एक पत्रकार के लिए पढना लिखना परमावश्यक होता है और एक रिपोर्टर के लिए इसके साथ ग्राउंड पर जाकर तथ्यों और सबूतों को इक्कठा करना जरुरी होता है। तभी ‘खबर’ स्टोरी नहीं न्यूज होती है। बाकिं फरेब करने के लिए स्टूडियो में बैठकर या हाथ में कलम पकड़कर मालिक के एजेंडे को बांचने के लिए न खोजी पत्रकारिता की जरुरत है न बेसिक जानकारी की न समझबूझ की। फरेब फलने फूलने लगा, तभी मालिकों के तलवे चाटू एजेंडाधारी लोग पत्रकार कहलाने लगे और बाकि बेकार।
चौदह साल से गुजरात के गिद्ध टीम मैनेजर, प्रणय जेम्स राय ने बरखा और राजदीप जैसे अंग्रेजी दां फरेबियों को निचोड़ लेने के बाद हिंदी पट्टी में मासूमियत का आवरण ओढे एक नए फरेबी को मैदान में उतारा है। हिंदी में “बिग बास” और “कौन बनेगा करोड़पति” के हिट होने के बाद अरविंद केजरीवाल जैसे आम आदमी सा दिखने वाले की सफलता को प्रणय जेम्स राय ने खूब स्टडी की। तभी अपने चपक चम्पू रविश को शालिनता का आवरण ओढाकर आम आदमी की भाषा में फरेब करने के लिए उतारा है। आप लगातार रविश के उस फरेब को देख रहे हैं। कैसे वो बिना किसी योग्यता की जरुरत वाले काम के लिए 10 लाख से ज्यादा की सैलरी के साथ मासूमियत का आवरण ओढे आम आदमी की भाषा में बात करते हुए कहता है कि मोदी और अमित शाह से पूरा देश डर गया है। सबके हड्डियों में बर्फ जम गया है। दिल्ली के अखबार और टीवी चैनलों के आफिस में बर्फ जम गए हैं। क्यों कि कोई उसके फरेब का हिस्सेदार नहीं। डर उसे भी लगता है लेकिन क्या करे पत्रकारिता छोड़ दे।
अब उसके नए फरेब को देखिए और समझिए!
वामपंथी मैगजीन कारवां की एक रिपोर्ट के आधार पर रविश, प्रणय जेम्स राय के चैनल पर कहता है “सोहराबुद्दीन शेख इंकाउंटर मामले में अभियुक्त रहे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के मामले की सुनवाई कर रहे जज बृजगोपाल लोया की मौत हर्ट अटैक से हुई वह संदेह पैदा करता है।” रविश कहता है कि “अमित शाह को बरी किए जाने के लिए जस्टिस लोया (उसे जज और जस्टिस में अंतर नहीं पता) की हत्या हुई।” वह बकैती करते हुए कहता कि दिल्ली की सारी मीडिया सारे संपादक डर गए। बर्फ की सिल्ली दिखाते हुए कहता है सभी संपादको की हड्डियों में बर्फ जम गया है देश में भय का माहौल है। आप सब भी टीवी के पीछे डर कर प्राइम-टाइम देख रहे है। डर उसे भी लगता है लेकिन क्या करे पत्रकारिता छोड़ दे! फरेब की जिस बकैती के आधार पर वो भारत के मुख्य न्यायाधीश,प्रधानमंत्री,और पूरे पत्रकार विरादरी को नपुंसक कहते हुए अपनी वीरता के बखान के लिए जज लोया की मौत को हत्या साबित करता है उसके फरेब को समझिय..
