Arun shastri जबलपुर । स्मार्त्त परम्परा पंचदेव_महात्म्य, सुख-समृद्धि देने वाले पांच देवता, एक ही परमात्मा पांच इष्ट रूपों में
एक परम प्रभु चिदानन्दघन परम तत्त्व हैं सर्वाधार
सर्वातीत, सर्वगत वे ही अखिल विश्वमय रुप अपार ।
हरि, हर, भानु, शक्ति, गणपति हैं इनके पांच स्वरूप उदार ।*
मान उपास्य उन्हें भजते जन भक्त स्वरुचि श्रद्धा अनुसार ।। (पद-रत्नाकर)
ब्रह्म परमात्मा निराकार व अशरीरी है, अत: साधारण मनुष्यों के लिए उसके स्वरूप का ज्ञान असंभव है ।
इसलिए निराकार ब्रह्म ने अपने साकार रूप में पांच देवों को उपासना के लिए निश्चित किया जिन्हें पंचदेव कहते हैं । ये पंचदेव हैं- विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य और शक्ति।
आदित्यं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम् ।
पंचदैवतभित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् ।।
एवं यो भजते विष्णुं रुद्रं दुर्गां गणाधिपम्
भास्करं च धिया नित्यं स कदाचिन्न सीदति ।। (उपासनातत्त्व)
अर्थात्-सूर्य, गणेश, देवी, रुद्र और विष्णु-ये पांच देव सब कामों में पूजने योग्य हैं, जो आदर के साथ इनकी आराधना करते हैं वे कभी हीन नहीं होते, उनके यश-पुण्य और नाम सदैव रहते हैं ।
वेद-पुराणों में पंचदेवों की उपासना को महाफलदायी और उसी तरह आवश्यक बतलाया गया है जैसे नित्य स्नान को । इनकी सेवा से ‘परब्रह्म परमात्मा’ की उपासना हो जाती है ।
अन्य देवताओं की अपेक्षा इन पांच देवों की प्रधानता ही क्यों?
अन्य देवों की अपेक्षा पंचदेवों की प्रधानता के दो कारण हैं-
१. पंचदेव पंचभूतों के अधिष्ठाता (स्वामी) हैं
पंचदेव आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी-इन पंचभूतों के अधिपति हैं ।
-सूर्य वायु तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी अर्घ्य और नमस्कार द्वारा आराधना की जाती है ।
-गणेश के जल तत्त्व के अधिपति होने के कारण उनकी सर्वप्रथम पूजा करने का विधान हैं, क्योंकि सृष्टि के आदि में सर्वत्र ‘जल’ तत्त्व ही था ।
-शक्ति (देवी, जगदम्बा) अग्नि तत्त्व की अधिपति हैं इसलिए भगवती देवी की अग्निकुण्ड में हवन के द्वारा पूजा करने का विधान हैं ।
-शिव पृथ्वी तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी शिवलिंग के रुप में पार्थिव-पूजा करने का विधान हैं ।
-विष्णु आकाश तत्त्व के अधिपति हैं इसलिए उनकी शब्दों द्वारा स्तुति करने का विधान हैं ।
२. अन्य देवों की अपेक्षा इन पंचदेवों के नाम के अर्थ ही ऐसे हैं कि जो इनके ब्रह्म होने के सूचक हैं-
विष्णु अर्थात् सबमें व्याप्त,
शिव यानी कल्याणकारी,
गणेश अर्थात् विश्व के सभी गणों के स्वामी,
सूर्य अर्थात् सर्वगत (सभी जगह जाने वाले),
शक्ति अर्थात् सामर्थ्य ।
संसार में देवपूजा को स्थायी रखने के उद्देश्य से वेदव्यासजी ने विभिन्न देवताओं के लिए अलग-अलग पुराणों की रचना की । अपने-अपने पुराणों में इन देवताओं को सृष्टि को पैदा करने वाला, पालन करने वाला और संहार करने वाला अर्थात् ब्रह्म माना गया है । जैसे विष्णुपुराण में विष्णु को, शिवपुराण में शिव को, गणेशपुराण में गणेश को, सूर्यपुराण में सूर्य को और शक्तिपुराण में शक्ति को ब्रह्म माना गया है । अत: मनुष्य अपनी रुचि के अनुसार किसी भी देव को पूजे, उपासना एक ब्रह्म की ही होती है क्योंकि पंचदेव ब्रह्म के ही प्रतिरुप (साकार रूप) हैं । उनकी उपासना या आराधना में ब्रह्म का ही ध्यान होता है और वही इष्टदेव में प्रविष्ट रहकर मनवांछित फल देते हैं । वही एक परमात्मा अपनी विभूतियों में आप ही बैठा हुआ अपने को सबसे बड़ा कह रहा है वास्तव में न तो कोई देव बड़ा है और न कोई छोटा ।
