एक रिपोर्टर के रूप में मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे बहुत सारी बीट (रिपोर्टिंग का क्षेत्र/विभाग) पर कार्य करने का अवसर मिला है। अन्यथा बहुत सारे पत्रकार तो एक ही बीट पर काम करते-करते जीवन गुजार देते हैं! इतने सारे बीट पर काम का अवसर मेरी योग्यता, और कभी-कभी मुझे सजा के तौर पर मिला, और मैं काम करने के साथ सीखता चला गया।
मेरे सभी संपादक भी मेरे इस फेसबुक प्रोफाइल से जुड़े हैं, जो यह जानते हैं कि मैंने आज तक एक भी बीट पर रिपोर्टिंग में अपने संस्थान को कभी निराश नहीं किया है। अखबार की रिपोर्टिंग गनमाईक लेकर घूमने वाले टीवी रिपोर्टर से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण और गहराई लिए होती है। 2012 से पहले लंबे समय तक मैंने रेलवे रिपोर्टर के तौर पर भी काम किया है, दैनिक जागरण में भी और नयीदुनिया में भी।
रेलवे के कई वरिष्ठ अधिकारी मेरे फेसबुक मित्र हैं, जो यह जानते हैं कि मैं रेलवे या उससे संबंधित सरकारी विभागों जैसे IRCTC, RPF, GRP etc की अनियमितताओं, भ्रष्टाचार आदि पर नियमित रिपोर्टिंग करता था, और वरिष्ठ अधिकारी कई बार इसे सराहते थे कि इससे सही विजिलेंस हो जाती है और विभाग में सुधार की कार्रवाई करने का अवसर मिलता है।
मुझे कभी याद नहीं आता कि 2014 से पहले IRCTC या रेलवे या किसी अन्य क्षेत्र की अनियमितताओं या भ्रष्टाचार पर लिखा हो तो इसे कभी तत्कालीन प्रधानमंत्री पर हमला माना गया हो, या प्रधानमंत्री से इसे जोड़ा गया हो! एक पर एक बड़ी रिपोर्ट लिखी, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार विभागीय अधिकारी ही होते थे, वही वर्जन देते थे, वही कार्रवाई करते थे। प्रधानमंत्री कभी ऐसी बातों के लिए जिम्मेदार नहीं होते। प्रधानमंत्री का इन छोटी विभागीय खबरों से कुछ लेना-देना भी नहीं होता।
लेकिन 2014 के बाद जिस तरह एक ‘सरकारी हिंदू’ जमात (यही उचित शब्द है इस वर्ग के लिए) उभरी है, वो हर बात को प्रधानमंत्री से जोड़ कर पत्रकारों, स्वस्थ आलोचकों, शिकायतकर्ता नागरिकों को मुद्दे उठाने से रोकने का प्रयास सोशल मीडिया के जरिए लगातार करती रही है। असल में सरकार के ये ‘स्वघोषित और मूढ़ प्रवक्ता’ स्वयं प्रधानमंत्री मोदी की गरिमा से खेलते हैं, क्योंकि शौचालय, सड़क जैसी आम समस्या उठाने पर भी ये उसे प्रधानमंत्री पर हमला मान कर पूरे दिन सोशल मीडिया पर ‘श्वान आचरण’ करते पाए जाते हैं!
ताज्जुब तो तब होता है जब कुछ ‘कथित पत्रकार’ भी, जिनको जमीनी रिपोर्टिंग का अनुभव नगण्य है, वो भी ‘सरकारी पट्टा पहने दास’ जैसा आचरण उछल-उछल कर प्रदर्शित करने लगते हैं!
