विपुल रेगे। एक प्रदेश का मुख्यमंत्री शिक्षा में घोटाले के आरोप में जेल भेज दिया गया है। जेल जाने से पहले वह अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा गया है। जेल में रहते हुए वह किताबों से टकराता है और यहीं से उसका जीवन बदलने लगता है। जिस शिक्षा में घोटाला करके वह जेल गया था, उसी शिक्षा के उजास में वह एक नया व्यक्ति बनता है।
ओटीटी मंच – नेटफ्लिक्स/जिओ सिनेमा
पहली बार असिस्टेंट निर्देशक से निर्देशक बने तुषार जलोटा की पहली फिल्म दसवीं शिक्षा की उपयोगिता समझाने के लिए बनाई गई है। ये एक चोखा स्क्रीनप्ले था। इस स्क्रीनप्ले पर बहुत ही सुंदर फिल्म गढ़ी जा सकती थी। उतनी गहनता निर्देशन में नहीं दिखाई दी, जितनी इसके स्क्रीनप्ले में झलकती है। निश्चित ही निर्देशक के वैचारिक लेंस उम्दा क्वालिटी के नहीं थे। ऐसा भी नहीं है कि फिल्म पूरी तरह उदासीन है।
इसमें कई क्षण मनोरंजन और हास्य की फुहार लेकर आते हैं किन्तु कुछ मनोरंजक क्षण फिल्म को एक बड़ी सफलता नहीं दिला पाते हैं। निर्देशक गहनता से काम करता तो ये फिल्म राष्ट्रीय स्तर पर धमाल कर सकती थी। निर्देशक जब एक फिल्म बनाता है तो वह एक संसार रचता है। तुषार जलोटा के इस संसार में बहुत सी तकनीकी गलतियां दिखाई देती है। साथ ही कलाकारों के चयन में भी त्रुटि हुई है।
अभिषेक बच्चन की मुख्य भूमिका वाला पात्र गंगाराम चौधरी अपने व्यक्तित्व में जटिलताएं लिए हुए है। इस पात्र को निभाने के लिए बहुत सारा होमवर्क आवश्यक था। अभिषेक बच्चन एक ऐसा पत्थर है, जो पारस पत्थर के संपर्क में आने पर ही अपना कमाल दिखाता है। इस बेजान पत्थर में अब तक केवल तमिल फिल्म निर्देशक मणिरत्नम ही जान डाल पाए हैं। मणिरत्नम की युवा और गुरु अभिषेक बच्चन के कॅरियर की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्में हैं।
यहाँ अभिषेक बच्चन उथले पानी पर चलते हैं। उन्होंने इस किरदार के लिए गहराई में डुबकी नहीं लगाई है। हालांकि उन्होंने जैसे-तैसे गंगाराम चौधरी की भूमिका का निर्वाह कर लिया है। उनमे अब भी संभावनाएं हैं लेकिन उन्हें एक मणिरत्नम की आवश्यकता है। यामी गौतम ने फिल्म में जेलर ज्योति देसवाल की भूमिका निभाई है। यामी ने सुंदर अभिनय दिखाया है।
अभिषेक बच्चन के साथ के कई दृश्यों में यामी की दक्षता झलकती है। गंगाराम चौधरी की पत्नी बिमला देवी चौधरी की भूमिका निमृत कौर ने निभाई है। निमृत कौर के अभिनय की प्रशंसा हुई है। सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म से उठे एक कलाकार को दसवीं में देखकर सुखद अनुभूति हुई। अरुण कुशवाह उर्फ़ छोटे मियां के छोटे कदम एक बड़े मुकाम की ओर बढ़ रहे हैं।
इससे पूर्व भी वे तीन फिल्मों और एक वेब सीरीज में दिखाई दिए हैं। छोटे मियां अत्यंत प्रतिभाशाली हैं किन्तु निर्देशक तुषार जलोटा उनकी प्रतिभा का उपयोग ही नहीं कर सके। फिल्म के आधे से अधिक दृश्य जेल में फिल्माए गए हैं। यहाँ निर्देशक से कई गलतियां हुई हैं। जेल में कैदी यूनिफॉर्म में दिखाई नहीं देते। एक भी दृश्य में यूनिफॉर्म दिखाई नहीं जाती। जेल की निर्दयता यहाँ गायब है।
अपितु फिल्म का क्लाइमैक्स इसे एक बेदम फिल्म बनने से बचा लेता है। क्लाइमैक्स एक सुखद अनुभूति देता है और साथ ही शिक्षा को लेकर एक सार्थक संदेश देता प्रतीत होता है। ये एक गंभीर और सार्थक फिल्म बन सकती थी लेकिन इसे एक कॉमिक ट्रीटमेंट दिया गया है। कुल मिलाकर ये एक औसत फिल्म है। इसमें कुछ सुखद पल अवश्य मिलते हैं लेकिन अधिकांश फिल्म औसत रही है।
अच्छा है ये ओटीटी पर प्रदर्शित हुई है तो इसे कुछ दर्शक मिल जाएंगे। थियेटर्स में तो आर आर आर और द कश्मीर फाइल्स का उन्माद छाया हुआ है। थियेटर में दसवीं पानी भी नहीं मांग पाती, ये आज के बॉक्स ऑफिस का सत्य है।