एक उपास्य देव ही करते लीला विविध अनन्त प्रकार ।
पूजे जाते वे विभिन्न रूपों में निज-निज रुचि अनुसार ।। (पद रत्नाकर)
पंचदेव और उनके उपासक
विष्णु के उपासक ‘वैष्णव’ कहलाते हैं,
शिव के उपासक ‘शैव’ के नाम से जाने जाते हैं,
गणपति के उपासक ‘गाणपत्य’ कहलाते हैं,
सूर्य के उपासक ‘सौर’ होते हैं, और
शक्ति के उपासक ‘शाक्त’ कहलाते हैं ।
इनमें शैव, वैष्णव और शाक्त विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं ।
—जो स्मार्त्त है वह पँचदेव उपासक है
पंचदेवों के ही विभिन्न नाम और रूप हैं अन्य देवता
शालग्राम, लक्ष्मीनारायण, सत्यनारायण, गोविन्ददेव, सिद्धिविनायक, हनुमान, भवानी, भैरव, शीतला, संतोषीमाता, वैष्णोदेवी, कामाख्या, अन्नपूर्णा आदि अन्य देवता इन्हीं पंचदेवों के रूपान्तर (विभिन्न रूप) और नामान्तर हैं ।
पंचायतन में किस देवता को किस कोण (दिशा) में स्थापित करें
पंचायतन विधि-पंचदेवोपासना में पांच देव पूज्य हैं । पूजा की चौकी या सिंहासन पर अपने इष्टदेव को मध्य में स्थापित करके अन्य चार देव चार दिशाओं में स्थापित किए जाते हैं । इसे ‘पंचायतन’ कहते हैं । शास्त्रों के अनुसार इन पाँच देवों की मूर्तियों को अपने इष्टदेव के अनुसार सिंहासन में स्थापित करने का भी एक निश्चित क्रम है । इसे ‘पंचायतन विधि’ कहते हैं । जैसे-
विष्णु पंचायतन-जब विष्णु इष्ट हों तो मध्य में विष्णु, ईशान कोण में शिव, आग्नेय कोण में गणेश, नैऋत्य कोण में सूर्य और वायव्य कोण में शक्ति की स्थापना होगी ।
सूर्य पंचायतन-यदि सूर्य को इष्ट के रूप में मध्य में स्थापित किया जाए तो ईशान कोण में शिव, अग्नि कोण में गणेश, नैऋत्य कोण में विष्णु और वायव्य कोण में शक्ति की स्थापना होगी ।
देवी पंचायतन-जब देवी भवानी इष्ट रूप में मध्य में हों तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, नैऋत्य कोण में गणेश और वायव्य कोण में सूर्य रहेंगे ।
शिव पंचायतन-जब शंकर इष्ट रूप में मध्य में हों तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में सूर्य, नैऋत्य कोण में गणेश और वायव्य कोण में शक्ति का स्थान होगा ।
गणेश पंचायतन-जब इष्ट रूप में मध्य में गणेश की स्थापना है तो ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, नैऋत्य कोण में सूर्य तथा वायव्य कोण में शक्ति की पूजा होगी ।
शास्त्रों के अनुसार यदि पंचायतन में देवों को अपने स्थान पर न रखकर अन्यत्र स्थापित कर दिया जाता है तो वह साधक के दु:ख, शोक और भय का कारण बन जाता है ।
देवता चाहे एक हो, अनेक हों, तीन हों या तैंतीस करोड़ हो, उपासना ‘पंचदेवों’ की ही प्रसिद्ध है । इन सबमें गणेश का पूजन अनिवार्य है । यदि अज्ञानवश गणेश का पूजन न किया जाए तो विघ्नराज गणेशजी उसकी पूजा का पूरा फल हर लेते हैं ।.
