विपुल रेगे। ओटीटी पर फिल्मों की नई खेप आई है। इस सप्ताह पंकज त्रिपाठी की ‘कड़क सिंह’ और ज़ोया अख्तर की ‘आर्चीज’ रिलीज हुई है। पंकज त्रिपाठी की ‘कड़क सिंह’ को मिक्स रिस्पॉन्स मिलता दिख रहा है। ये एक सस्पेंस थ्रिलर है। इसमें रहस्यों के कुहासे में मानवीय रिश्तों के बनने-बिगड़ने की कथा प्रस्तुत की गई है। निर्देशक अनिरुद्ध राय चौधरी की ये फिल्म पंकज त्रिपाठी के ज़िंदा अभिनय से सांस लेती है। हालांकि सस्पेंस को बनाए रखने और क्लाइमेक्स वाले हिस्से में निर्देशक ने बहुत सी कमियां छोड़ दी है।
ओटीटी मंच : Zee 5
एक फंड कंपनी की आर्थिक अपराध शाखा में काम करने वाला मनोहर एक दिन ऑफिस में आत्महत्या का प्रयास करता है। वह पंखे से लटककर फांसी लगाता है लेकिन पंखा टूट जाने के कारण वह बच जाता है। होश में आने के बाद डाक्टरों को पता चलता है कि मनोहर अपनी ज़िंदगी की कुछ यादें भूल चुका है। वह अपनी बेटी को नहीं पहचान पाता। याददाश्त वापस लाने के लिए मनोहर को तीन कहानियां सुनाई जाती हैं, जो उससे ही संबंधित है।
पहली कहानी उसकी बेटी साक्षी सुनाती है। दूसरी कहानी उसकी प्रेमिका सुनाती है और तीसरी कहानी मनोहर का बॉस सुनाता है। कड़क सिंह के सामने चुनौती है कि वह इन कहानियों को सुनकर अतीत को याद करें। वह याद करना चाहता है कि उस रात क्या हुआ था। मनोहर के करीबी जानते हैं कि वह आत्महत्या नहीं कर सकता। मनोहर की भूली हुई याददाश्त में एक अपराध के क्लू छुपे हुए हैं। निःसंदेह ये एक बेहतरीन कहानी थी। इस बेहतरीन कहानी पर एक सशक्त पटकथा की ज़रुरत थी। एक कसा हुआ स्क्रीनप्ले चाहिए था, जो इस कहानी को विस्फोटक ढंग से प्रस्तुत करता।
निर्देशक से बड़ी महीन चूक हुई है। उसके प्रस्तुतिकरण में भावनाएं हावी रही और सस्पेंस को ट्रीटमेंट नहीं मिला। इस कहानी में जिस ढंग के उतार चढ़ाव चाहिए थे, उस पर भी काम नहीं किया गया। कहानी चौंकाने वाली ज़रुर है लेकिन प्रस्तुतिकरण आखिरी तक चौंका नहीं पाता। फिल्म की एकमात्र अच्छाई पंकज त्रिपाठी का सहज अभिनय है। वे ही इस फिल्म के सितारे हैं और वे ही खेवनहार हैं। इस बोरिंग प्रस्तुति को हम पंकज त्रिपाठी के कारण ही देख पाते हैं। वरना तो इसे देखने का और कोई कारण नहीं बचता। हालाँकि निर्देशक पंकज से और बेहतरीन काम ले सकता था।
एक आम दर्शक को कहानी समझने और उससे कनेक्ट करने में कठिनाई होती है। जब तक निर्देशक मज़मा जमाने में सफल होता है, फिल्म का अंत आ जाता है। अर्घ्यकमल मित्रा का संपादन इस फिल्म की एक और कमज़ोर कड़ी है। सस्पेंस-थ्रिलर में जिस तरह की एडिटिंग चाहिए, वह दिखाई नहीं देती। हाँ कैरेक्टर बिल्डिंग बहुत बेहतर की गई है। पात्रों के व्यक्तित्व को अच्छे ढंग से उकेरा गया है। संजना सांघी और पंकज त्रिपाठी की बाप-बेटी की केमेस्ट्री अच्छी लगती है।
बांग्लादेशी अभिनेत्री जया अहसान ने सुंदर अभिनय किया है। फिल्म एक सुखद नोट पर समाप्त होती है। इस हिस्से में निर्देशक ने फिल्म को कसकर रखा है। ‘कड़क सिंह’ एडिटिंग और निर्देशक की गलतियों के कारण एक औसत फिल्म बनकर रह गई है। इसका एकमात्र आकर्षण पंकज त्रिपाठी हैं। यदि आप उनके प्रशंसक हैं तो ये फिल्म आपको निराश नहीं करेगी।