श्वेताश्वतर, मेरे घर के इस नाम में उपनिषद का ज्ञान भी है और मेरी भार्या श्वेता का नाम भी।
श्वेताश्वतर एक ऋषि थे, जिनकी अध्यक्षता में अरण्य में एक धर्म सभा का आयोजन किया गया था, जिसमें प्रकृति और जीवन के रहस्यों को सुलझाया गया था। आदि शंकराचार्य ने जिन उपनिषदों पर भाष्य लिखा, उनमें श्वेताश्वतर उपनिषद भी शामिल है।
कृष्ण यजुर्वेद का शांति मंत्र श्वोताश्वतररोपनिषद के आरंभ में आया है, जो मेरे गृह के प्रवेश द्वार पर अंकित है ताकि हर अतिथि इस भाव को ग्रहण कर गृह में प्रवेश करे।
वैसे तो यह गुरु-शिष्य के बीच का मंत्र है, परंतु इसका भावार्थ देखें तो यह हर व्यक्ति की उन्नति में सहायक है:-
ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु
मा विद्विषावहै।
ॐ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः!!!
भावार्थ:
हे परमेश्वर! आप हम दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों का साथ-साथ पालन करें। हम दोनों साथ-साथ उस महान ऊर्जा और शक्ति को प्राप्त करें। हम दोनों की अध्ययन की हुई विद्या तेजपूर्ण हो। हम दोनों कभी परस्पर द्वेष न करें।
यदि हर सनातनी के अंतस में यह मंत्र उतर आए तो सब एक समान बढ़ेंगे। कोई किसी से ईर्ष्या नहीं करेगा और सब मिलकर सनातन कार्य सिद्धि में सहायक होंगे। जय मॉं!