देश की जनता के साथ बेवफाई कर डाली है।