
फिल्म के दृश्य काटने से क्या होगा, देश में ‘तांडव’ के लाखों पाइरेटेड प्रिंट मौजूद है
भयावह कोरोना काल में वीडियो पाइरेसी के धंधे में विश्वव्यापी बढ़ोतरी देखी गई है। पिछले वर्ष के मध्य में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में वीडियो पाइरेसी में 62 प्रतिशत का अप्रत्याशित उछाल देखा गया। ये स्वाभाविक था। ओटीटी पर नियमित फ़िल्में देखने वाले अधिकांश उच्च मध्यमवर्गीय हैं। बाकी का वर्ग अपनी आवश्यकता वीडियो लाइब्रेरी से पूरी कर रहा है।
कोविड काल में थियेटर बंद होने के चलते पाइरेसी का प्रतिशत तेज़ी के साथ बढ़ा। अनुमान है कि इस नए साल में ये और ज़ोर पकड़ने वाला है। अब हम ‘तांडव’ फिल्म की टीम की घोषणा को देखते हैं। फिल्म के निर्देशक ने बताया है कि वे इसके आपत्तिजनक दृश्य काटने जा रहे हैं। निर्देशक सूचना व प्रसारण मंत्रालय का धन्यवाद भी करते हैं।
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धन्यवाद इस बात का दिया जा रहा है क्योंकि मंत्रालय की ओर से ही ये दृश्य काटने का सुझाव आया था। कभी-कभी ये विचार आता है कि राजनेता जनता की समझ को आज भी सत्तर के दशक का क्यों समझते हैं। पिछले तीन दिन से ‘तांडव’ को लेकर जो डेमेज कंट्रोल किया जा रहा था, वह अब समाप्ति की ओर है। आपत्तिजनक दृश्य काटना भी इसी ‘डेमेज कंट्रोल’ का एक भाग था।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रौद्र रुप से सभी परिचित हैं। डेमेज कंट्रोल करने वाले जानते थे कि उत्तरप्रदेश के गुस्से को शांत करने के लिए कुछ अलग करना होगा क्योंकि लोगों का गुस्सा भी बहुत उबाल पर था। सो उन्होंने तीन दिन से चल रहे तमाशे का अंत कुछ इस तरह से किया।
अब पुनः पाइरेसी की और लौटते हैं। इस समय देश के लाखों कम्प्यूटर्स और मोबाइल पर ‘तांडव’ का मूत्र विसर्जन निर्बाध जारी है। फिल्म रिलीज होने के 24 घंटे के अंदर ही भारत, पाकिस्तान और दुबई में पहुँच चुकी थी। इसके कॉपी किये गए एचडी प्रिंट्स लाखों की तादाद में फैला दिये गए थे। अब मुझे कोई ये बताएगा कि सूचना व प्रसारण मंत्रालय के इस सड़ियल सुझाव से क्या असर हुआ? क्या क्रोध में उबल रहे हिन्दुओं को न्याय मिल गया?
आज और इसी समय आप ‘तांडव’ की अनएडिटेड प्रिंट बाजार से आसानी से ले सकते हैं। कुल मिलाकर होशियारी से योगी आदित्यनाथ और देश के समस्त हिन्दुओं के उबाल पर पानी डाल दिया गया है। आरोपी सब कुछ करके भी बाहर है और चैन से है। कुढ़ रहे हैं तो देश के हिन्दू। जिनके आक्रोश की परिणीति हर बार एक सी होती है। मंगलवार की शाम सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर प्रेस वार्ता ले रहे थे।
वे राहुल गाँधी के बारे में कह रहे थे कि नड्डा जी के प्रश्न पर राहुल जवाब दिए बिना भाग गए। क्या ये बात स्वयं जावड़ेकर जी पर लागू नहीं हो रही। मनोरंजन उद्योग को अनावश्यक ढील, बॉलीवुड में ड्रग्स मामले पर ढील, टीआरपी पर लचर रवैया, ओटीटी कानून बन जाने पर भी निर्धारण न करने को लेकर रोज़ सैकड़ों प्रश्न उनसे किये जा रहे हैं। लेकिन वे मौन रहते हैं। मनोरंजन उद्योग पर अत्याधिक उदारता से अपयश ही मिल रहा है।
केंद्र को इस पर भी विचार करना चाहिए कि महाराष्ट्र राज्य के फिल्म उद्योग में ही धर्म विरोध और देश विरोध क्यों प्रकट हो रहा है। देश के अन्य राज्यों में भी फिल्म उद्योग कार्यरत हैं लेकिन वे ऐसा नहीं करते। स्वयं महाराष्ट्र का मराठी फिल्म उद्योग स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा में विश्वास करता है। केवल एक फिल्म उद्योग दूषित भावना से कार्यरत है। छह वर्ष पूर्व एक शक्तिशाली सरकार अस्तित्व में आई।
इस सरकार से लोगों को अपेक्षा थी कि फिल्म उद्योग में पनप रही इस गंदगी को साफ़ किया जाएगा। छह वर्ष उपरांत देखने में आता है कि गंदगी तो चार गुना बढ़ चुकी है और इस ओर केंद्र का ध्यान ही नहीं जा रहा। वह कभी घोषित रुप से कहता ही नहीं कि बॉलीवुड को दाऊद इब्राहिम के शिकंजे से मुक्त कराना भी उसका एक लक्ष्य है।
तांडव फिल्म का निर्देशक महादेव का अपमान करने के बाद भी आराम से चाय पीता माफीनामा पोस्ट करता है और कुछ दृश्य काटकर इस आरोप से मुक्ति पा लेता है। सरकार ये जानते हुए कि वह सांप निकल जाने के बाद लकीर पीट रही है, चुप रहती है। उसका मंत्री जनता के प्रश्न का जवाब देने के बजाय राहुल गांधी को भगोड़ा कहता है। जबकि भगोड़ा तो वह खुद है, जो पिछले एक साल से जनता के सवालों से बचकर भागता जा रहा है।
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