सन 1977 में चुनाव में पराजय के चार महीनों के अंदर ही इंदिरा गांधी हार के सदमे से बाहर आ गईं. जनता सरकार को ज़बरदस्त अवसर मिलने के बावजूद उन्होंने इसे गँवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
मोरारजी देसाई, जगजीवन राम और चरण सिंह तीनों इस सरकार को अलग-अलग दिशा में ले जाने में जुट गए और उन्होंने थाली में परोसकर इंदिरा गाँधी को वापसी करने का मौका दे दिया.
इंदिरा गाँधी को सियासी वापसी का पहला मौका मिला जब मई 1977 में बिहार के गाँव बेलछी में ऊँची जाति के ज़मींदारों ने दस से अधिक दलित लोगों की हत्या कर दी.
जब ये घटना हुई तो बहुत कम लोगों का ध्यान उस तरफ़ गया लेकिन जुलाई में इंदिरा गांधी ने वहाँ के दलितों के प्रति सहानुभूति जताने के लिए वहाँ जाने का फ़ैसला किया.
हाल में प्रकाशित पुस्तक ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ की लेखिका नीरजा चौधरी बताती हैं, “उस समय पूरे बिहार में भारी वर्षा हो रही थी. बेलछी के पूरे रास्ते में कीचड़ ही कीचड़ और बाढ़ का पानी फैला हुआ था.”
“आधे रास्ते में ही इंदिरा को अपना वाहन छोड़ना पड़ा लेकिन उन्होंने अपनी यात्रा रोकी नहीं. वो हाथी पर सवार होकर बाढ़ से घिरे गाँव बेलछी पहुंचीं. अख़बारों में हाथी पर चढ़ी इंदिरा गाँधी की तस्वीर से ये संदेश गया कि अभी वो मुकाबले में डटी हुई हैं.”

हाथी की पीठ पर साढ़े तीन घंटे की यात्रा
बेलछी के दलितों ने इंदिरा गाँधी को हाथों-हाथ लिया. इंदिरा ने वहाँ बैठकर उनकी व्यथा सुनी और उन्हें आश्वासन देते हुए कहा, ‘मैं हूँ ना.’
इंदिरा गाँधी की बेलछी यात्रा का ज़िक्र मशहूर पत्रकार जनार्दन ठाकुर ने भी अपनी किताब ‘इंदिरा गांधी एंड द पावर गेम’ में किया है.
ठाकुर लिखते हैं, “इंदिरा गांधी के साथ केदार पांडे, प्रतिभा सिंह, सरोज खापर्डे और जगन्नाथ मिश्र भी गए थे.
कांग्रेस के नेता केदार पांडे ने कहा कि बेलछी तक कोई कार नहीं पहुंच सकती. इंदिरा गाँधी ने कहा हम पैदल जाएंगे, चाहे हमें रात भर चलना ही क्यों न पड़े.
जैसा कि अंदेशा था इंदिरा गाँधी की जीप कीचड़ में फंस गई. उसको कीचड़ से खींचने के लिए एक ट्रैक्टर लाया गया. वो भी कीचड़ में फंस गया.
इंदिरा गाँधी ने अपनी साड़ी पिंडली तक उठाई और सड़कों पर भरे पानी में चलने लगीं. तभी उस इलाके के किसी शख़्स ने वहाँ एक हाथी भेज दिया.
इंदिरा उस हाथी पर चढ़ गईं. उनके पीछे डरते डरते प्रतिभा सिंह भी चढ़ीं. उन्होंने इंदिरा की पीठ को ज़ोर से पकड़ लिया.
इंदिरा ने वहाँ से बेलछी तक का साढ़े तीन घंटे का रास्ता हाथी की पीठ पर तय किया. आधी रात को वहाँ से लौटते हुए इंदिरा गाँधी ने सड़क के किनारे एक स्कूल में भाषण भी दिया.

