
हे सनातनियों, तेरा कल्याण सिर्फ गुरु, गोविंद और ग्रंथ ही कर सकता है, कोई नेता, बाबा या व्यक्ति नहीं।
असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक शुकनीति परसों लिखी थी- “दंड के भय से ही प्रजा अपने धर्म में स्थिर रहती है। अतः प्रशासक को दंडधर ही बने रहना चाहिए।” इस पर एक मित्र ने फेसबुक पर टिप्पणी की, “तो इसका मतलब गुरु बृहस्पति अब शुक्राचार्य के आगे नगण्य हो गये?” मैं जानता हूं कि इस मित्र का देव गुरु बृहस्पति या असुर गुरु शुक्राचार्य या संपूर्ण सनातन धर्म पर कोई अध्ययन नहीं होगा, अन्यथा यह प्रश्न मन में उठता ही नहीं?
और यह सिर्फ इस मित्र के साथ नहीं, अधिसंख्य हिंदुओं के साथ है। अब्राहमिक अपनी किताबों का पाठ प्रतिदिन करते हैं, लेकिन सनातनधर्मी सब कुछ दूसरों पर और कल पर छोड़ कर खाता, कमाता, अघाता पशुवत जीवन जीता चला जाता है! मनुष्य होने की कोई प्रेरणा उसके अंदर है ही नहीं! कथा आती है, देवासुर संग्राम में जब बहुत से असुर मारे गए तब असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें अपनी संजीवनी विद्या द्वारा पुनर्जीवित कर दिया।
यह देख देवताओं के गुरु बृहस्पति ने अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या सीखने के लिए भेजा था। गुरु बृहस्पति ने यह अहंकार नहीं किया कि मैं क्या कोई शुक्राचार्य से कम हूं कि संजीवनी विद्या सीखने अपने पुत्र को उनके पास भेजूं? कच बकायदा शुक्राचार्य के पास पहुंचा और अपना परिचय भी दिया। शुक्राचार्य प्रसन्न हुए कि उनके मित्र व देवताओं के गुरु बृहस्पति का पुत्र मुझसे ज्ञानदान लेने आया है। उन्होंने उसे अपना शिष्य बनाया। असुरों ने बार-बार कच की हत्या की और शुक्राचार्य ने उन्हें अपनी संजीवनी विद्या से जीवित किया।
कथा लंबी है, परंतु निष्कर्ष यह है उस विद्या को सीखने के लिए कच ने अपने जीवन का बलिदान कर दिया था, परंतु वह ज्ञान अपने पिता बृहस्पति तक पहुंचाने में वह सफल रहे थे! हमारे पुराणों की यह कथा बताती है कि ज्ञान प्राप्ति के लिए अपना जीवन भी उत्सर्ग किया जा सकता है। लेकिन वर्तमान हिंदुओं ने तो ज्ञान प्राप्ति की शिक्षा को ही भुला दिया है!
हिंदू अपना एक भी शास्त्र पढ़ने को तैयार नहीं हैं, बिना ज्ञान के ही पंचमक्कारों के वशीभूत अपने ग्रंथ और ज्ञान को अंधविश्वास, पाखंड आदि कह अपनी मूढ़ता का गर्व के साथ प्रदर्शन करने में लगा है, बिना विद्या के हर बात में कुतर्क पर उतर जाता है, उन्हें स्वयं की जगह अपने नेता और बाबाओं पर विश्वास है, वह चाहता है कि उसे कुछ न करना पड़े, बस कोई नेता और बाबा आकर उसे उबार ले! हिंदुओं की मानसिकता ‘टू मिनट नूडल्स’ की तरह हो चली है!
ऐसे में जब कोई नेता या बाबा उसे ठग लेता है तो हिंदू निराशा में अपना आत्मबल खो देता है और फिर हमारी अधोगति हो जाती है। हिंदुओं की आत्महीनता की यह स्थिति केवल उसके अज्ञान की उपज है। इसमें किसी नेता, बाबा का दोष नहीं, स्वयं हिंदुओं का दोष है!
अतः हे हिंदू, दुनिया को ज्ञान से प्रकाशित करने वाले सनातन धर्म के किसी भी एक शास्त्र को उठा, उसका मनन कर, स्वयं को अहंकार रहित होकर ईश्वर को सौंप दे और फिर देख, तू स्वयं समाज को बदलने के लायक हो जाएगा। तुम्हें किसी की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। तेरा कल्याण सिर्फ गुरु, गोविंद और ग्रंथ ही कर सकता है, कोई नेता, बाबा या व्यक्ति नहीं। धन्यवाद।
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