विपुल रेगे। ‘ऑप्टिमस प्राइम’ एक ऐसा कैरेक्टर है, जिसे भारतीय दर्शक सन 2007 से देखते आ रहे हैं। जब वह लौटता है तो दुनियाभर के दर्शक थियेटर्स का रुख़ करते हैं। इस बार वह पांच साल बाद सिल्वर स्क्रीन पर लौटा है। ‘ट्रांसफ़ॉर्मर्स: राइज़ ऑफ़ द बीस्ट्स’ ट्रांसफॉर्मर्स सीरीज की सातवीं फिल्म है। रिलीज होने के साथ ही ये फिल्म युवा और टीनएजर्स दर्शकों की विश लिस्ट में शामिल हो गई है। इस बार ऑटोबॉट्स बहुत कुछ नया लेकर आए हैं। उनके परिवार में ‘मैक्सिमल्स’ की एंट्री हो गई है। हमेशा की तरह ट्रांसफ़ॉर्मर्स की सातवीं किश्त सफलता के रथ पर रौद्र गति से दौड़ रही है।
ट्रांसफ़ॉर्मर्स की सात फिल्मों में से पांच का निर्देशन माइकल बे ने किया है। माइकल का ट्रेक रिकार्ड उल्लेखनीय रहा है। उनके बाद Travis Knight ने सन 2018 में ट्रांसफ़ॉर्मर्स सीरीज की Bumblebee का निर्देशन किया था। ‘ट्रांसफ़ॉर्मर्स: राइज़ ऑफ़ द बीस्ट्स’ का निर्देशन स्टीवन केपल जूनियर ने किया है। वे माइकल बे की बराबरी तो नहीं कर सके हैं लेकिन एक रोमांचक और मनोरंजक फिल्म डिलीवर की है। वैसे माइकल बे परदे के पीछे से अपना मार्गदर्शन दे रहे हैं और वे इस फिल्म के निर्माताओं में से एक हैं।
निर्माताओं ने निश्चय किया कि सन 2017 में प्रदर्शित हुई The Last Knight के बाद कहानी को ‘रिबूट’ किया जाए। निर्माता निर्देशन में भी बदलाव चाहते थे ताकि आगामी फिल्मों के ट्रीटमेंट में एक नवीनता दिखाई दे। लिहाजा निर्देशन की कमान स्टीवन केपल जूनियर को दी गई। रिबूट होकर कहानी सन 1994 से शुरु होती है। पूर्व सैन्य इलेक्ट्रॉनिक्स विशेषज्ञ नूह डियाज अपने जीवन में संघर्षरत है। उसके पास नौकरी नहीं है और छोटा भाई गंभीर रोग से ग्रस्त है। ठीक इसी समय एलिस द्वीप पर एक संग्रहालय में, फिशबैक की ऐलेना खुद को एक कला विशेषज्ञ के रूप में साबित करने के लिए लड़ रही है।
एलेना के पास एक मूर्ति जाँच के लिए आई है। इस मूर्ति में एक ‘कोड की’ है, जिसकी सहायता से वर्षों से पृथ्वी पर फंसे ऑटोबॉट्स अपने ग्रह पर जा सकते हैं। इस प्राचीन ‘कोड की’ के दो टुकड़े कर अलग-अलग छुपाया गया है, ताकि ये आसानी से किसी के हाथ न आ सके। अच्छी बात ये है कि ऑटोबॉट्स का मुकाबला बहुत शक्तिशाली शत्रु से होता है, इस कारण दर्शक की उत्सुकता बढ़ जाती है। ‘मैक्सिमल्स’ की एंट्री रोमांचित करती है। ऑटोबॉट्स की तरह वे भी अपना रुप बदल सकते हैं।
फिल्म की कहानी रोचक है। प्रस्तुतिकरण सधा हुआ है। माइकल बे द्वारा स्थापित परंपरा को कायम रखने की अच्छी कोशिश की गई है। फिल्म टिकट का पैसा वसूल कराती है। थ्रीडी उच्च स्तरीय है। सीजी और वीएफएक्स कमाल के हैं। अच्छाई और बुराई के बीच चल रहे इस महाकाव्य का एक नया अध्याय दर्शकों को पसंद आया है। ट्रांसफ़ॉर्मर्स की मूल थीम ऑटोबॉट्स और मानव के बीच पनपे रिश्ते की है। उनकी दोस्ती की केमेस्ट्री ट्रांसफ़ॉर्मर्स का एकमात्र मानवीय भाव है।
लोहे की इन विचारवान मशीनों के सीने पर उग आया मानवीय फूल यदि हटा दिया जाए तो ‘ट्रांसफ़ॉर्मर्स में कुछ भी न बचेगा। वह मूल भाव यहाँ पूर्ण आत्मीयता से उपस्थित है, ये संतोष की बात है। छोटे बच्चे ये फिल्म बेहिचक परिवार के साथ देखने जा सकते हैं। इस सप्ताहांत आप चाहे तो सिल्वर स्क्रीन पर ‘मैक्सिमल्स’ से मुलाक़ात कर सकते हैं और Bumblebee की पोस्टर फाड़ एंट्री का आनंद उठा सकते हैं। थ्रीडी में इसे देखने का आनंद वैसा है है, जैसा उसल के साथ पोहा।