मोहनदास करमचंद गांधी , कौम का गद्दार था ;
राष्ट्रधर्म का पक्का दुश्मन , गुंडों का वो यार था ।
ईश्वर अल्लाह एक कर दिया , हिंदू को गुमराह किया ;
जबकि दोनों अलग- अलग हैं , जैसे सूरज और दिया।
जीवात्मा उसकी क्षुद्र थी पर वो महात्मा बन बैठा ;
राष्ट्र का दुर्भाग्य था कि राष्ट्रपिता बनकर बैठा ।
लोकेषणा थी कूट-कूट कर , खुद को बापू कहलाया ;
महामूर्ख था हिंदू मानस ,उसको कभी समझ न पाया ।
दिशा भ्रमित हिंदू को करके, झूठी अहिंसा उसे सिखाई;
अंग्रेजों की करे गुलामी , अंग्रेजों की जान बचाई ।
भारत के जितने वीर बांकुरें,उनका यशगान मिटा डाला;
राजगुरु , सुखदेव , भगत को अंग्रेजों से मरवा डाला।
राष्ट्र के जितने कुल कलंक थे , उनको आगे ले आया ;
नेहरू जैसे नालायक को , सबके ऊपर बैठाया ।
झूठी उसकी सदा अहिंसा , बेगुनाह हिंदू मरवाया ;
अपनी झूठी शिक्षा देकर , हिंदू को कायर बनवाया ।
महामूर्ख है हिंदू इतना , अब भी गांधी को पूजै ;
अब तो दफन करो गांधी को , यही काम पहले कीजै ।
गांधी की अहिंसा झूठी थी , धर्म से वो गद्दारी थी ;
कभी अहिंसा न जानी , उसकी तो बस मक्कारी थी ।
सच्चा अर्थ अहिंसा का , बस केवल इतना जानो ;
कमजोरों को नहीं सताओ , गुंडों की कतई न मानो।
पर गांधी की ये थी अहिंसा , हिंदू को डरपोक बनाओ ;
हिंदू को कमजोर बना कर , भारत में गुंडाराज बनाओ।
राष्ट्र का कोई पिता न होता , केवल राष्ट्रपुत्र होते हैं ;
इन पुत्रों में अधिक श्रेष्ठ , वे वीर शिरोमणि होते हैं ।
ऐसे वीर सपूतों को , हम सब मिलकर नमन करें ;
बप्पा रावल , वीर शिवा , राणा प्रताप को नमन करें।
ऐसे ही वीर सपूतों ने , ये हिन्दू धर्म बचाया है ;
हम इनका अनुसरण करें , ऐसा ही मौका आया है ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचयिता : बृजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”