अब कल की ही रिपोर्ट लीजिए:-
१) दो ब्रिटिश नागरिकों को आगरा के एग्जीक्यूटिव लाउंज में पेशाब करने पर लाऊंज में न्यूनतम निर्धारित समय तक रुकने का किराया वसूल लिया गया, GST के साथ।
२) दोनों ब्रिटिश नागरिकों ने इसकी जानकारी अपने दूतावास को दी।
३) मीडिया के लिए यह खबर है, जिसे लगभग सभी मीडिया ने कवर किया।
४) IRCTC के कर्मचारी नियमों से बंधे होते हैं। वह वही करेंगे जो उनके रूल बुक में लिखा होता है। इसलिए उन्होंने पूरे लाउंज का चार्ज लगा दिया।
५) ब्रिटिश नागरिकों का कहना भी उचित था कि मैंने लाउंज यूज किया ही नहीं, केवल पेशाब किया था।
६) मीडिया की रिपोर्ट एक तो जन जागरुकता के लिए थी कि आप लाउंज में जाएं तो रेट पूछकर जाएं।
७) दूसरा कि यदि इस रिपोर्टिंग से बड़े अधिकारियों के कान तक बात पहुंचती है तो वो रूल बुक में पेशाब आदि कम समय के लिए एक नया श्रेणी जोड़ सकते हैं, जिससे नागरिकों को सुविधा होगी।
८) यह किसी तरह से फेक न्यूज नहीं थी। IRCT, ब्रिटिश नागरिक और मीडिया- तीनों अपनी-अपनी जगह सही थे।
परंतु ‘सरकारी हिंदुओं’ ने तो इस मामूली रिपोर्टिंग को भी प्रधानमंत्री पर हमला मान कर, ‘फेक न्यूज है’, ‘तुम सस्ते रवीश हो चुके हो’, ‘आप कुंठित हैं’- जैसे ‘मूढ़ भेड़ों’ सदृश्य आचरण को प्रदर्शित करना आरंभ कर दिया, यह जानते हुए कि मैंने कोई रिपोर्टिंग नहीं की है इस पर! केवल ? के साथ मीडिया की कटिंग को अपने फेसबुक पर शेयर किया था।
वास्तव में लोकतंत्र के लिए कोई सरकार खतरा नहीं होती, सरकार के ‘मूढ़ भेड़ सदृश्य ‘सरकारी दास’ खतरा होते हैं, जो हर बात में सरकार की चापलूसी से जनता और सरकार के बीच निर्वात (वैक्युम) पैदा कर देते हैं! वर्तमान में ‘सरकारी हिंदू’ आम नागरिक और सरकार के बीछ ‘स्वघोषित दलाल’ की भूमिका में आ गये हैं! सरकार को नुकसान आलोचकों से कम, इन ‘मूढ़ भेड़ सदृश्य दलालों’ से अधिक है, क्योंकि ये ‘भेड़ें’ जनता को चिढ़ा रही हैं, जिसका असर मतदान पर भी पड़ सकता है!
हर बात को प्रधानमंत्री मोदी से जोड़ने के कारण ये ‘मूढ़ भेड़ें’ उनकी गरिमा को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। शास्त्रों ने ऐसे ‘मूढ़ों’ के कारण ही शायद कहा है, ‘मूर्ख मित्र से कहीं अच्छा समझदार शत्रु होता है!’ प्रधानमंत्री मोदी बार-बार कहते हैं कि आप हमारी सूक्ष्मतर आलोचना करें। लेकिन उन्हें क्या पता कि चंद ‘मूढ़ भेड़ें’ सड़क और शौचालय तक से उन्हें सीधे जोड़ कर जनता व उनके बीच ‘लट्ठ’ लेकर खड़े हो गये हैं!
‘भेड़ें’ हमेशा ‘भेड़ें’ होती हैं, उनसे समझदारी की उम्मीद बेमानी है, फिर भी चूंकि ये हिंदू हैं, इसलिए इन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए सच लिखना पड़ता है। ‘मूढ़ भेड़ें’ यदि चाहती हैं तो मनमोहन जमाने की अपनी एक के बाद एक रिपोर्ट यहां डालना शुरू कर दूंगा, जिसके बाद उनका ‘2014 के बाद आप बोलने लगे हैं’ का नारा भी फुस्स हो जाएगा! मानसिक रूप से 2014 के बाद पैदा हुए ये ‘मूढ़ स्वघोषित प्रवक्ता’ ही सरकार को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं!