श्वेता पुरोहित। अनन्त आकाश में पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश के सूक्ष्म से सूक्ष्म अणु और से स्थूल महत्तम तत्व अनवरत भ्रमण कर रहे हैं । प्रतिक्षण एक तत्त्व का दूसरे तत्त्व स्थूल से; अथवा अपने ही सजातीय तत्व से संयोग होता रहता है; अथवा किसी अपने अवयव से वियोग भी स्वभावतः होता है । पृथ्वी, अप, तेज, वायु और आकाश तत्त्वों का सम्मिश्रण एक घनीभूत ठोस आकृति में दृष्टिगोचर होता देखा गया है । आधुनिक गवेषणाओं से प्रायः १०० से अधिक तत्वों का परिचय प्राप्त किया जा चुका है । तत्त्वों के मिश्रण और यौगिक भेदों से आज के विज्ञान ने विश्व को बहुत कुछ दिया है ।
प्रकृति के जिस पिण्ड में पृथ्वी तत्त्व का बाहुल्य है उसे पार्थिव शरीर कहा गया है। पृथ्वी पार्थिव है, अतः पृथ्वी के सभी जड़ चेतन पदार्थों में पृथ्वी तत्त्व का प्राधान्य है। पृथ्वी अपनी शक्ति से अथवा ईश्वर प्रदत्त शक्ति से अनन्त ब्रह्माण्ड के अनन्त आकाश के किसी एक लघुतम बिन्दु पर स्थित हैं। इसलिए पृथ्वी में ब्रह्माण्ड के सभी धर्म उपलब्ध होते हैं। अतएव कहा भी है –
‘यत्पिण्डे तद्ब्रह्माण्डे’ अथवा ‘यद्ब्रह्माण्डे तत्पिण्डे’ ।
जीवतत्त्व जीव भी एक तत्त्व है । वह पृथ्वी में कहाँ से आया? कैसे आया? क्यों आया ? इत्यादि अनेक संशयों का प्रायः अभी तक कोई प्रत्यक्ष समाधान नहीं हो पाया है, तथापि विज्ञानवेत्ता इस समस्या के हल के प्रयास में बराबर अग्रसर है। शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध के सम्बन्ध से पिण्डज, अण्डज, स्वेदज अनेक योनियों के जीव देखे जाते हैं ।
आगम शास्त्रों के अनुसार चौरासी लाख जीव योनियाँ बताई गई हैं। आधुनिक, भूगर्भशास्त्रियों एवं जीवविज्ञान विशेषज्ञों अथवा वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञों के मत से चौरासी लाख योनियों में सन्देह नहीं है । आज का विज्ञान जीव योनियों की गणना में अभी तक किसी स्थिर संख्या का निर्देश नहीं कर सका है। जो भी हो-कहना पड़ेगा कि अनन्त शक्ति के अनन्त जीव है।’
यतोऽनन्त शक्तेरनन्ताश्च जीवा यतो निर्गुणादप्रमेया गुणास्ते ।
नमोस्त्वनन्ताय सहस्त्रमूर्तये
यहाँ जीव को प्रभावित करने वाले ग्रहों का विवेचन आवश्यक है –
सूर्य और चन्द्र ब्रह्माण्ड नायक के महान् तेज स्वरूप हैं। मन से चन्द्रमा और नेत्र त्रि से ज्योतिष्मान् सूर्य ज्यात का समुद्भव हुआ है। सूर्य का गोल तेजोगोल है जो चाक्षुस प्रत्यक्ष है। चन्द्रमा अमृत पिण्ड है या पीयूष पिण्ड है अथवा नवनीत पिण्ड है जिसे जल पिण्ड या सोम कहा गया है। अतएव सोम एक रस है, मद्य का पर्याय भी सोम है। यह सोम (स्वादु) रसना से प्रत्यक्ष होने के कारण रसना से प्रत्यक्ष है। ‘अग्नि सोमो’ यह वैदिक प्रयोग भी उक्त अर्थ में ही किया गया है । आकाश में पृथ्वी के ऊपर चन्द्रमा (सोम) और चन्द्रमा के ऊपर सूर्य (अग्नि) है ।
बुध इसी प्रकार पृथ्वी के ऊपर सूर्य के नीचे बोधन तत्त्व है, जिसे बुध वाणी या वाक्तत्त्व कहा गया है । प्रायः सौरमण्डल के पश्चिमोत्तर दिग्विभाग में इस तत्त्व की प्रधानता पाई जाती है।
मंगल यह भी हमारी (पृथ्वी) भूमि की तरह पार्थिव तत्त्व है । भूमि से संबंधित होने से इसका नामकरण भौम, अथवा कु (पृथ्वी) से जायमान होने से कुज भी कहा गया है। सूर्य गोल से ऊपर के गोल में इसकी अवस्थिति है । संभवतः किसी समय सूर्य बिम्ब के कुछ अवयवों में उसके दो महान् अवयव जो अलग हो गये थे उनमें से ऊपर को गया हुआ अवयव वह कुज या भौम हुआ होगा एवं सूर्य से नीचे का जो अवयव नीचे आया उसे भूमि या कु कहा गया होगा ? मंगल का वर्ण रक्त है। दूरवीक्षण यन्त्र से ही नहीं, खुली आँख से भी आकाश में लाल वर्ण का भौम तारा प्रत्यक्ष देखा जाता है । मंगल ग्रह में अग्नि तत्त्व प्रधान है । सौरमण्डल में अग्नि एवं दक्षिण दिशाओं में इस तत्त्व का प्राधान्य है।
शुक्र सूर्य की आसन्न कक्षा में उसके चारों तरफ वर्तुल मार्ग में चन्द्रमा की तरह सोम प्रधान ग्रह है जो तेजस्वी और आकर्षक है । तामस गुण युक्त होते हुये भी यह ज्ञान से पूर्ण है।
गुरु या पूज्य अग्नि प्रधान सूर्य तत्त्व से ऊपर गुरु, ज्ञान और सुख का धाम है। सौरमण्डल के उत्तर में जीव तत्त्वों का भाण्डार है। शान्त, दान्त और गुणाकर है। सौरमण्डल की उत्तर दिशा में सत्त्व प्रधान होकर सौरमण्डल की परिक्रमा करता है।
शनि वायु तत्त्व प्रधान है, दुःख स्वरूप होने से सौरमण्डल को क्लेश पहुँचाने का स्वभाव है । सौरमण्डल की दक्षिण पश्चिम दिशाओं में वायु प्रधान होकर अवस्थित है। सौरमण्डल की अन्तिम सीमा (पश्चिम में) रहते हुए धीरे – धीरे लगभग ३० वर्षों में सौरमण्डल की परिक्रमा करता है।