अंग्रेज़ी में ‘न्यूज़’ का अनुवाद क्रमशः नार्थ, ईस्ट, साउथ और वेस्ट का मेल दिखाता है। न्यूज़ जिसमे चारों दिशाओं की खबर मिलती है। ये सपाट सा अर्थ है। जब यही न्यूज़ हिन्दी में ‘समाचार’ कही जाती है तो इसके अर्थ बहुत स्पष्ट और सारगर्भित होते हैं। सम-आचार यानि जो विषम व्यवहार नहीं करता, जो पक्षपात रहित है, जो एक सा बराबर है। आज के संदर्भ में ये परिभाषा कम से कम भारतीय मीडिया पर सार्थक होती नहीं दिखाई देती। भारतीय मीडिया विषम है, पक्षपात पूर्ण है, एक सा बराबर नहीं है। जो देश की बात नहीं करता।
समय-समय पर देश में कुछ घटनाएं घटती रहती हैं। इन घटनाओं को मीडिया जिस तरह से प्रस्तुत करता है, उससे पता चलता है कि नीयत क्या है। सेकुलर वामपंथी मानसिकता वाले मालिकों के न्यूज़ चैनल क्या दिखाते हैं और क्या छुपाते हैं, ये आम भारतीय समझ ही नहीं पाता। अटल जी के गंभीर स्वास्थ्य की खबर बाहर आते ही न्यूज़ चैनलों पर ‘अटल विशेष’ कार्यक्रम दिखाना शुरू कर दिए गए थे। बाज़ार में इसे अवसर को पहले से भांपने की कला कहा जाता है। हमारे भारतीय न्यूज़ चैनल इस कला में माहिर हैं।
अटल जी के देहवसान से लेकर उनकी अंत्येष्टि तक ‘विज्ञापनों’ के साथ दिखाई जाती रही। कोई शेर का बच्चा ऐसा नहीं था जो तीन दिन तक अटल जी के कार्यक्रम को ‘विज्ञापन रहित’ बनाकर देश का दिल जीत लेता। हर पंद्रह मिनट की खबर के बाद तीन मिनट के विज्ञापन दिखाए जाते रहे। अटल जी का निधन टीआरपी बढ़ाने का साधन बन गया था। हर कोई ये जताने में लगा था कि अटल युग के समापन का सबसे बेहतरीन कवरेज उन्होंने ही दिया है।
सन 2001 में गुजरात भूकंप आया। आज खुद को राष्ट्रवादी कहने वाले एक चैनल ने उस समय भूकंप की दर्दनाक तस्वीरें ‘एक्सक्लूजिव’ का टैग लगाकर दिखाई और साथ ही विज्ञापनों का खूब मज़ा लूटा। देश में राजकीय शोक है, क्या ऐसा हमारे एक दर्जन चैनलों को देखकर पता चल रहा था। अटल जी की कविता के एक अंश के साथ ब्रेक लिया जाता और ब्रेक के बाद राखी के लिए केडबरी का उल्लासित विज्ञापन देखिये। ये कैसा राजकीय शोक हुआ जो केवल सरकारी प्रसार माध्यमों पर लागू हो रहा था, इन चैनलों पर नहीं।
क्या यही रास्ता बचा रह गया है कि इन चैनलों को डंडे के बल पर राजकीय शोक का पालन करना सिखाया जाए। दूसरा एंगल कहता है कि ये न्यूज़ चैनल राजकीय शोक का पालन न करके ठीक ही कर रहे हैं। इनमे देश के लिए अपनेपन का भाव है ही कहाँ। जो देश के सर्वमान्य नेता की मौत को बेचने निकल पड़े। जो पाकिस्तान के शपथ ग्रहण पर बहस करवाए, वे देश के समाचार चैनल कैसे हो सकते हैं।
‘समाचार’ का सही स्वरूप जानना हो तो इसी समय डीडी-1 या विविध भारती स्विच करें, आपको पता चल जाएगा कि वाकई समाचार क्या होते हैं। मान लीजिये देश में किसी गौ तस्कर को भीड़ द्वारा मार दिया जाता है तो विविध भारती के लिए वह देशभर में उस दिन घटी अपराध की घटनाओं में से एक होगी। वे न गौ तस्कर के परिवार के पास जाएंगे और न हमलावरों का धर्म देश को बताते बैठेंगे।
