Saurabh Gupta : तांडव ये नाम है अमेज़न प्राइम पर रिलीज हुई सैफ अली खान और जीशान अयूब की मुख्य भूमिका वाली नई वेब सीरीज का जिसका काफी समय से जमकर प्रचार किया जा रहा था।
9 एपिसोड वाली ये सीरीज 15 जनवरी को रिलीज हो गयी । अपने कीमती 4 घंटे इस सीरीज पर लगाने से पहले आपके लिए जरूरी है कि आप इसके बारे में जान ले।
सीरीज के साथ विवादों का भी पूराना नाता है यहां भी आप आखिर तक नहीं समझ पाओगे कि जीशान अयूब से भगवान शिव की वेशभूषा में गाली क्यों दिलवाई गई और भगवान राम पर कटाक्ष क्यों किया गया।
अगर सही कहा जाए तो वास्तव में भगवान शिव की वेशभूषा भी नहीं थी ऐसा लगता है की उसका भी मजाक बनाया गया है। पिछले कुछ समय से इन सीरीज में विवाद में रहने के लिए या कहिए चर्चा में रहने के लिए धार्मिक आस्था पर चोट की जाती है, खासकर हिन्दू धर्म की आस्था पर प्रहार किया जाता है।
जिसकी कही कोई जरूरत ही नहीं है। विरोध करने वाले कुछ दिन विरोध करते है जिसकी वहज से सीरीज को बिना वजह पब्लिसिटी मिल जाती है। जीशान अयूब जिनका नाम पिछले काफी समय से विवादों में रहा है
उससे ऐसा विवादित काम करवाना भी उसी रणनीति का हिस्सा है जिसको ये कलाकार या तो समझते नहीं या खुद की नकारात्मक प्रसिद्धि का एक जरिया मान लेते है, जिसको स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए और दर्शकों को भी इसका प्रबल विरोध करना चाहिए।
जातियों के ऊपर भी जमकर कमेंट किये गए है जो कि स्वीकार्य नहीं होने चाहिए। ये भी समझ से बाहर है कि सरकार क्यों ऐसी बातों को जिससे धार्मिक भावनाओ को आघात पहुंचाया जा रहा है को रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं कर पा रही है।
खुद इन सरकारों की छवि को ये सीरीज कितना नुकसान पहुंचा रही है ये समझ ही नहीं पा रहे है। हर संवैधानिक पद की छवि इतनी गिराकर दिखाई जाती है, ड्रग्स का खुलकर इस्तेमाल दिखाया जाता है लेकिन सरकार कोई कदम क्यों नहीं उठा पा रही ये समझ से बाहर है।
अब आते है सीरीज की कहानी पर, कहानी के लिहाज से ऐसा कुछ भी खास इस सीरीज में नहीं है जो याद रखने लायक हो और आपको बांध कर रख सके, राजनीतिक पृष्ठभूमि पर पहले भी काफी सीरीज बनी है लेकिन इसमें ऐसा कुछ भी अलग नहीं है जो चौंकाने लायक हो।
राजनीति के पीछे के काले खेल को दिखाने की कोशिश की गई है जिसमें कुछ भी नयापन नहीं है। कहानी के केंद्र में प्रधानमंत्री का पद और कॉलेज की राजनीति को रखा गया है, यहां जेएनयू के प्रकरण को भुनाने की कोशिश की गई है,
निर्देशक ने भरपूर कोशिश की है जेएनयू में जो कुछ हुआ था उसको सही साबित किया जा सके और पुलिस को विलेन बनाया जा सके। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री के पद को भी चूहे बिल्ली का खेल दिखाया गया है।
कहानी का अंत भी ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शकों को चौंका सके या उनके मन में अगला सीजन देखने की इच्छा पैदा कर सके। सीरीज के एक दो डायलॉग अच्छे है
जैसे कि सैफ अली खान, जीशान अयूब को कहता है “यूपीएससी करोगे तो तुमको कोई फोन करेगा और कहेगा कि क्या करना है और अगर राजनीति में आओगे तो तुम फोन करोगे और कहोगे कि क्या करना है।”
अब बात करते है अभिनय की, वैसे तो सैफ अली खान मुख्य भूमिका में है जिन्होंने समर प्रताप सिंह का किरदार निभाया है, नाम तो दमदार है लेकिन अभिनय के हिसाब से ठीक ठीक ही है।
ठीक ऐसा ही जीशान अयूब के साथ है जिनका अभिनय भी कुछ खास प्रभावित नहीं करता । सैफ अली खान जो अपने पिता के प्रधानमंत्री बनने से पहले हुई मौत के बाद खुद प्रधानमंत्री बनना चाहता है वो कॉलेज के नेता में अपना भविष्य देखता है, जो अंत तक समझ नहीं आता।
जीशान अयूब जिसको राजनीति में नहीं आना लेकिन एकदम से आ भी जाता हैं अपनी पार्टी भी बना लेता है, काफी बचकाना है। डिंपल कपाड़िया जिनकी ये पहली वेब सीरीज है, ने एक महत्वाकांक्षी महिला का किरदार निभाया है।
अभिनय के लिहाज से वो अपने रोल से पूरा न्याय भी करती है लेकिन अंत में इतनी जल्दी घुटने टेक देना हजम नहीं होता । अभिनय के लिहाज से सबसे दमदार अभिनय सुनील ग्रोवर ने किया है
जो सैफ अली खान का सबसे विश्वस्त व्यक्ति है, जो लोग सुनील ग्रोवर को सिर्फ कॉमेडियन ही समझते है उनको एहसास होगा कि वाकई में वो अव्वल दर्जे के अभिनेता है। बाकी किरदारों में डिनो मोरिया, कृतिका, सोनाली नागरानी, आयशा आदि सभी का किरदार साधारण ही है।
अगर रेटिंग के हिसाब से देखा जाए तो 5 में से 2 अंक भी ज्यादा ही है और इसमें भी सुनील ग्रोवर का योगदान ज्यादा है। अगर रेटिंग के हिसाब से देखा जाए तो 5 में से 2 अंक भी ज्यादा ही है और इसमें भी सुनील ग्रोवर का योगदान ज्यादा है।