श्वेता पुरोहित। कालनेमि रामायण में एक मायावी राक्षस एवं लंकेश्वर रावण का भाई था। उसका पिता मारीच था जोकि असुर राज रावण का मामा था। कालनेमि का उल्लेख सनातन धर्म से संबंधित रामायण काव्य में अता है जब लंका युद्ध के समय रावण के पुत्र मेघनाद द्वारा छोड़े गए शक्ति बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गये तो सुषेन वैद्य ने इसका उपचार संजीवनी बूटी बताया जो कि हिमालय पर्वत पर उपलब्ध था।
हनुमान ने तुरंत हिमालय के लिये प्रस्थान किया। रावण ने हनुमान को रोकने हेतु मायावी कालनेमि राक्षस को आज्ञा दी। कालनेमि ने पहले तो रावण को समझाया कि वह हनुमान जी को रोकने में असमर्थ हैं लेकिन रावण के हठ करने पर वह तैयार हो गया।
कालनेमि हनुमान जी के हिमालय जाने के रास्ते में एक पहाड़ी पर गया व अपनी माया से साधु का रूप बना लिया।
इसके साथ ही उसने आसपास पवित्र झील, सरोवर, बाग व स्वयं की कुटिया का निर्माण किया। वह साधु के वेश में आसन्न ग्रहण करके बैठ गया व राम नाम का जाप करने लगा।
जब हनुमान जी ने आकाश में से उड़ते हुए एक साधु को राम नाम का जाप करते देखा तो उन्हें उत्सुकता हुई व वे उसे देखने नीचे आयें। कालनेमि ने हनुमान को वही थोड़ी देर विश्राम करने को कहा और कहा कि वह अपनी शक्ति से उन्हें कुछ पल में ही हिमालय पर्वत पर पहुंचा देंगे।
हनुमान जी विश्राम नही करना चाहते थे लेकिन जब साधु ने उन्हें बताया कि वे उन्हें एक पल में हिमालय पहुंचा देंगे तो वे उनकी बातों में आ गए। इसके बाद कालनेमि ने उन्हें पास की झील में स्नान करने को कहा। उस झील में एक मगरमच्छ था जिसे कालनेमि ने हनुमान की हत्या करने को कहा था।
जैसे ही हनुमान जी उस सरोवर में उतरे व स्नान करने लगे तो मगरमच्छ ने उन पर हमला कर दिया। हनुमान जी ने अपने बल व पराक्रम से उस मगरमच्छ का वध कर दिया। वध होते ही वह एक सुंदर अप्सरा में बदल गई। उस अप्सरा ने हनुमान जी को बताया कि वह एक ऋषि के श्राप के कारण मगरमच्छ का जीवन भोग रही थी। साथ ही उसने कालनेमि का रहस्य भी हनुमान जी को बता दिया।
जब हनुमान जी को कालनेमि के एक साधु वेश में राक्षस होने का पता चला तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। वे उसी समय कालनेमि के पास गए व उसी पहाड़ी पर उसका वध कर दिया।
हनुमान जी ने कालनेमि दानव का वध जिस जगह पर किया आज वह स्थान सुल्तानपुर जिले के कादीपुर तहसील में बिजेथुआ धाम महावीरन नाम से सुविख्यात है एवं इस स्थान पर “भगवान हनुमान” को समर्पित एक सुप्रसिद्ध पौराणिक मंदिर भी स्थापित है।
हनुमानजी के हाथों उद्धार पाने वाली मगरमच्छ पहले अप्सरा और राक्षस कालनेमि गंधर्व था. दोनों इंद्र की सभा में नाच गान कर सभा को रिझाते थे. एक दिन सभा में देवताओं के साथ कई ऋषि मुनि भी थे. उनके सामने संगीत के साथ दोनों ने नृत्य की प्रस्तुति दी तो सभी उनकी प्रशंसा की. पर सभा में बैठे दुर्वासा ऋषि ने प्रशंसा नहीं की.
ये देख अप्सरा व गंधर्व को ये सोचकर हंसी आ गई कि दुर्वासा ऋषि संगीत व नृत्य के संबंध में कुछ नहीं जानते. जब दुर्वासा ऋषि ने दोनों को उन पर हंसते देखा तो उन्हें गुस्सा आ गया. उसी समय उन्होंने अप्सरा को मगरमच्छ व गंधर्व को राक्षस होने का शाप दे दिया.शाप सुनकर दोनों ऋषि के पैरों में गिर कर प्रार्थना करने लगे. जब वे गिड़गिड़ाने लगे तक दुर्वासा ऋषि ने दया कर उन्हें शाप से मुक्त होने का उपाय बताया. वे बोले कि त्रेतायुग में भगवान राम के दूत हनुमान के हाथों तुम दोनों का उद्धार होगा……