अवरोध : The siege within
यदि ‘उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक’ उरी आतंकी हमले से लेकर एलओसी पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर एक ‘सर्चलाइट’ डालती है तो ‘अवरोध-The siege within’ भारतीय सेना के पराक्रम पर संपूर्ण दस्तावेज है। इस दस्तावेज में भारत का राजनीतिक परिदृश्य और विवशताओं पर प्रहार करता उसका आक्रामक रूप दिखाई देता है। इसमें घटनाओं को तारीखों के साथ सिलसिलेवार ढंग से ऐसे गुंथा गया है कि ये वेब सीरीज खुद में एक विश्वसनीय दस्तावेज बन गई है। फिल्म का शीर्षक कमाल का है। पिछली सरकारों के भीरूपन ने हमारे भीतर एक मनौवैज्ञानिक ग्रंथि ने जन्म लिया था कि ‘महात्मा का देश’ पलटकर वार करना भूल चुका है। इस मनोवैज्ञानिक स्व निर्मित अवरोध को हमने उरी का प्रतिशोध लेकर सदा के लिए तोड़ दिया था।
फिल्म में विस्तार से दिखाया गया है कि उरी हमले के पहले और बाद में परिस्थितियां किस तरह की थी। निर्देशक ने कहानी में वास्तविक तथ्यों को शामिल किया है। उरी हमले से पहले आतंकी एक गद्दार की सहायता से रेकी करते हैं और उसी रात सैनिकों के वेश में सेना के कैम्प पर हमला कर देते हैं।
इस बीच एक चैनल की रिपोर्टर आतंकियों के सरगना अबू फैजल का इंटरव्यू कर लाती है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शैलेष मालवीय उस पर नाराज हो जाता है। ये दिखाने का प्रयास किया गया कि कैसे सरकार का एक धड़ा जवाबी कार्रवाई के पक्ष में नहीं था और कैसे मीडिया सेना के उत्साह पर पानी डालने का काम करता है।
फिल्म में पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं। जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का नाम विशाल मालवीय है। सतीश महादेवन सुरक्षा सचिव हैं। रक्षा मंत्री सुनीता भारद्वाज, गृह मंत्री राजनाथ का किरदार भी इसमें दूसरे नाम से हैं। प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका विक्रम गोखले ने की है और बहुत दिन बाद उन्होंने दर्शकों को लाजवाब कर दिया।
विक्रम गोखले ने नरेंद्र मोदी का जो एटीट्यूड कॉपी किया है, वह देखते ही बनता है। मोदी की दृढ़ता को उन्होंने सजीवता से प्रस्तुत किया है। नीरज काबी ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका में कमाल किया है। वे इन दिनों वेब सीरीज में दिखाई दे रहे हैं और बेहतरीन काम कर रहे हैं।
दर्शन कुमार ने मेजर गौतम के किरदार को परदे पर उतारा है। बिहार रेजिमेंट के इस सैनिक की मनोदशा उन्होंने प्रत्यक्ष दर्शाई है। अमित साध इन दिनों वेब प्लेटफॉर्म के सुपरस्टार बन चुके हैं। अभिषेक बच्चन के साथ ‘ब्रीद’ के बाद इस फिल्म में वे प्रभावित करते हैं। जोशीले अमित साध के कन्धों पर केंद्रीय भूमिका थी, जो उन्होंने स्वाभाविकता के साथ वहन की है।
देश के नागरिक तो सेना के पूर्ण समर्थन में होते हैं लेकिन सरकार में बैठे ब्यूरोक्रेट्स और मीडिया का साथ सेना को कम ही मिलता है। आतंकी हमला होने के बाद सेना के हाथों कुछ आतंकवादी मारे जाते हैं तो रिपोर्टर अमन लाने की उम्मीद की बातें करने लगती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की मज़बूरी है कि वह ब्यूरोक्रेट के नखरे झेलते हुए ड्यूटी करे। वह सुरक्षा सचिव को एक दृश्य में कहता है ‘ब्यूरोक्रेसी में तुम्हारे जैसे ब्यूरोक्रेट का साथ होना आवश्यक है। फिल्म में सेना के इस अभियान के अलावा वह कड़वी सच्चाई भी बताई गई है जो हम दिन रात देखा करते हैं। मिशन समाप्त होने के बाद एक अधिकारी को इस बात की जल्दी है कि पीएम जल्दी मीडिया को ब्रीफ करे लेकिन उसे अपने सैनिकों की कोई चिंता नहीं है।
फिल्म निर्देशक राज आचार्य का प्रोफ़ाइल खासा लुभावना है। ‘स्लमडॉग मिलिनियर’ में सहायक निर्देशक रहे। ‘मिशन इम्पॉसिबल-घोस्ट प्रोटोकॉल’ के लिए सहायक निर्देशक के रूप में कार्य किया। इस सीरीज ने उन्हें वेब प्लेटफॉर्म पर मजबूती से स्थापित कर दिया है और अब तो बड़ी थियेटर फिल्मों के लिए भी निर्माता निश्चित ही उनसे संपर्क साधेंगे।
एक युद्ध फिल्म को डाक्यू-ड्रामा की तरह प्रस्तुत करने का जोखिम कम निर्देशक ही उठाते हैं। उन्होंने वास्तविक चरित्रों का गहन अध्ययन करने के बाद कलाकारों का चयन किया और उनकी ये मेहनत परदे पर दिखाई देती है। फिल्म में कलाकारों के शानदार क्लोजअप्स के लिए सिनेमेटोग्राफर शानू सिंह बधाई के पात्र हैं।
कुछ दर्शक कह रहे हैं कि ये युद्ध फिल्म उन्हें महंगी लग रही है। जो फिल्म वास्तविक दस्तावेजों के आधार पर बनी हो। जिस फिल्म को सेना ने हर सहयोग प्रदान किया हो। जिस फिल्म में भारत सरकार के शौर्य की गाथा हो, क्या वह फिल्म आपको महंगी लग सकती है। ऐसी फिल्मों को हम नहीं देखेंगे तो इस प्लेटफॉर्म पर एकता कपूर की नीली फिल्मों का कब्ज़ा हो जाएगा।
जल्द ही एक और युद्ध फिल्म ‘गुंजन सक्सेना‘ रिलीज होने जा रही है। देश की फाइटर पायलट पर बनी ये फिल्म भी शायद आपको महंगी लग सकती है। कुछ रचनाएं नायाब होती हैं, उनको अनुभव करने के लिए पैसा आड़े नहीं आना चाहिए। ‘अवरोध The siege within’ को आप जितनी बड़ी हिट बनाएँगे, इस प्लेटफॉर्म पर ऐसी अच्छी फ़िल्में रिलीज होने की संभावनाएं उतनी ही बढ़ती जाएगी। ये गौरव गाथा देखी जानी चाहिए। ये युद्ध फिल्म देखते-देखते आप अनायास ही अपनी पलकों को नम पाएंगे। यहीं पर महंगी कीमत वसूल हो जाएगी।
फिल्म के कुछ यादगार संवाद
-राजनीति में कोई पूर्ण विराम नहीं होता।
-सुनीता जी से बयानबाज़ी करवाइये कि हम सार्क में शामिल नहीं होंगे।
– दुनिया को ये तो दिखा दे कि भारत केवल महात्मा का देश नहीं है, ये देश सुभाष चंद्र बोस का भी है।
– राजनीति मेरी महत्वाकांक्षा नहीं बल्कि एक मिशन है।
– हम जवाब देंगे और इसका वक्त और तरीका भी हम ही चुनेंगे।
– मिशन सफल तो हो गया लेकिन पूरा हमारे सैनिकों के सुरक्षित पहुँचने पर पूरा होगा।
– मैंने इस देश के लोगों से मन की बात की थी कि हम वादों पर नहीं इरादों पर काम करेंगे।
– एक बिन लादेन को मारने से अल-कायदा ख़त्म नहीं हो गया लेकिन दुनिया का नज़रिया अमेरिका के लिए जरूर बदल गया।
– शेर दहाड़ना बंद कर दे तो जंगल उसे कमज़ोर समझने लगता है।