वे इस मुद्दे पर अधिक से अधिक एक मिनट का समाचार प्रसारित करेंगे। समाचार का अर्थ यही होता है, घटना की जानकारी देना न कि भयानक संगीत के साथ अपने कार्यक्रम के ‘इंट्रो’ बनवाना और फालतू की बहस करवाना। विश्वभर के श्रेष्ठ समाचार चैनलों का प्रारूप लगभग वही है जो दूरदर्शन या विविध भारती का है। वे भी आपको केवल समाचार दिखाएंगे और विशेष मुद्दों पर कसी हुई रिपोर्ट पेश करेंगे न कि चौराहे पर मजमा लगाकर विवादित सवाल पूछेंगे।
अंग्रेज़ी के विद्वानों ने ‘समाचार’ की बड़ी रोचक परिभाषाएँ दी हैं। हार्पर लीच कहते हैं ‘समाचार एक गतिशील साहित्य है।’ जे.जे सिडलर के अनुसार ‘पर्याप्त संख्या में मनुष्य जिसे जानना चाहे, वह समाचार है, शर्त यह है कि वह सुरूचि तथा प्रतिष्ठा के नियमों का उल्लंघन न करे। सिडलर की ये परिभाषा दूरदर्शन और विविध भारती के समाचारों में परिलक्षित होती है।
जान बी बोगार्ट के अनुसार ‘जब कुत्ता आदमी को काटता है तो वह समाचार नहीं है परंतु यदि कोर्इ आदमी कुत्ते को काट ले तो वह समाचार होगा।’ बोगार्ट की परिभाषा हमारे निजी न्यूज़ चैनलों के समाचारों में भली-भांति परिलक्षित होती है। एक सामान्य वर्ग की स्त्री के साथ बलात्कार हुआ है तो वह टीवी स्क्रीन पर नीचे तेज़ी से दौड़ते फ्लैश में निपटा दी जाती है। पीड़िता यदि दलित हुई तो उस पर दो दिन तक सभा लगाई जाती है। जबकि दोनों ही पीड़ित स्त्रियां हैं लेकिन प्रस्तुतिकरण बदल जाएगा। नहीं बदलेंगे तो ब्रेक के बाद चड्डी-बनियान का विज्ञापन कैसे आएगा।
हम ये कहकर मज़ाक बनाते हैं कि ‘डीडी-1 पर खाद बनाने का कार्यक्रम आता है’। मज़ाक बनाने वाले ये जान लें कि यही चैनल आदर्श समाचार प्रस्तुत करता है। दो दशक से आपको तीखा मसाला खाने की आदत पड़ चुकी है इसलिए सीधे समाचार हजम नहीं होते। जब तक टीवी पर गर्मागर्म बहस न देख ले शाम की चाय गले से नहीं उतरती। आप समाचार देख ही कहाँ रहे हैं, आप तो ऐसा समाचार खोज रहे हैं जिसमे आदमी ने कुत्ते को काटा हो।
अटल जी के निधन के बाद सही मायनों में राजकीय शोक का पालन अपने सरकारी प्रसार माध्यमों ने किया। विविध भारती पर केवल भजन और दर्दभरे गीत सुनाए जाते रहे। समाचार और शोक के गीतों के अलावा कुछ नहीं। एक विज्ञापन तक नहीं। जो लोग विविध भारती सुनते हैं वे जानते होंगे कि अटल जी के निधन के बाद देश की पीड़ा को विविध भारती ने अच्छे ढंग से अनुभव किया और यही एक मीडिया माध्यम की सबसे बड़ी शक्ति होती है।
विविध भारती पर समाचारों के साथ अत्यंत उपयोगी जानकारियां दी जाती हैं। पर्यावरण, विज्ञान, चिकित्सा से संबंधित ऐसे कार्यक्रम आते हैं जिनका मुकाबला कोई टीवी चैनल नहीं कर सकता। उनका प्रस्तुतिकरण आडम्बरहीन होगा लेकिन उनका स्तर बहुत ऊँचा है। अटल जी के निधन के बाद जिस ढंग से बाजारवाद खेला गया, अत्यंत निंदनीय है। देश को इन चैनलों का बहिष्कार कर अपने प्रसार माध्यमों की ओर लौट जाना चाहिए। जो चैनल हमारी बात ही न करें, दुश्मन मुल्क के कार्यक्रम पर एक घंटा खर्च करें, वे हमारे किस काम के।
URL: mainstream media bias in india is negative role-1
Keywords: indian media, hypocrite media, lutyens media, Liberal Media Bias, effects of media bias on society