महामूर्ख है हिंदू जनता , खासतौर पर नेता ;
गुंडों से गलबहियाँ करता , क्योंकि उनसे डरता ।
कायर जीते जी मरता है , निर्भय कभी न मरता ;
नाम अमर होता निर्भय का,कायर निसदिन मरता।
कायर का जीवन गलीज है , जैसे कुत्ता, बिल्ली ;
कीड़ों सा जीवन है इनका ,क्या बोम्बे क्या दिल्ली।
गुंडों से इतना डरते हैं,तुष्टीकरण हैं करते रहते ;
जबकि ये इतने अपराधी ,आये दिन दंगा हैं करते ।
दंगों में निरपराध हैं मरते , गुंडों की है मौज ;
सारे नेता डर के मारे, बने नपुंसक फौज ।
काहे को इतना डरता है? क्या मौत कभी न होगी ?
डर कर मरे या निर्भय होकर,मौत तो निश्चित होगी ।
कायर गुलाम होता तृष्णा का , इसीसे सत्ता लोभी ;
चरित्र भ्रष्ट हो जाता उसका , बनता कामी क्रोधी ।
कभी नहीं सुख शांति है पाता,मृग मरीचिका होती ;
चाहे जितना बहुमत दे दो , इनको संतुष्टि न होती ।
मिट्टी के ये शेर बन चुके , इनसे कुछ न होगा ;
हरदम रोते ही रहते हैं, ये ही इनसे होगा ।
पुलिस फौज को किया नपुंसक,रोड जाम करवाया ;
गुंडों को इतना प्रोत्साहन ,शाहीन बाग करवाया ।
पुलिस हमेशा पिटती रहती , लाठी न चलवाते ;
दंगों में मरती रहती है , गोली न चलवाते ।
कोई कहता इन्हें चाहिये , शांति का नोबेल प्राइज ;
शांति नहीं ये कायरता है, बने ये खुद सरप्राइज ।
कितने वर्ष और जी लेगा,क्यों पाप की गठरी ढोता?
अब तो सही राह पर आओ, काहे को है रोता ?
अबतो चमको,खुलकर चमको,राष्ट्रको रोशन करदो;
आया था जिस काम को करने ,उसको पूरा कर दो।
अपने सारे भय को त्यागो ,सावरकर हो जाओ ;
सारे बिगड़े काम बनाओ , कलंकहीन हो जाओ ।
वरना चैन नहीं पाओगे , खाली हाथ ही जाओ ;
सबसे उत्तम काम यही अब , हिंदू राष्ट्र बनाओ ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”