श्वेता पुरोहित। भगवान् कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता (१०।२६) – में कहा कि ‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्’ अर्थात – मैं वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूँ विविध पुराणों में पीपल के माहात्म्य को प्रतिपादित किया गया है। स्कन्दपुराण के अनुसार अश्वत्थवृक्षके मूलमें विष्णु, तनेमें केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तोंमें भगवान् श्रीहरि और फलोंमें सब देवताओं से युक्त अच्युत निवास करते हैं।
मूले विष्णुः स्थितो नित्यं स्कन्धे केशव एव च । नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान् हरिः ॥ फलेऽच्युतो न संदेहः सर्वदेवैः समन्वितः ।
(स्कन्द० नागर० २४७।४१-४२)
पीपलके गुणोंका अध्ययन करनेपर पता लगता है कि यह वृक्ष पर्यावरणको निरन्तर शुद्ध करता रहता है। प्रकृतिमें यही एकमात्र वृक्ष है जो बराबर प्राणवायु ‘ऑक्सीजन’ छोड़ता रहता है जबकि अन्य वृक्ष रातको कार्बन- डाइ-ऑक्साइड या नाइट्रोजन ही छोड़ते हैं।
गाँवोंमें प्रत्येक घर तथा मन्दिरके पास आपको प्रायः पीपल या नीमके वृक्ष मिल जायँगे। पीपल पर्यावरणको शुद्ध करता है तथा नीम हमारा गृह- चिकित्सक है। नीमसे हमारी कितनी ही व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। आज पर्यावरणको शुद्ध रखना हमारी प्राथमिकता है।
हिन्दुओंमें पीपल, तुलसी, बेल आदि वृक्षोंकी पूजा की जाती है; कारण उनका हमारे जीवनपर अत्यधिक उपकार है। अतः उनकी पूजा करके उनके प्रति हम अपनी कृतज्ञताका ज्ञापन करते हैं। हमारे जीवनमें जिन प्राकृतिक तत्त्वोंका अत्यधिक उपकार है, उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रदर्शित करना हमारा नैतिक दायित्व है।
भगवान् बुद्धको गयामें पीपलवृक्षके नीचे ही ज्ञान प्राप्त हुआ। इस वृक्षके नीचे एकाग्रचित्त हो बैठकर देखें तो यह अनुभव होगा कि पत्तोंके हिलनेकी मधुर ध्वनि एकाग्रचित्ततामें सहायक होती है। पीपलसे निरन्तर ऑक्सीजनका निकलना तथा पत्तोंकी मधुर आवाज हमारे चित्तको साधनामें सहायक बनाती है।
भारतीय जड़ी-बूटियाँ अपने गुणोंमें अद्भुत हैं। इनमें तथा पेड़-पौधोंमें परमात्माने दिव्य शक्तियाँ भर दी हैं। भारतीय वन सम्पदाके गुणों और रहस्योंको जानकर विश्व आश्चर्यचकित रह जाता है। भारतीय जड़ी-बूटियोंसे मनुष्यका कायाकल्प हो सकता है, खोया हुआ स्वास्थ्य एवं यौवन पुनः लौट सकता है, भयंकर से भयंकर रोगोंसे छुटकारा पाया जा सकता है, आयुको लम्बा किया जा सकता है। आवश्यकता है इनके गुणोंका मनन-चिन्तन कर इनके उचित उपयोगकी । इनका पूरा लाभ लेने के लिये इनका सेवन एवं उपयोग आवश्यक है।
पीपल की पूजा, अर्चना आदि करने से, थोड़ी देरके लिये पीपल के सांनिध्यमें रहने से, उससे नि:सृत प्राणवायु (ऑक्सीजन) के सम्पर्कमें रहनेसे लाभ मिलता है। इसीलिये हमारे धर्मशास्त्रों में पीपलवृक्ष काटने का निषेध किया गया है। इस वृक्षको बिना प्रयोजन के काटना अपने पितरों को काट देने के समान है। ऐसा करने से वंशकी हानि होती है। यज्ञादि पवित्र कार्योंके उद्देश्यसे इसकी लकड़ी काटने से कोई दोष न होकर अक्षय स्वर्गकी प्राप्ति होती है।
अश्वत्थवृक्ष की पूजा करने से समस्त देवता पूजित हो जाते हैं—
छिन्नो येन वृथाश्वत्थश्छेदिताः पितृदेवताः ।
यज्ञार्थं छेदितेऽश्वत्थे ह्यक्षयं स्वर्गमाप्नुयात्॥
अश्वत्थः पूजितो यत्र पूजिताः सर्वदेवताः ॥
(अश्वत्थस्तोत्रम्)