देखिये पूरा खुलासा वीडियो में:-
[embedyt] https://www.youtube.com/watch?v=96T9VdIUmaA[/embedyt]
दरअसल रविश ने कभी बतौर रिपोर्टर जमीनी पत्रकारिता नही कि नाले और खरंजे के आलावा। इसलिए उसके फरेब को इंडियन एक्सप्रेस ने नंगा कर के रख दिया।
1-रविश और कारवां पत्रिका ने जज लोया की बहन के बयान के आधार पर फरेब की इतनी बड़ी साजिश रचि जिसमें पूर देश को अमित शाह से डरा हुआ नपुंसक और डरपोक साबित कर दिया। खबर ऐसी बना दी जिसके मुताबिक जज लोया को नागपुर के गेस्ट हाउस में जब सीने में दर्द हुआ तो प्रोटोकाल का पालन नहीं हुआ( उसे प्रोटोकाल का मतलब कतक नहीं पता कि किसे मिलता है किसे नहीं लोया जस्टिस नहीं न्यायिक अधिकारी थे ) उन्हे आटो से अस्पताल ले जाया गया। यह जानते हुए कि इस देश का मेडिकल सिस्टम कैसा है। यह जानते हुए कि इसी देश के रेलमंत्री को बम विस्फोट में घायल होने पर समस्तिपुर से पटना जाने में एक दिन लग गए और उनकी मौत हो गई। खैर फरेब के लिए माहौल तो बनाना था लेकिन क्या बना देखिए?
इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक..
30 नवंबर 2004 की देर रात शादी की पार्टी के बाद जज लोया नागपुर के रवि भवन गेस्ट हाउस में सोने गए तो सुबह चार बजे उन्हे सीने में तेज दर्द हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक साथी जज श्रीधर कुलकर्णी और श्रीराम मधुसुदन, ड्यूप्टी रजिस्टार वियज कुमार दो एम्बेसेडर कार से जज लोया को लेकर नजदीक के अस्पताल गए। अखबार के रिपोर्ट के मुताबिक.. पूरा तथ्य मुंबई हाइकोर्ट के नागपुर बेंच के जस्टिस भूषण गोयल और जस्टिस सुनील शुक्रे के बयान के आधार पर।
2- फरेबी पत्रकार रविश और कारवां पत्रिका के मुताबिक..जज लोया का ईसीजी नहीं हुआ।
अखबार की रिपोर्ट; डुंडे अस्पताल की इसीजी दिखाते हुए अस्पताल के डायरेक्टर कहते हैं.. लगभग पौने पांच से पांच बजे के बीच मरीज लोया को अस्पताल लाया गया। हमारे यहां ट्रामा सेंटर 24 घंटे काम करता है उनका इसीजी हुआ। दो रेजिडेंड ड़ॉक्टर ने मरीज को देखा।हालात की गंभीरता को देखते हुए हमने शहर के बड़े अस्पताल मेडिट्रीना के लिए रेफर कर दिया। अस्पताल के एमडी डॉक्टर समीर और अस्पताल के रिकार्ड के मुताबिक यहां पहुंचने से पहले उनकी मौत हो गई थी।
3- फरेबी पत्रकार कहता है कि सब डरे हैं वो दो जज जो लोया के साथ थे गायब हैं किसी को कुछ नहीं पता कि लोया कैसे मरे किसने मारा। सब डर के मारे छुप गए क्योंकि मामला अमित शाह से जुड़ा है। दिलचस्प यह कि फरेब की कहानी गढने के बाद भी अमित शाह लोअर कोर्ट से लेकर भारत की सबसे बड़ी अदालत तक बरी हो गए हैं लेकिन फरेबियों की तो अपनी अदालत है।
एक्सप्रेस की रिपोर्ट
4- अखबार कहता है मुबई हाइकोर्ट के जुनियर जस्टिस गवई के मुताबिक उनके पास जस्टिस सुनील शुक्रे का फोन आया और तुरंत अस्पताल पहुंचने को कहा। मैने ड्राइवर का इंतजार किए बिना खुद अपनी कार लेकर मेडिट्रीना अस्पताल पहुंचा। जस्टिस शुक्रे के बयान के हवाले से अखबार लिखता है कि दोनो जस्टिस मैं और जस्टिस गवई अस्पताल पहुंचे तभी मुख्य न्यायाधीश के सचिव को भी फोन पर जानकारी दी। लेकिन सभी प्रयास बेकार चले गए। उन्हें बचाया नहीं जा सका। सुबह छह बजे उनकी मौत हो गई।
