विपुल रेगे। टी सीरीज वाले भूषण कुमार की विवादित फिल्म ‘आदिपुरुष’ का नया पोस्टर बताता है कि करोड़ों दर्शकों द्वारा फिल्म के बहिष्कार की चेतावनी का फिल्म निर्माताओं पर कोई असर नहीं हुआ है। फिल्म का विरोध अब भी बरक़रार है। ‘आदिपुरुष’ का मार्ग ‘सिनेमेटिक लिबर्टी’ और ‘फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन’ के बीच कहीं फंस गया है। 16 जून को रिलीज होने जा रही इस फिल्म को लेकर हाइप अब तक निगेटिव ही दिखाई देती है।
‘आदिपुरुष’ का नया पोस्टर रिलीज होते ही विरोध थमने के बजाय और तेज़ हो गया है। नए पोस्टर में हनुमान को दिखाया गया है। बिना मूंछो वाले हनुमान का पोस्टर उस आग को भड़का गया, जो पहले से ही धधक रही थी। हालाँकि फिल्म के पहले वाले ट्रेलर में हम हनुमान की ये छवि देख चुके थे। विरोध के बाद फिल्म निर्माता सामने आए थे, इनका साथ देने के लिए गीतकार मनोज मुंतशिर भी आए थे। इनकी ओर से कहा गया था कि फिल्म में ‘परिवर्तन’ किया जाएगा। उन विजुअल्स पर काम किया जाएगा, जिन पर विरोध हो रहा है।
अब नए पोस्टर में ‘हनुमान’ की छवि देख पता चल रहा है कि विजुअल्स में परिवर्तन नहीं किया गया है। मैंने बहुत समय पहले लिखा था कि यदि विजुअल्स पर काम करना है तो लगभग आधी फिल्म के मुख्य दृश्यों को ‘रीशूट’ करने की आवश्यकता होगी। यदि रीशूट का निर्णय होता तो रिलीज लगभग एक वर्ष के लिए टल सकती थी, क्योंकि पोस्ट प्रोडक्शन का बहुत सा कार्य नए सिरे से करना पड़ता। हनुमान के पोस्टर के साथ एक दूसरे पोस्टर पर भी आपत्ति ली जा रही है।
पोस्टर में राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान को दिखाया गया है। कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इस पोस्टर को सिरे से नकार दिया गया है। हमारे मन में इनकी जो छवि है, उसका एक प्रतिशत भी पोस्टर में दिखाई नहीं दे रहा है। सीता के कैरेक्टर में कृति सेनन अनफिट दिखाई देती हैं। मीडिया में विरोध करने वालो को Extreme right-wingers कहा जा रहा है। एक तरह से स्वाभाविक रुप से उठे विरोध पर ‘लांछन’ लगाया जा रहा है। फिल्म के निर्माताओं की वादाखिलाफ़ी को लेकर मीडिया ने कुछ नहीं कहा।
600 करोड़ की लागत से बनाई गई फिल्म को कैसे भी रिलीज के लिए तैयार करना और विरोध की बैलेंसिंग करना मीडिया का लक्ष्य है। फिल्म के सस्ते वीएफएक्स देखकर लागत के आंकड़ों पर संदेह हो रहा है। इतनी बड़ी लागत में तो विश्व स्तरीय वीएफएक्स दिखाई देना चाहिए। ‘आदिपुरुष’ का मार्ग ‘सिनेमेटिक लिबर्टी’ और ‘फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन’ के बीच कहीं फंस गया है। इन दो बिंदुओं पर निर्देशक ओम राउत का मानस गड़बड़ा गया है।
सिनेमेटिक लिबर्टी लेते हुए उन्होंने राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान और रावण की छवि ही बदल डाली है। हनुमान जैसे महत्वपूर्ण चरित्र पर उन्होंने बड़ा ही हल्का फ्रेमवर्क किया है। प्रभास की छवि आक्रामक है, उसमे विनम्रता झलक ही नहीं रही है। कृति सेनन की आँखों में सीता की पवित्रता दृष्टिगोचर ही नहीं हो रही। ओम राउत ने ये कैसी रामायण रची है।