जेपी से पटना में मुलाक़ात
अगले दिन इंदिरा गांधी जेपी से मिलने पटना में कदमकुआँ स्थित उनके निवास स्थान पर गईं. इंदिरा सफ़ेद रंग की किनारेदार साड़ी पहने हुए थीं.
सर्वोदय नेता निर्मला देशपांडे उनके साथ थीं. जेपी उन्हें अपने छोटे से कमरे में ले गए जहाँ एक पलंग और दो कुर्सियाँ थीं. इस मुलाकात में इंदिरा ने जेपी से न तो राजनीति पर बात की और न ही उन समस्याओं का ज़िक्र जिनका सामना वो उन दिनों कर रही थीं.
इंदिरा के जेपी से मिलने से पहले संजय गाँधी की पत्नी मेनका जेपी से मिल चुकी थीं. उन्होंने उनसे शिकायत की थी कि उनके फ़ोन टैप किए जा रहे हैं और उनकी डाक खोलकर पढ़ी जा रही है.
जेपी ये सुनकर बहुत नाराज़ हुए थे. मेनका के जाने के बाद जेपी के एक सहयोगी अपनेआप को ये कहने से नहीं रोक पाए थे कि इंदिरा ने भी तो अपने विरोधियों के साथ ये सब कुछ किया था. इस पर जेपी का जवाब था, ‘लेकिन अब देश में प्रजातंत्र बहाल हो चुका है.’
इंदिरा से जेपी की मुलाकात 50 मिनट तक चली. नीरजा चौधरी बताती हैं, “जेपी सीढ़ियों तक इंदिरा गाँधी को छोड़ने आए.”
जब बाहर खड़े पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आपने क्या बातचीत की तो इंदिरा ने मुस्कराते हुए जवाब दिया कि ये एक निजी मुलाकात थी.
जब पत्रकार जेपी के पास उनकी टिप्पणी लेने पहुंचे तो उन्होंने कहा, “मैंने इंदिरा से कहा कि जितना तुम्हारा भूतकाल उज्ज्वल रहा है, उतना ही तुम्हारा भविष्य भी उज्ज्वल हो.”

जैसे ही ये ख़बर बाहर गई तो जनता पार्टी के कई नेता असहज हो गए. कुलदीप नैयर ने नाराज़ होकर जेपी के सहयोगी कुमार प्रशांत से पूछा, “जेपी ने इंदिरा के बारे में ऐसा कैसे कहा? उनका भूतकाल तो एक काला अध्याय था, उज्ज्वल तो कतई नहीं था.”
जब कुमार प्रशांत ने ये संदेश जेपी तक पहुंचाया तो उन्होंने पूछा, “घर आए को दुआ दी जाती है या बद्दुआ देनी चाहिए?”
नीरजा चौधरी कहती हैं, “जेपी की इस टिप्पणी को इस संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए कि तब तक जेपी का जनता पार्टी के नेताओं से मोहभंग हो चुका था और वो इंदिरा गाँधी से ज़्यादा उनसे नाराज़ थे.”

राजनारायण और संजय गाँधी के बीच मुलाक़ातों का सिलसिला
इंदिरा गाँधी को कमबैक करने का तीसरा ब्रेक तब मिला जब उनको चुनाव में हराने वाले राजनारायण ये महसूस करने लगे कि जनता पार्टी सरकार में उनको वो जगह नहीं मिली जिसके कि वो हकदार थे.
उन्होंने उन्हें बर्ख़ास्त करने के लिए मोरारजी देसाई को कभी माफ़ नहीं किया.
उन्होंने इंदिरा गाँधी से मिलने की इच्छा प्रकट की. इंदिरा उनसे खुद तो नहीं मिली लेकिन उन्होंने अपने बेटे संजय गांधी को उनसे मिलने भेजा.
उन दोनों के बीच मोहन मीकेंस के मालिक कपिल मोहन के पूसा रोड स्थित घर पर मुलाकातें होने लगीं.

कमलनाथ या अकबर अहमद डंपी संजय गाँधी को अपनी कार में बैठाकर राजनारायण से मिलाने ले जाते.
इन मुलाकातों में मोरारजी देसाई की सरकार गिराने और चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाने की रणनीति पर चर्चा होती.
दोनों जानते थे कि चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए उन्हें जनता पार्टी को तोड़ना होगा.
नीरजा चौधरी लिखती हैं, “एक दिन राजनारायण को खुश करने के लिए संजय गाँधी ने उनसे कहा, आप भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं. राजनारायण ने सिर ज़रूर हिलाया लेकिन वो संजय गाँधी के झाँसे में नहीं आए. उन्होंने कहा, ये सही है लेकिन फ़िलहाल चौधरी साहब को प्रधानमंत्री बन जाने दीजिए.”

