विपुल रेगे। ‘थलाइवी’ का तूफ़ान अभी आना बाकी है। थियेटर संचालकों की मनमानी ने इस उत्कृष्ट फ़िल्म की ओपनिंग को भले ही डस लिया हो, किन्तु ओटीटी के मंच पर कंगना का शौर्य रथ रोकना किसी के बस की बात न होगी। ये एक कुत्सित प्रयास है, एक अच्छी रचना को नष्ट करने का। ऐसा बॉलीवुड में कई बार किया जा चुका है लेकिन अच्छी फिल्म को षड्यंत्रों के सहारे दर्शक के मन पर राज करने से नहीं रोका जा सकता।
अभिनेत्री और राजनेत्री जयललिता का जीवन स्वयं में एक फुल लेंथ फीचर फिल्म की तरह रहा है। पहले अभिनय के क्षेत्र में आना, फिर सोलह की आयु में सुपरस्टार एम.जी.रामचंद्रन के साथ प्रेम में पड़ जाना, लोकसेवा के लिए राजनीति में आना और अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना। दूर से देखने पर जयललिता का जीवन किसी फैंटसी की भांति दिखाई पड़ता है लेकिन उनके काँटों भरे मार्ग को फिल्म ‘थलाइवी’ ज़ूम लेंस की सहायता से दिखाती है।
एक राजनेता के जीवन पर आधारित ये फिल्म इसलिए भी प्रशंसनीय है, क्योंकि जयललिता के जीवन को जस की तस दिखाया गया है। बॉलीवुड के निर्देशकों की तरह थलाइवी के निर्माता-निर्देशक ने फिल्म को बड़ी ओपनिंग दिलाने के लिए काल्पनिक तथ्य नहीं डाले हैं। फिल्म की कहानी उस दृश्य से शुरु होती है, जब जयललिता को सदन से अपमानित कर निकाला जाता है, उनके वस्त्रहरण के प्रयास किये जाते हैं।
यहाँ जया प्रण लेती है कि इस सदन में अब मुख्यमंत्री बनकर ही लौटेगी। इसके बाद कहानी फ्लैशबेक में जाती है। जयललिता का फिल्मों में प्रवेश करना और राजनीति में आने के प्रसंग दिखाए जाते हैं। ये एक संतुलित फिल्म है। इसे देखते हुए एक भी पल के लिए दर्शक अपना मोबाइल देखना पसंद नहीं करता। जयललिता की कथा को निर्देशक विजय ने एक विशाल कैनवास पर प्रस्तुत किया है।
कंगना रनौत ने कुछ दिन पूर्व एलान किया था कि वे वर्तमान दौर की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री हैं। उस समय मीडिया ने इसे बड़बोलापन बताया था। हालांकि फिल्म में उनका अभिनय देखने के बाद उनके एलान पर सहज ही विश्वास हो जाता है। कंगना ने जयललिता को इस तरह जिया है कि वे विलुप्त हो जाती है और उनके भीतर जैसे जयललिता का परकाया प्रवेश हो जाता है।
एक कलाकार जब स्वयं की छवि को मिटाकर अपने चरित्र की छवि को अंगीकार कर ले, तो वह उसके अभिनय जीवन की पराकाष्ठा मानी जाती है। कंगना अपने अभिनय के सर्वोच्च स्तर पर है। एम.जी.रामचंद्रन की भूमिका अरविन्द स्वामी के अलावा और कोई नहीं कर सकता था। एमजीआर का चरित्र उनके प्रस्तुतिकरण में जीवंत हो उठा है।
निर्देशक विजय ने इतनी बारीकी से काम किया है कि हिंदी डब वाले संस्करण में डबिंग करने वाले भी दक्षिण भारतीय उच्चारण वाले हैं। यदि कलाकारों की डबिंग ऐसे वॉइस आर्टिस्ट से न कराई जाती तो वास्तविक भाव नहीं आ सकता था। फिल्म की ओपनिंग निराशाजनक रही है। सप्ताह के तीन दिन में फिल्म केवल 4.50 करोड़ का कलेक्शन ही कर सकी है। बॉलीवुड के ही एक वर्ग ने बुरी नीयत से कंगना की फिल्म गिराने के प्रयास किये हैं।
हालांकि कंगना का विजयी रथ ऐसे षड्यंत्र रोक नहीं सकेंगे। ओटीटी के मंच पर फिल्म अपनी योग्यता को सिद्ध कर देगी। फिल्म में चीरहरण के प्रयास के बाद जयललिता कहती है ‘महाभारत का दूसरा नाम है जया। ये संवाद कंगना की रियल लाइफ पर उपयुक्त बैठता है। विगत दो वर्ष से बॉलीवुड के कुछ लोग उन्हें बार-बार महाभारत में खींच लाते हैं।