कामी , क्रोधी , लालची ,कायर ,कुटिल , कपूत ;
कहीं नहीं वो संत था और नहीं था सपूत ।
सबसे ज्यादा हानि की ,भारत का था कलंक ;
दुर्गंधित और सड़ा – गला , ऐसा था वो पंक ।
झूठों का सिरमौर था , गुंडों का था यार ;
धर्म का सत्यानाश किया , ऐसा था गद्दार ।
गद्दारों की पार्टी , उसका था सिरमौर ;
इसके क्रियाकलाप ऐसे ही थे ,जैसे हो कोई चोर ।
हिंदूकुल का कलंक था , पक्का था बदमाश ;
देश विभाजन कर गया , किया राष्ट्र का नाश ।
उसके सारे कार्य थे , राष्ट्र – विरोधी कार्य ;
तुष्टीकरण जो हो रहा , उसी का पहला कार्य ।
भारत में जो अशांति है , उसी का ये परिणाम ;
बगल में छुरियां वो रखे , फर्जी मुख में राम ।
ईश्वर अल्ला एक कर , किया जो उसने पाप ;
सौ जन्मो तक भुगत ले , खत्म न होगा पाप ।
पता नहीं क्या दुश्मनी , उसको हिंदू से ?
लाखों हिंदू मरवाये , उसने गुंडों से ।
चाहे हो वो मोपला या फिर पाकिस्तान ;
उसकी साजिश से कटा , अपना हिंदुस्तान ।
जितने भी थे राष्ट्रभक्त , जैसे वीर सुभाष ;
तिरस्कार उनका किया , चरित्रहीन थे पास ।
मानसिक विकृति थी उसकी,मेगालोमीनिया रोग ;
खुद को राष्ट्रपिता वो समझे , जबकि गंदे भोग ।
बड़ा भयंकर रोग है , समरसता का शत्रु ;
जो भी उससे उच्च हो , उसको समझे शत्रु ।
चापलूस की फौज थी , उसके चारों ओर ;
अभी भी ऐसे ही अधिक , देखो चारों ओर ।
जहां भी इसका चित्र है , वहां नहीं है न्याय ;
इसी से अपने देश में , चारों ओर अन्याय ।
मूर्ति जो इसके लगा रहे , पक्के हैं बेवकूफ ;
असली इतिहास न जानते , ऐसे हैं बेवकूफ ।
राष्ट्र भला जो चाहते , इसका कर दो अंत ;
नजरें नेता पर रखो , जो न बने ऐसा संत ।
“वंदेमातरम-जयहिंद”
रचयिता:ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”