जगजीवन राम के बेटे का सेक्स स्कैंडल
तभी 1978 ख़त्म होते-होते भाग्य ने इंदिरा गाँधी का फिर साथ दिया. 21 अगस्त, 1978 को गाज़ियाबाद के मोहन नगर में मोहन मीकेंस के कारख़ाने के बाहर एक कार एक्सिडेंट हुआ.
वो एक मर्सिडीज़ कार थी जिसने एक व्यक्ति को कुचल दिया जिसकी घटनास्थल पर ही मौत हो गई.
कार के अंदर बैठे शख़्स ने इस डर से कि कहीं लोग उन्हें पीटने न लगें, कार मोहन मीकेंस के गेट के अंदर घुसा दी. गेट पर मौजूद सिपाही ने अंदर फ़ोन कर दुर्घटना की जानकारी दी.
कपिल मोहन के भतीजे अनिल बाली बाहर आए. उन्होंने कार में बैठे शख़्स को पहचान लिया.
वो रक्षा मंत्री जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम थे. सुरेश राम ने बाली को बताया कि उनकी कार का पीछा किया जा रहा था.

कार का पीछा कर रहे थे राजनारायण के दो चेले और जनता पार्टी के कार्यकर्ता केसी त्यागी और ओमपाल सिंह.
अनिल बाली ने सुरेश राम को अपनी कंपनी की कार से उनके घर भेज दिया.
अगले दिन सुरेश राम ने कश्मीरी गेट पुलिस स्टेशन पर प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाई जिसमें उन्होंने बाली को बताई कहानी से बिल्कुल अलग कहानी बयान की.
उन्होंने कहा कि 20 अगस्त को उनका करीब एक दर्जन लोगों ने अपहरण कर लिया था.
वो उन्हें ज़बरदस्ती मोदीनगर ले गए थे जहाँ उनसे ज़बरदस्ती कुछ कागज़ों पर दस्तख़त कराए गए. जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उन्हों पीटा गया और वो बेहोश हो गए.
जब वो होश में आए तो उन्हें बताया गया कि उन्होंने उनके साथ कार में बैठी महिला के साथ आपत्तिजनक अवस्था में तस्वीरें खींच ली हैं.

तस्वीरें राजनारायण के हाथ लगीं
नीरजा चौधरी बताती हैं, “ओमपाल सिंह और केसी त्यागी कई दिनों से सुरेश राम का पीछा कर रहे थे क्योंकि वो कई गतिविधियों में लिप्त थे. उनको पता था कि सुरेश राम की दिल्ली कॉलेज की एक छात्रा गर्लफ़्रेंड हुआ करती थी.”
“वो पोलोरॉयड कैमरे से उसकी नग्न तस्वीरें खींचा करते थे. इन दोनों की पूरी कोशिश थी कि सुरेश राम और उनकी गर्लफ़्रेंड की तस्वीरें उनके हाथ लग जाएँ.”
ये तस्वीरें उन्हें सुरेश राम की उस कार में मिलीं जिसे सुरेश राम ड्राइव कर रहे थे.
तस्वीरें मिलते ही इन दोनों ने उन्हें अपने नेता राजनारायण के पास पहुंचा दिया. उसी रात जगजीवन राम राजनारायण से मिलने कपिल मोहन के घर आए थे. दोनों के बीच करीब 20 मिनट तक बात हुई.
बातचीत का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला और जगजीवन राम रात 11 बज कर 45 मिनट पर अपने घर वापस चले गए. उनके जाने के बाद राजनारायण ने कपिल मोहन से कहा, ‘अब ये काबू में आए हैं.’
अगले दिन राजनारायण ने प्रेस कान्फ़्रेंस करके पूरी घटना का ब्यौरा दिया.
पत्रकार फ़रज़ंद अहमद और अरुल लुइस ने इंडिया टुडे के 15 सितंबर, 1978 के अंक में लिखा, “राजनारायण से पूछा गया कि ओमपाल सिंह को वो तस्वीरें कैसे मिलीं?”
“राजनारायण ने बताया कि ओमपाल सिंह ने सुरेश राम से सिगरेट माँगी. जब उन्होंने सिगरेट देने के लिए अपनी कार का ग्लव बॉक्स खोला तो सिगरेट के पैकेट के साथ वो तस्वीरें नीचे गिर पड़ीं.”
“ओमपाल सिंह ने वो तस्वीरें उठा लीं और सुरेश राम को वापस नहीं कीं, हालाँकि उन्हें वापस लेने के लिए सुरेश राम ने उन्हें पैसे का प्रलोभन भी दिया.”

तस्वीरें संजय गांधी के पास पहुंचीं
राजनारायण के पास सुरेश राम और उनकी गर्लफ़्रेंड की करीब 40-50 तस्वीरें थीं. उन्होंने करीब 15 तस्वीरें कपिल मोहन को दे दीं और बाकी अपने पास रख लीं.
नीरजा चौधरी आगे बताती हैं, “जैसे ही राजनारायण अपने घर गए कपिल मोहन ने अपने भतीजे अनिल बाली से कहा इसी वक़्त इन तस्वीरों को संजय गांधी के पास ले जाओ. बाली 12 विलिंग्टन क्रेसेंट रोड रात 1 बजे पहुंचे. संजय गांधी उस समय सोने जा चुके थे. उन्हें जगाया गया.”
संजय गांधी ने कहा, “ये कोई आने का वक्त है. बाली ने सुरेश राम की तस्वीरें उनके हवाले कर दीं. संजय गाँधी बिना कोई शब्द कहे घर के अंदर गए और इंदिरा गाँधी को जगा दिया.”
अगले दिन यानी 22 अगस्त को सुबह 9 बजे जनता पार्टी के सांसद कृष्णकांत के टेलीग्राफ़ लेन स्थित घर का फ़ोन बजा.
दूसरे छोर पर जगजीवन राम थे. फ़ोन रखते ही उन्होंने अपने परिवार वालों से कहा, ‘एक और बेटे ने अपने बाप को डुबो दिया.’

मेनका गाँधी ने तस्वीरें अपनी पत्रिका में छापीं
दस मिनट बाद रक्षा मंत्री की सरकारी कार कृष्णकांत के घर पर आ कर रुकी.
वो उनकी कार पर बैठकर जगजीवन राम के कृष्ण मेनन मार्ग स्थित घर पर गए. जगजीवन राम ने सभी लोगों से कमरे से बाहर चले जाने के लिए कहा.
नीरजा चौधरी लिखती हैं, “जब वो कमरे में अकेले रह गए, जगजीवन राम अपनी जगह से उठे और उन्होंने अपनी टोपी कृष्णकांत के पैरों पर रखते हुए कहा, अब मेरी इज़्ज़त आपके हाथों में हैं.”
कृष्णकांत ने मीडिया में अपने संपर्कों के ज़रिए जगजीवन राम की मदद करने की कोशिश की.
इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर सईद नक़वी का एक लेख छपा जिसमें सुरेश राम के प्रति सहानुभूति दिखाई गई थी.
भारत के हर अख़बार ने इस ख़बर पर चुप्पी साध ली लेकिन संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने अपनी पत्रिका सूर्या में 46 वर्षीय सुरेश राम और उनकी गर्लफ़्रेड की उन तस्वीरों को छापा.
उस रिपोर्ट का शीर्षक था ‘रियल स्टोरी.’ सूर्या का वो अंक ब्लैक में बिका और जगजीवन राम की भारत का प्रधानमंत्री बनने की ख़्वाहिश हमेशा के लिए समाप्त हो गई.

खुशवंत सिंह के पास भी वो तस्वीरें पहुँचीं
मशहूर लेखक खुशवंत सिंह ने भी इस घटना का ज़िक्र करते हुए अपनी आत्मकथा ‘ट्रुथ, लव एंड लिटिल मेलिस’ में लिखा है कि एक दोपहर मेरी मेज़ पर एक पैकेट आया जिसमें जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम और कॉलेज में पढ़ने वाली एक लड़की की अंतरंग तस्वीरें थीं.
खुशवंत सिंह लिखते हैं, “उसी शाम मेरे पास एक शख़्स आया जो जगजीवन राम के दूत होने का दावा करता था.”
“उसने कहा कि अगर वो तस्वीरें नेशनल हेरल्ड और सूर्या में न छापी जाएं तो बाबूजी मोरारजी देसाई का साथ छोड़ इंदिरा गाँधी की तरफ़ आ सकते हैं. मैं उन तस्वीरों को लेकर इंदिरा गांधी के पास गया.”
खुशवंत ने लिखा, “जब मैंने जगजीवन राम की तरफ़ से आई पेशकश का ज़िक्र किया तो इंदिरा गांधी ने कहा, मेरा उस शख़्स पर रत्ती भर भी विश्वास नहीं है.”
“जगजीवन राम ने किसी और शख़्स से ज़्यादा मुझे और मेरे परिवार को नुकसान पहुंचाया है. उनको कहलवा दीजिए कि पहले उन्हें अपना पाला बदलना होगा तभी मैं मेनका से उन तस्वीरों को न छापने के लिए कहूँगी.”
सूर्या और नेशनल हेरल्ड दोनों ने ख़ास जगहों पर काली पट्टी खींचते हुए वो सारी तस्वीरें छापीं.
इंदिरा गाँधी और चरण सिंह दोनों को पता था कि मोरारजी देसाई के इस्तीफ़ा देने के बाद जगजीवन राम प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हो सकते थे लेकिन इस स्कैंडल के सामने आते ही वो हाशिए में चले गए और फिर उससे कभी उबर नहीं पाए.