पंचदेव वे पाँच प्रधान देवता हैं, जिनकी उपासना और पूजा आदि हिन्दू धर्म में प्रचलित है और जिन्हें अनिवार्य माना गया है। इन देवताओं में यद्यपि तीन देवता वैदिक हैं, लेकिन फिर भी सभी का ध्यान और पूजा पौराणिक और तांत्रिक पद्घति के अनुसार ही की जाती है।
पाँच देवता
इन पाँच देवताओं में जिनकी गिनती की जाती है, उनके नाम इस प्रकार हैं-
आदित्य
रुद्र
विष्णु
गणेश
देवी
उपासना
इन देवताओं में प्रत्येक के अनेक विग्रह हैं। इनके विग्रहों के अनुसार इनकी अनेक नाम से उपासना होती है। कुछ लोग पाँचों देवताओं की उपासना समान भाव से करते हैं और कुछ लोग किसी विशेष संप्रदाय के अंतर्गत होकर किसी विशेष देवता की उपासना करना पसन्द करते हैं। भगवान विष्णु के उपासक ‘वैष्णव’, शिव के उपासक ‘शैव’, सूर्य के उपासक ‘सौर’ और गणपति के उपासक ‘गाणपत्य’ कहलाते हैं।
पूजा करना हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। हिंदू धर्म शास्त्रों में वैदिक काल से पंचदेव की पूजा करना अनिवार्यतः बताया गया है। इनमें गणेश, सूर्य, विष्णु, शिव और दुर्गा ये पांच देव पूजने का विधान है। इन्हें पंचायतन कहा जाता है। शास्त्रानुसार प्रत्येक गृहस्थ के पूजागृह में इन पांच देवों के विग्रह (मूर्ति) होना अनिवार्य है। लेकिन अक्सर देखने को आता है कि लोग पंचदेव की पूजा तो करते हैं, लेकिन वे उनकी पूजा का सही क्रम नहीं जानते। इन पांच देवों के विग्रहों को अपने ईष्ट देव के अनुसार सिंहासन में स्थापित करने का एक निश्चित क्रम है। आइए जानते हैं किस देव का पंचायतन सिंहासन में किस प्रकार रखा जाता है।
गणेश पंचायतन: यदि आपके ईष्ट देव गणेश हैं तो आप अपने पूजागृह में गणेश पंचायतन की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, मध्य में गणेश, नैर्ऋत्य कोण में सूर्य एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।
शिव पंचायतन: यदि आपके ईष्ट देवता शिव हैं तो आप अपने पूजागृह में शिव पंचायतन की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में सूर्य, मध्य में शिव, नैर्ऋत्य कोण में गणेश एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।
विष्णु पंचायत: यदि आपके ईष्ट देव विष्णु हैं तो आप अपने पूजागृह में विष्णु पंचायतन की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में शिव, आग्नेय कोण में गणेश, मध्य में विष्णु, नैर्ऋत्य कोण में सूर्य एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।
दुर्गा (देवी) पंचायतन: यदि आपकी ईष्ट देव दुर्गा देवी हैं तो आप अपने पूजागृह में देवी पंचायतन की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में विष्णु, आग्नेय कोण में शिव, मध्य में दुर्गा (देवी), नैर्ऋत्य कोण में गणेश एवं वायव्य कोण में सूर्य विग्रह को स्थापित करें।
सूर्य पंचायतन: यदि आपके ईष्ट देव सूर्य देवता हैं तो आप अपने पूजागृह में सूर्य पंचायतन की स्थापना करें। इसके लिए आप सिंहासन के ईशान कोण में शिव, आग्नेय कोण में गणेश, मध्य में सूर्य, नैर्ऋत्य कोण में विष्णु एवं वायव्य कोण में देवी विग्रह को स्थापित करें।
क्यों जरूरी है पंचदेव पूजा: पंच देव की पूजा का निर्देश हमारे वेदों में मिलता है। गणेश, सूर्य, विष्णु, शिव और दुर्गा इन पांच देवों की पूजा का नियम इसलिए बनाया गया है, क्योंकि यही पंाच देव प्रत्येक मनुष्य को जीवित अवस्था में और मृत्यु के बाद मोक्ष प्रदान करते हैं। इनमें गणेश तो हमारे प्रथम पूज्य देवता हैं ही। गणेश की पूजा से ज्ञान,
बुद्धि, विवेक की प्राप्ति होती है। जीवन के लिए स्वस्थ रहना आवश्यक है और सूर्य की पूजा से मनुष्य को आरोग्यता प्राप्त होती है। विष्णु की पूजा से धन, संपदा और सत्गुणों की प्राप्ति होती है। दुर्गा साहस और बल प्रदान करती है। और शिव की पूजा से इस लोक और परलोक में मनुष्य शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त करता है।
पंचदेव पूजा के सत्तरह नियम
1 सूर्य, गणेश,दुर्गा,शिव एवं विष्णु ये पांच देव कहलाते हैं। इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए। इससे धन,लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है।
2 गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
3 दुर्गाजी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए।
4 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
5 तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोडना चाहिए जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं।
6 रविवार,एकादशी,द्वादशी ,संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए।
7 दूर्वा या दूब रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए।
8 केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए।
9 कमल का फूल 5 रात्रि तक उसमें जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं।
10 बिल्व पत्र दस रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं।
11 तुलसी की पत्ती को 11 रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं।
12 हाथों में रख कर हाथों से फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
13 तांबे के पात्र में चंदन नहीं रखना चाहिए।
14 दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए जो दीपक से दीपक जलते हैं वो रोगी होते हैं।
15 पतला चंदन देवताओं को नहीं चढ़ाना चाहिए।
16 प्रतिदिन की पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए।
दक्षिणा में अपने दोष,दुर्गुणों को छोड़ने का संकल्प लें। अवश्य सफलता मिलेगीऔर मनोकामना पूर्ण होगी।
17 चर्मपात्र या प्लास्टिक पात्र में गंगाजल नहीं रखना चाहिए।
प्रश्न नही स्वाध्याय करें!!
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