डॉ रजनी रमण झा । नासदीय सूक्त (ऋग्वेद, मण्डल – १०, सूक्त -२९)
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(१)
नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत् ।
किमावरीव: कुह कस्य शर्मन्नम्भ: किमासीद् गहनं गभीरम् ।
अर्थ – उस (प्रलयकाल में या उसके पूर्व) समय न असत् था, न सत् था। न लोक था, न अन्तरिक्ष एवम् अन्तरिक्ष के परे रहनेवाला (सत्यादि लोक ही) था। किसने इस सम्पूर्ण जगत् को घेर रखा था ? (वह घेरनेवाला तत्त्व) कहां और किसकी शरण में था ? सघन एवं अथाह जल भी क्या था ?
(क्रमशः)