संदीप देव। हैदराबाद के चारमिनार के पास 1857 का बना यह विशाल शिव मंदिर है। चारमिनार के आसपास गंदगी है, परंतु मंदिर परिसर में पहुंचते ही आपको साफ-सफाई और शांति का अनुभव होगा।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि बेहद व्यवस्थित यह मंदिर निजी ट्रस्ट द्वारा संचालित है। यह हिंदुओं के अंदर बैठा दी गई उस धारणा को ध्वस्त करती है कि सरकार ही मंदिर को संभाल सकती है, कोई हिंदू नहीं!


असल में 1951 से ही मंदिरों पर कब्जा करने के लिए सरकार, राजनीति पार्टी, उसके कार्यकर्ता और सरकारी मिशनरियों ने यह प्रचारित कर रखा है कि हिंदू अपने मंदिर की देखभाल नहीं कर सकते, इसलिए सरकार उन पर कब्जा करती चली गई है। वहीं मस्जिद, मदरसे और चर्च की पूरी देख रेख मुस्लिम और ईसाई के अपने हाथों में है।
अभी-अभी तिरुपति बालाजी मंदिर के ट्रस्ट का प्रमुख ईसाई मुख्यमंत्री जगन ने ईसाई करुणाकर रेड्डी को बनाया है। करुणाकर को जगन के पिता YSR ने भी तिरुपति का मुख्य ट्रस्टी बनाया था। इसके जरिए तिरुपति बालाजी की 2.50 लाख करोड़ की संपत्ति का उपयोग म्लेच्छ कल्याण पर खर्च किया जाता है, न कि हिंदू कल्याण के लिए। एक RTI के अनुसार तिरुपति बालाजी जी मंदिर में सलाना 3000 करोड़ से अधिक दान आता है, जिसमें से 85% सरकार ले लेती है।



एकम् सनातन भारत दल ने अपने ‘सप्त-संकल्प’ में इसीलिए मंदिर/मठों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखने का विषय रखा है ताकि हिंदू समाज का धन हिंदू कल्याण में वह मंदिर/मठ खर्च कर सके।
अभी मैं जगन्नाथ पुरी भी गया था। वहां आसपास गंदगी और बदबू पसरा है, और वह मंदिर सरकारी नियंत्रण में है। जबकि जिस निजी ट्रस्ट द्वारा संचालित मंदिर की फोटो मैंने यहां दी है वो एक गंदे बदबूदार इलाके में होते हुए भी साफ-सफाई और सौंदर्य से भरा है।
हिंदू अपना मंदिर संभालने में सक्षम है। बस यह कह कर कि हिंदू मंदिर नहीं संभाल सकता, उसके आत्मविश्वास को तोड़ने का प्रयास किया गया है, ठीक उसी तरह जैसे उसके वास्तविक इतिहास को छिपा कर आक्रांताओं के इतिहास को लिखा गया है यह साबित करने के लिए कि हिंदू तो शासित होने के लिए ही पैदा हुआ है!



आइए मंदिर मुक्ति अभियान को आगे बढ़ाएं और अपने दान के पैसे को अपने गुरुकुल से लेकर औषधालय तक को खड़ा करने में वह मंदिर खर्च कर सके इसकी एक लंबी लड़ाई छेड़ें। जय सनातन!