कमाल देखिए देश भर में शोक सभा औऱ विरोध सभा के आयोजन के बाद बेशर्म राक्षसी प्रवृति वाले नक्सली अब कह रहे हैं कि पत्रकार की हत्या गलती से हो गई! संदेश साफ है कि देश भर में जब नक्लियों के उस धत्तकर्म के खिलाफ आक्रोश शुरु हुआ तो लुटियन दिल्ली में बैठे उनके आकाओं तथा शहरी नक्सलियों ने जो स्टैंड लिया उसे दंतेवाड़ा से व्यक्त कर दिया गया। पत्रकारिता पर इस तरह के कायराना हरकतों पर पत्रकारिता के झंडाबदारों की चुप्पी कई संदेश देते हैं। निश्चित रुप से यह संदेश प्रत्रकारिता और लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक गांव ऐसा है जहां की एक पूरी पीढी ने लोकतांत्रिक अधिकार के मायने नहीं जाने हैं! उस गांव ने बीस साल से न बैलेट बाक्स देखा है न ही इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन। क्योंकि दो दशक से न तो कोई जनप्रतिनिधि वहां चुनाव प्रचार करने गया न ही कोई वहां से चुना ही गया।….. है न हिला देने वाली खबर! दूरदर्शन की खबरी टीम जब इसी सच की पड़ताल करने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा से तीस किलोमीटर दूर उस सुदुर गांव में गई तो नक्सलियों ने दूरदर्शन की टीम पर हमला कर दिया। नक्सलियों ने ताबड़तोर गोलीबारी कर दूरदर्शन के कैमरामैन अच्युत्यानंद साहू को वहीं ढेर कर दिया। साथ में दो पुलिसकर्मी भी मारे गए। यह पत्रकारिता पर सीधा हमला था। लेकिन ‘बोल की लब आजाद हैं तेरे’ का नारा देने वाले शहरी नक्सलियों के पक्ष में आवाज बुलंद करने वाले पत्रकारिता में माओवाद के संरक्षकों के लिए दंतेवाड़ा में पत्रकार की हत्या के कोई मायने ही नहीं हैं।
गुरुवार को दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जब देश भर के पत्रकारों ने दंतेवाड़ा में दूरदर्शन के पत्रकार की हत्या के खिलाफ शोकसभा और विरोध सभा का आयोजन किया तो वो तमाम पत्रकार नदारद थे जिन्होने मानो कुछ सालों से पत्रकारिता में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर न जाने कितनी सभा उसी प्रेस क्लब में की। जिनके लिए पिछले साल 7 जून 2017 को मनीलॉन्ड्रींग के आरोपी एनडीटीवी के मालिक प्रणय राय के ठिकानों पर छापेमारी मीडिया पर हमला था उनके लिए दूरदर्शन के पत्रकार की हत्या के कोई मायने नहीं थे।
कमाल तो यह कि दूरदर्शन के पत्रकार की हत्या के विरोध में आयोजित शोक सभा का विरोध इस आधार पर कर दिया कि पत्रकारों ने नक्सल क्षेत्र में रिपोर्टिंग के लिए पुलिस का सहारा लिया। शोकसभा की अगुआई करने वाले दूरदर्शन के वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने मंच से इस बात के लिए क्षोभ प्रकट किया कि पत्रकारों का संरक्षक समझे जाने वाले एडिटर्स गिल्ड ने इस महापाप और अत्याचार के लिए दुख भी प्रकट नहीं किया। एक पत्रकार की हत्या पर मीडिया का वो हिस्सा गायब रहा जो ‘पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की आजादी’ का खुद को झंडावदार समझता है। पिछले साल मनीलांड्रिंग के आरोपी एनडीटीवी के प्रमोटर प्रणय राय के ठिकानों पर छापेमारी को पत्रकारिता पर हमला कहने वाले कुलदीप नैयर तो स्वर्ग सिधार गए लेकिन उस सभा की अगुआई करने वाले अरुण शौरी,एच के दुआ, शेखर गुप्ता,सिद्धार्थ वरदराजन, प्रणय राय, राजदीप सरदेसाई व रविश कुमार समेत सभी बड़बोले गायब थे।
2016 में कन्हैया कुमार की कोर्ट में पेशी के दौरान कुछ वकीलों द्वारा कुछ पत्रकार के साथ बदसलूकी को पत्रकारिता पर हमाला बताकर प्रेस क्लब से सुप्रीम कोर्ट तक मार्च की अगुआई करने वाले दिल्ली में नक्सलियों के शुभ चिंतक पत्रकारिता के इन ठेकेदारों के लिए, लोकतांत्रिक देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण खबर की तलाश में गए पत्रकारों की हत्या के मायने नहीं थे।
नक्सल प्रेमी पत्रकारों के रुख से साफ है कि पत्रकारिता के नाम पर अभिव्यक्ति की आजादी का नारा देने वाले ये छद्म पत्रकारो की आस्था पत्रकारिता के बदले कहां है? उनका अपना एजेंडा है! नक्सलियों द्वारा पत्रकार की हत्या पर चुप्पी साधे, ‘बोल की लब आजाद हैं’ की ठेकेदारी करने वालों को जब लगा कि अपनी ड्यूटी पर सेना की तरह लगे कर्मयोगी पत्रकार की हत्या को लेकर देश भर में आक्रोश है तो उन्होने नया पैंतरा दिया कि पत्रकारों की हत्या गलती से हो गई। दंतेवाड़ा के दरभा डिविजन के सचिव साइनाथ ने बाकायदा हाथ से चिट्ठी लिख कर पत्रकार की हत्या पर माफी मांगी है। साइनाथ ने लिखा है … “पत्रकार हमारे दुश्मन नहीं हैं। हमें संदेह हुआ कि वो पुलिस वाले हैं गलती से उनकी हत्या हो गई है”। जबकि शोक सभा के दौरान बातचीत के क्रम में दूरदर्शन की उस टीम अगुआई करने वाले पत्रकार धीरज और असिस्टेंट कैमरामैन मोर मुकट ने कहा कि जब वे लौट रहे थे तो गांव वाले कह रहे थे कि नक्सली एक साथ जुटे थे और कह रहे थे मीडिया वालों को मारो छोड़ना मत।
URL: Naxalites of Dantewada apologized for assassination of DD news journalist behest of ‘urban Naxal journalists’?
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