विपुल रेगे। अयोध्या में 22 जनवरी को श्रीराम मंदिर संपूर्ण विश्व को समर्पित किया जाना है। हाल ही में मंदिर के गर्भगृह के फोटोग्राफ्स बाहर आए हैं। गर्भगृह की संरचना को लेकर सनातन का एक धड़ा संतुष्ट नहीं दिखाई देता। हमारे सबसे विशिष्ट आराध्य के लिए बनने वाले मंदिर के मापदंड क्या होने चाहिए, ये तो बहस का विषय है लेकिन वर्तमान में राम मंदिर का गर्भगृह देख एक सहज चिंता हमारे बीच पसर गई है। हज़ारों लोगों ने इस मंदिर के लिए अपने प्राण दिए हैं। प्राणों का बलिदान ‘कारसेवक काल’ के सैकड़ों वर्ष पहले से होता रहा है। इतने बलिदानों की नींव पर बने मंदिर की निर्माण शैली पर सवाल उठ रहे हैं। हालाँकि सवाल पूछने वालों को ‘कांग्रेसी’ और ‘देशद्रोही’ कहकर छुटकारा पा लेना अब आसान हो चला है।
हिंदुत्व के केसरिया ध्वज को लेकर सत्ता में आई सरकार इठलाती हुई सिंहासन पर बैठी, तब ये ज़रा भी अनुमान नहीं था कि दस वर्ष पूर्ण होते-होते विराट सनातन का एक जागरुक धड़ा इस तरह सरकार के समक्ष खड़ा हो जाएगा। आज राम मंदिर के गर्भगृह की शैली को लेकर उठे प्रश्नों को तर्कहीन तलवार से काटने की कोशिश हो रही है। राम मंदिर के गर्भगृह की निर्माण शैली पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। इसे जानने के लिए हमें विश्वभर के प्राचीन मंदिरों को देखने की आवश्यकता है। राम मंदिर का गर्भगृह नियमों से विपरीत बनाया दिखाई दे रहा है। इससे ये बहस छिड़ गई है कि मंदिर का गर्भगृह कैसा होना चाहिए।
श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठ के वर्तमान 145 वें श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी ने भी राम मंदिर को ‘सेकुलर’ बता दिया है। ‘विश्वकर्मा वास्तु शास्त्र’ के अनुसार मंदिर का प्रत्येक हिस्सा मानव तन के विभिन्न अंगों के समान होता है। ‘गर्भगृह’ मंदिर का सबसे महत्त्वपूर्ण व पवित्र स्थान होता है। मंदिर के इसी क्षेत्र में भगवान की मूर्ति या चित्र की स्थापना की जाती है, क्योंकि यह भगवान का निवास स्थान माना गया है। हमारे सभी प्रमुख तीर्थों को देखें तो गर्भगृह नियमों का पालन करते हुए बहुत छोटे बनाए गए हैं। यदि माता का गर्भ नियत आकार से बड़ा या छोटा होगा, तो क्या शिशु सृजन की प्रक्रिया सही ढंग से हो सकेगी ? मंदिर को लेकर भी यही नियम लागू होते हैं।
मंदिर को मानव देह के अनुरुप बनाया जाता है और जहाँ मनुष्य का आज्ञाचक्र एक छोटे बिंदु के समान होता है, वहां गर्भगृह स्थापित किया जाता है। क्या अयोध्या में मंदिर निर्माण के प्राचीन नियमों की अनदेखी की गई है ? हाँ ये मंदिर भव्य है लेकिन श्रीराम जी के मंदिर निर्माण का पैमाना होयसल के मंदिरों जैसा होना चाहिए। होयसल के मंदिरों में एक ईश्वरीय स्पर्श अनुभूत होता है। उन्हें देखने वाला ईश्वर के साथ उन प्राचीन इंजीनियर्स को नमन करता है, जो ऐसा अद्भुत आश्चर्य रचकर चले गए। आज हमारे पास धन है, आधुनिक तकनीक है और वर्षों प्राचीन ‘विश्वकर्मा वास्तु शास्त्र’ है, ‘अगम शास्त्र’ है। आधुनिक विज्ञान और प्राचीन ज्ञान के मेल से आज भी हम एक आश्चर्य रच सकते थे। इस मंदिर को भी साक्षात् नमन है, क्योंकि रामलला यहाँ विराजेंगे।
लेकिन नियमों की अनदेखी कर बनाए मंदिर में श्री राम जी की ऊर्जा का निर्वहन कैसे होगा, जब मंदिर का गर्भगृह नियमानुसार नहीं बनाया गया है। यदि बहुत से लोगों को मंदिर की निर्माण शैली समझ नहीं आ रही तो इसका कारण नियुक्त किये गए मुख्य कारीगर है। मकराना के बिजनेसमैन सेठ मोहम्मद रमज़ान ने मंदिर के लिए संगमरमर की डिलीवरी की है। संगमरमर निकालने वाली कंपनी भी मकराना के एक मुस्लिम उद्योगपति की है। राम मंदिर के लिए डिजाइन तैयार करने से लेकर नक्काशी में जुटे अधिकांश कारीगर मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। आगरा से कई मुस्लिम शिल्पकार मंदिर निर्माण के लिए बुलाए गए थे।
मीडिया ये सब बता ही रहा है कि राम मंदिर के दरवाज़ों की नक्काशी मुस्लिम कारीगर कर रहे हैं। क्या ये समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की आवश्यकता है कि ये मंदिर विश्वभर के हिन्दुओं के लिए बनाया जा रहा है और इसमें सेकुलरिज्म डालने का मीडिया या सरकार का कोई अधिकार नहीं होता। श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी ने इसलिए ही मंदिर को सेकुलर बताया है। हमारे आराध्य का एक ही मंदिर हमें सैकड़ों वर्षों की प्रतीक्षा के बाद मिल रहा है लेकिन यहाँ मीडिया, सरकार, इन्फ्लुएंसर्स, वामपंथी इस पर टूट पड़े हैं।
गंगा-जमुनी तहजीब बीच में जबरन ही घुसेड़ी जा रही है। राम मंदिर निर्माण हिन्दुओं का निजी मामला है लेकिन उसके सरकारीकरण और मीडियाकरण के कारण वामपंथी कीटाणु प्रवेश कर गए हैं। आप हर चीज का पसमांदाकरण करने पर उतारु है और अब मंदिरों को भी नहीं छोड़ा जा रहा। इस पर भी हम जागने को तैयार नहीं, ऐसे ही हम बार-बार गुलाम नहीं बने। हमारे भीतर की मासूमियत को राजनीतिज्ञ जानते-पहचानते हैं और इसलिए हमको लूटना बहुत आसान होता है। हम हिन्दुओं को।