इंदिरा गाँधी चरण सिंह से मिलने उनके घर गईं
इंदिरा गाँधी की सदन की अवमानना करने के आरोप में लोकसभा सदस्यता छीन ली गई और उन्हें सदन के सत्र तक तिहाड़ जेल भेज दिया गया.
तिहाड़ जेल से ही उन्होंने चरण सिंह के जन्मदिन 23 दिसंबर को उनके लिए फूलों का गुलदस्ता भिजवाया. 27 दिसंबर को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया.
रिहा होते समय तिहाड़ जेल के अधिकारियों और सिपाहियों ने उन्हें सम्मानपूर्वक सेल्यूट किया. उसी दिन चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह के यहाँ अमेरिका में बेटा पैदा हुआ जयंत.
चरण सिंह ने सत्यपाल मलिक के ज़रिए इंदिरा गाँधी को संदेश भिजवाया, “अगर श्रीमती गाँधी हमारे यहाँ चाय पी लेंगी तो मोरारजी ठीक हो जाएंगे.”
जब इंदिरा गाँधी चरण सिंह के घर पहुंचीं तो उन्होंने गेट पर जाकर उनका स्वागत किया.
इस मुलाकात के ज़रिए चरण सिंह मोरारजी देसाई को संदेश भेजना चाह रहे थे कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो इंदिरा गांधी से दोस्ती कर सकते हैं.
उधर इंदिरा गाँधी भी ये जताना चाह रही थीं कि वो भी जनता पार्टी के असंतुष्ट नेता से मिलकर उनके लिए परेशानी खड़ी कर सकती हैं.

इंदिरा ने समर्थन वापस लिया
इस सब की परिणिति मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़े और चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनने से हुई. शपथ लेने के बाद चरण सिंह ने इंदिरा गांधी को फ़ोन किया कि वो उनके निवास विलिंग्टन क्रेसेंट में आकर उन्हें धन्यवाद देंगे.
नीरजा चौधरी बताती हैं, “चरण सिंह बीजू पटनायक को देखने राम मनोहर लोहिया अस्पताल जा रहे थे. वहाँ से लौटते हुए उन्हें इंदिरा गाँधी के निवास पर रुकना था लेकिन इस बीच उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें सलाह दी कि आप उनके यहाँ क्यों जा रहे हैं? अब आप प्रधानमंत्री हैं, उनको आपसे मिलने आना चाहिए. चरण सिंह ने इंदिरा गाँधी के यहाँ न जाने का फ़ैसला किया”.
यह सब जैसे हुआ वह किसी फ़िल्मी दृश्य से कम नहीं था.
नीरजा बताती हैं, “इंदिरा गाँधी अपने घर के पोर्टिको में हाथ में गुलदस्ता लिए चरण सिंह का इंतज़ार कर रही थीं. उस समय सत्यपाल मलिक भी इंदिरा गांधी के निवास पर मौजूद थे. वहाँ पर करीब 25 कांग्रेसी नेता चरण सिंह का इंतज़ार कर रहे थे.
“इंदिरा की आँखों के सामने चरण सिंह की कारों का काफ़िला उनके घर में घुसने के बजाए उनके घर के सामने से गुज़र गया. इंदिरा गाँधी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.”

मौक़े पर मौजूद लोगों ने देखा कि उन्होंने गुलदस्ते को ज़मीन पर फेंका और घर के अंदर चली गईं.
सत्यपाल मलिक ने कहा, “मुझे उसी समय लग गया कि चरण सिंह की सरकार अब कुछ ही दिनों की मेहमान है.”
बाद में चरण सिंह ने अपनी ग़लती सुधारने की कोशिश की लेकिन इंदिरा ने उन्हें संदेश भिजवा दिया, ‘अब नहीं.’
चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनने के 22 दिनों बाद इंदिरा गाँधी ने उनकी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया.