बॉम्बे उच्च न्यायालय ने उन वस्तुओं की बिक्री पर रोक लगा दी है, जिनके चमत्कारिक होने का दावा किया जाता है। जैसे चमत्कारिक लॉकेट या किसी मूर्ति को चमत्कार के दावे के साथ बेचा जा रहा है। लेकिन बड़ा प्रश्न है कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद ऐसे विज्ञापनों पर रोक लग सकेगी? ये प्रकरण सीधा-सीधा सूचना व प्रसारण मंत्रालय से जुड़ा हुआ है।
यदि मंत्रालय इसके बारे में निर्देश जारी कर भी देता है तो क्या गारंटी है कि मंत्रालय का निवेदन स्वीकारा ही जाएगा। निवेदन शब्द का प्रयोग मैंने इसलिए किया क्योंकि मनोरंजन व विज्ञापन उद्योग को चेतावनी देने की क्षमता तो केंद्र में नहीं है इसलिए वे निवेदन ही कर सकते हैं। केंद्र के निर्देशों का कैसे मज़ाक बनाया जाता है, उसका एक उदाहरण देखिये।
सन 2017 में केंद्र सरकार ने टीवी चैनलों पर सुबह 6 बजे से लेकर रात 10 बजे के बीच कंडोम के विज्ञापन दिखाने पर रोक लगा दी थी। और मज़े की बात है कि केंद्र के इस निवेदननुमा आदेश का पालन एक दिन भी नहीं किया गया। आज चार वर्ष बीतने को आए लेकिन कंडोम के विज्ञापन सुबह 6 बजे से बेरोकटोक चलाए जाते हैं। हमें तो याद नहीं कि इसे लेकर केंद्र इन चार वर्षों में कभी कठोर हुआ हो।
कंडोम विज्ञापन पर रोक का आदेश तत्कालीन मंत्री स्मृति ईरानी ने दिया था। एडवरटाइज़िंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ़ इंडिया (एएससीआई) की तत्कालीन सेक्रेटरी जनरल श्वेता पुरंदरे ने ही ये सुझाव दिया था कि कंडोम विज्ञापन दिखाने का समय निश्चित होना चाहिए। श्वेता पुरंदरे ने उस समय ‘वॉटरशेड टाइमिंग’ का हवाला देकर ये बात कही थी।
वॉटरशेड टाइमिंग की महत्ता के बारे में श्वेता को मालूम था लेकिन केंद्र को इसका महत्व आज तक पता नहीं चल सका है। वॉटरशेड टाइमिंग’ का आयडिया विश्व के उन देशों ने अपना लिया है, जहाँ का समाज भारत के समाज से अधिक खुला और उन्मुक्त है। अमेरिका और ब्रिटेन में टीवी प्रसारणों पर ‘वॉटरशेड टाइमिंग’ लागू है।
इन देशों में बच्चों के टीवी देखने के समय सेक्स जैसे विषयों पर धारावाहिक, फिल्म और कंडोम के विज्ञापन नहीं दिखाए जाते। विगत तीन दशकों के भयंकर परिणामों के बाद अब पश्चिम को ‘बचपन’ बचाने की चिंता होने लगी है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जब कंडोम विज्ञापनों पर रोक लगाई गई थी, तब इस सनातनी राष्ट्र में प्रश्न उठाए गए कि यदि विज्ञापन रोक दिए जाएंगे तो ‘सेक्स एजुकेशन’ कैसे होगा।
सनी लिओनी के विज्ञापन से ‘सेक्स एजुकेशन’ देने की सोच वाकई कमाल की है। शायद इसी सोच का नतीजा है कि देश में सुबह 6 बजे से कंडोम के विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। चमत्कारिक वस्तुओं के विज्ञापन पर रोक लगाने के आदेश का पालन नहीं होगा, इस बात को सूचना व प्रसारण मंत्रालय का लचर रवैया आश्वस्त कर देता है।
जैसे केंद्र अपने चार वर्ष पुराने महत्वपूर्ण आदेश का पालन ही नहीं करवा पा रहा है। प्रकाश जावड़ेकर मानें न मानें, उनके इस पद पर आने के बाद मनोरंजन उद्योग और विज्ञापन जगत खुलकर अश्लीलता दिखा रहा है। मंत्री जी अक्सर सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार करते पाए जाते हैं।
हर मंत्रालय में इस काम के लिए एक प्रवक्ता का पद होता है। केंद्र सरकार ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण पद को सरकारी घोषणाओं का मंच बनाकर रख दिया है। देश के प्रधानमंत्री ही अब एकमात्र आशा की किरण है। यदि वे इस मंत्रालय के तार नहीं कसेंगे तो इसके ‘बेसुरे राग’ 2024 के आम चुनाव में भाजपा को बहुत परेशान करेंगे। जावड़ेकर की विदाई और एक सख्त मंत्री की मांग आज और अभी पूरी होनी चाहिए।
Prakash javdekar को हटाना चाहिए