अगर कहीं काटना ही पड़ा तो उसकी अलगसे विधि बतायी गयी है। यह शास्त्रीय व्यवस्था इसलिये दी गयी कि हम इन वृक्षोंके प्रति कृतघ्न नहीं कृतज्ञ हों।
हमारा अथर्ववेद कहता है कि जहाँ पीपलका वृक्ष होता है वहाँ ज्ञानी – ध्यानी अर्थात् प्रबुद्ध लोग रहते हैं। अतः पीपल ज्ञानवान् बनानेमें भी सहायक है। पीपलमें फूल नहीं लगते, सीधे फल लगते हैं, इसीलिये इसका एक नाम ‘गुह्य – पुष्पक’ भी है। पीपल घनी छाँव देता है, स्वस्थ रखता है, अनेक रोगोंको दूर करता है। कोई भी प्राणी इसके नीचे आकर सुखकी श्वास ले सकता है। पीपलकी छाया और पत्तोंसे छनी हुई हवा मानसिक चेतनता तथा स्फूर्ति प्रदान करती है। पीपल केवल नीरोग ही नहीं रखता, दीर्घायु भी बनाता है। यह वृक्ष स्वतः लम्बी आयुवाला है। पक्षी इसके फल खाकर जहाँ कहीं भी जाकर बीट करते हैं, उसमें स्थित पीपलके बीज बिना किसी सहायताके वहाँ उग आते हैं। पीपलके पञ्चाङ्ग (जड़, डंठल, छाल, फल तथा शाखा) – का यथोचित सेवन अत्यन्त लाभप्रद है।
पीपलके वृक्षकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अन्तरिक्ष एवं पृथ्वीके बीचकी सभी विषैली गैसोंको शुद्ध करके वायु-मण्डलमें ऑक्सीजन छोड़ता है। दमा एवं तपेदिकके रोगियोंको पीपलके नीचे रहनेकी सलाह दी जाती है। पीपलवृक्ष कितना ही सघन क्यों न हो जाय, सूर्यको किरणोंको ठंडा करके धरतीतक आने देता है। पीपलके नीचे दिनमें कभी भी अँधेरा नहीं रहता।
वेदमें पीपलको अमृतमय माना गया है । ‘तत्रामृतस्य चक्षणम्’ अर्थात् पीपलका विधिवत् सेवन करनेस अमृतप्राप्ति होती है।
जहाँ पीपल होता है वहाँ शिवलिङ्गकी स्थापना की जाती है, यह परम्परा सदियोंसे चली आ रही है।
विद्वान् कहते हैं कि पीपल एवं शिवकी तरह सभी मनुष्योंको समाज और राष्ट्रके लिये कल्याणकारी एवं उपयोगी होना चाहिये । वेदने बताया है कि कुष्ठ (चर्मविकार और फोड़े-फुंसी) – से मुक्तिके लिये पीपलकी उपासना करनी चाहिये।
पीपल कर्मयोगकी भी शिक्षा देता है। पीपलके पत्ते तब भी हिलते रहते हैं जब अन्य पेड़ोंके पत्ते नहीं हिलते। इसी कारण पीपलका एक नाम ‘चलपत्र’ है। अर्थात् जिसके पत्ते लगातार स्पन्दित एवं वायुसे तरंगित होते रहते हैं। पीपलके पत्तोंका रस, कोंपलें और नर्म शाखाएँ घोंट-पीसकर सेवन करनेसे वे तुरंत नीरोग करते हैं, पाचनमें हलके होते हैं एवं सब मौसममें सबके लिये अनुकूल हैं। नवजात शिशुसे लेकर वृद्धोंतकके लिये पीपल हितकारी है। श्वास, दमा, तपेदिक, ब्रोंकाइटिस और डिप्थीरियाके रोगियोंके लिये तो पीपल भगवान्का दिया हुआ वरदान है।
यूनानी चिकित्सा-पद्धतिने भी पीपलके महत्त्वको अपने ग्रन्थोंमें उद्धृत किया है। पीपलके किस अङ्ग अर्थात् जड़, छाल, पत्ते, फल, डंठलका किस विधिसे किस रोगमें प्रयोग करें- इसका उल्लेख आयुर्वेदके ग्रन्थोंमें विस्तारसे मिलता है। आयर्वेदके अनुसार अश्वत्थ मधुर, कषाय और शीतल है। इसके फलके सेवनसे रक्त-पित्त, विषदाह, शोथ एवं अरुचि आदि दूर होते हैं। इस वृक्षकी कोमल छाल एवं पत्तेकी कली पुरातन प्रमेहरोगमें अत्यन्त लाभप्रद है। पीपलके फलका चूर्ण अत्यन्त क्षुधावर्धक है।
अश्वत्थवृक्षका रोपण करनेवाले व्यक्तिकी वंश-परम्परा कभी समाप्त नहीं होती, अपितु अक्षय रहती है। इसके आरोपणसे ऐश्वर्य एवं दीर्घायुकी प्राप्ति होती है। तथा पितृगण नरकसे छूटकर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं-
अश्वत्थः स्थापितो येन तत्कुलं स्थापितं ततः ।
धनायुषां समृद्धिस्तु पितृन् क्लेशात् समुद्धरेत् ॥
इस प्रकार पीपल धार्मिक, आयुर्वेदिक एवं सामाजिक सभी दृष्टिकोणोंसे भारतीय जनमानसके लिये आराध्य, वन्द्य एवं सेव्य है।