विपुल रेगे। राजकुमार हीरानी की ‘डंकी’ भावनाओं का रोलर कोस्टर है। इस रोलर कोस्टर की राइड रोमांचक है। इस राइड में तीखे मोड़ हैं। एक पल ठहाके हैं तो अगले पल पलकों पे आंसू लुढ़क आते हैं। नया ‘घर’ बनाने के लिए आदमी ‘घर’ से निकलता है और अंत में ‘घर’ ही पहुँचता है। ये हीरानी की इस मनोरंजक फिल्म का फ़लसफ़ा है। अवैध ढंग से विदेश जाकर सपनों की चादर बुनने की भारतीय सोच को ‘डंकी’ में विस्तारित रुप में देखा जा सकता है। हीरानी की फ़िल्में सामाजिक सरोकार की नींव पर आकार लेती हैं। ऐसे ही ‘डंकी’ का सामाजिक सरोकार अपने देश के प्रति अच्छी सोच रखने का है।
वैसे तो देशभर से अवैध ढंग से विदेश जाने वालों की कमी नहीं है लेकिन पंजाब में ये धंधा कई वर्षों से फलता-फूलता रहा है। 19 वर्ष पहले प्रसिद्ध पंजाबी गायक दलेर मेहँदी ‘कबूतरबाज़ी’ के मामले में गिरफ्तार हुए थे और अब तक उन पर केस चल रहा है। ‘कबूतरबाज़ी’ और ‘डंकी’ एक ही बात है। पंजाब में अवैध तरीके से लोगों को विदेश भेजने के धंधे को ‘कबूतरबाज़ी’ कहा जाता है। हीरानी ने इसी विषय को कथानक में केंद्रित किया है।
‘डंकी’ ऐसे चार युवाओं की कहानी है, जो लंदन जाना चाहते हैं। पंजाब के लोल्टा में रहने वाले इन चार युवाओं को हार्डी सिंह का साथ मिलता है। हार्डी एक पूर्व सैनिक है। वह लोल्टा इसलिए आया है क्योंकि यहाँ के एक युवा ने उसका जीवन बचाया था। कहानी बार-बार फ्लैशबैक में जाती है। हीरानी ने इस बार अपनी ‘थ्री इडियट्स’ का फ्लेवर ‘डंकी’ में डाला है। उस फिल्म की तरह ‘डंकी’ के पात्र भी अतीत की धूल में लिपटे हुए हैं। सबकी कहानियां एक मोड़ पर जाकर कोहरे के धुंधलेपन में खो गई है।
हास्य वह गोंद है, जिससे हीरानी ने दर्शक को एक गंभीर फिल्म से जोड़े रखा है। इस कहानी में हास्य न होता तो ये बोझिल बनकर रह जाती और व्यावसायिक सफलता से हाथ धोना पड़ता। हास्य के लिए अच्छी सिचुएशंस खोजी गई है लेकिन एक दृश्य आपत्तिजनक है। इस दृश्य में एक अर्थी के दृश्य में कॉमेडी दिखाई गई है। हीरानी जैसे संवेदनशील निर्देशक को ऐसे प्रयासों से बचना चाहिए। ‘डंकी’ को टिकट खिड़की पर संभालने के लिए शाहरुख़ खान का नाम ही काफी है। इस समय वे सफलता की बयार पर सवार हैं।
शाहरुख़ के साथ तापसी पन्नू, बमन ईरानी, विकी कौशल और विक्रम कोचर ने फिल्म को हृदयस्पर्शी और मनोरंजक बनाने में पूर्ण योगदान दिया है। यहाँ विकी कौशल का ज़िक्र करना आवश्यक है। उनका छोटा सा किरदार दर्शक को देर तक याद रह जाता है। राजकुमार हीरानी के निर्देशन में शाहरुख़ का अभिनय बहुत अलग और ताज़गी भरा दिखाई दिया है। हार्डी सिंह की भूमिका उनके निभाए किरदारों में याद की जाने वाली है। अवैध ढंग से विदेश जाने के विषय पर ये फिल्म स्पॉट लाइट डालती है।
इस स्पॉट लाइट में हम जान पाते हैं कि छुपकर गलत ढंग से विदेश जाने वालों की कोई पहचान नहीं होती, कोई नाम नहीं होता। वे जीवनभर पैसे कमाने वाले पशु ही बने रहते हैं। ‘डंकी’ में दर्शक को सम्मोहित करने लायक हर बात है। कॉमेडी, ड्रामा, रोमांस और भावनाओं का ये मिश्रण बॉक्स ऑफिस पर जादू कर सकता है। 120 करोड़ की लागत से बनी ‘डंकी’ पहले से चल रहे हिंसा के ट्रेंड को समाप्त कर सकती है। इन दिनों सिनेमा का पर्दा एक ‘एनिमल’ नामक पशु के कारण लहूलुहान हुआ पड़ा है।
‘एनिमल’ द्वारा परोसी गई रक्तरंजित हिंसा और नग्नता का ट्रेंड जबरदस्त ढंग से ऊपर जा रहा था लेकिन ‘डंकी’ का भावनात्मक तूफ़ान उस हिंसा के कचरे को उड़ा ले गया है। ये फिल्म सपरिवार देखी जा सकती है। इसमें रक्तपात नहीं है। इसमें नग्नता भी नहीं है। ये मनोरंजक है और सार्थक संदेश देती है। ‘एनिमल’ के खूंखारपन को ‘डंकी’ की मासूमियत ने विदा कर दिया है।