5- कारवां और फरेबी पत्रकार ड्रामेटिक अंदाज में कहता है कि लाश रिसीव करने वाला अंजान था। और अब गायब है। वो रिश्तेदार कहां हैं। जज की लाश को एंबुलेश में लावारिश लातूर भेज दिया गया। इन फरेबियों ने बिना किसी पड़ताल के इतनी गंभीर मामले को उठा कर पूरे सिस्टम को बदनाम कर दिया।
एक्सप्रेस की रिपोर्ट-:
6- लाश प्रशांत राठी ने रिसीव किया। उसने अखबार को बताया कि मौसाजी रुकुमेश जकोतिया का फोन आया कि नागपुर में अंकल लोया मेडीट्रीना अस्पताल में भर्ती हैं। जल्दी पहुंचो। जबतक मैं पहुंचा उनकी मौत हो चुकी थी। प्रशांत के हवाले से अखबार लिखता है कि “हमें पहुंचने में वक्त लगा उस समय लगभग सात आठ जज अस्पताल में थे। जस्टिस भूषण और जस्टिस गवंई संग थे उन्होने हमें कहा कि पोस्टमार्टम हो गया है। दुबारा पंचनामा हुआ 10 बजकर 55 मिनट मे गवर्मेंट मेडिकल कालेज में! मैं वहीं पर था मैने साइन किए।” प्रशांत के हवाले से अखबार लिखता है कि “लाश को लातूर जाना था लाश के संग दो पुलिस अफसर और एक सिपाही भी साथ गए थे।” फरेब देखिए बकैत कहता है कि लाश को लावारिश भेज दिया गया बस ड्राईवर संग।
आगे जस्टिस गवई के हवाले से अखबार कहता है “हमने जिला जज के के सोनवाल से कहा कि दो जज को लाश के साथ लातूर भेंजे..जज योगेश राग्ले और सिविल जज स्वयं चोपड़ा कार से एंबुलेस के साथ लातुर गए। जस्टिस गवई के मुताबिक एंबुलेंस एअर कंडिशनल था साथ में बर्फ कि सिल्लियं थी। दोनो जज के साथ एक ट्रैफिक कांस्टेबल भी था।” दोनो जज, एंबुलेंस से पहले, जज लोया के लातुर स्थित गांव पहुंच गए। वहां जज लोया के पिता से वे मिले और अंतिम संस्कार में भी शामिल हुए।
अब इस फरेब को समझिए!
पत्रकारिता के बेसिक का पालन न करते हुए सिर्फ जज लोया की बहन के बयान के आधार पर स्टोरी पैदा कर देश भर में माहौल बनाने वाला फरेबी पत्रकार कहता है कि पूरा पत्रकार विरादरी डर गया उनकी हड्डियों में बर्फ जम गया है। उसके अलावा कोई पत्रकारिता नहीं कर रहा। ऐसा फरेब सिर्फ गुजरात चुनाव में माहौल खराब करने के लिए! ठीक वैसे ही जैसे 2012 के गुजरात चुनाव में अमित शाह के खिलाफ साजिश में तत्कालिक लाभ उठाते हुए संदेह पैदा कर उन्हें गिरफ्तार करवाया। बाद में मे वे सुप्रीम कोर्ट तक से बरी हो गए। फरेब का असर ये हुआ कि वे गुजरात से निकल कर पूरे देश के नेता बन गए। लेकिन फरेब का कुछ तो फायदा गिद्धों को हुआ होगा! जो पुरे पेशे का भरोसा खत्म करते अपने मालिक का तलवा चाटने के लिए।
ये फरेब सिर्फ इसलिए ताकि देश में धृणा का माहोल बना सकें। दुनिया में भारत के लोकतंत्र और न्यायपालिक के साथ प्रेस को बदनाम करने की ये गंभीर साजिश है जिसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यह खेल खतरनाक इसलिए है क्योकि शालिनता का आवरण ओढ कर देश की मासूम जनता को गुमराह करने का यह भयानक खेल है। बस और क्या कहा जाए! लेकिन चैनल के अंदर और बाहर किसी फरेबी के इतने बड़े फरेब पर चुप्पी टुटनी जरुरी है ताकि ऐसा फरेब बार बार न हो!