महाधूर्त राक्षस वो नेता , जो तुष्टीकरण बढ़ाता है ;
मानवता का वो दुश्मन है, अल्पसंख्यकवाद को लाता है ।
महामूर्ख है हिंदू – जनता , जातिवाद में बंटी हुई है ;
धर्म के दुश्मन पापी नेता के चक्कर में फंसी हुई है ।
नरभक्षी हैं ऐसे नेता , राजनीति लाशों पे करें ;
जगह-जगह मंदिर तुड़वाते , राजनीति दंगों पे करें ।
क्यों इतना सत्ता का लालच ? आखिर कितना खाओगे ?
सब कुछ यहीं धरा रह जाये , जब दुनिया से जाओगे ।
पर फिर भी कुछ तो ऐसा है , जो साथ सभी के जाता है ;
पर स्वार्थ में अंधा ऐसा मानव , देख नहीं कुछ पाता है ।
अच्छे – बुरे कर्म सब तेरे , तेरे संग- संग जाते हैं ;
इस जीवन से कई गुना है , मृत्यु बाद जीवन पाते हैं ।
सारे कर्म वहीं फलते हैं , अगला जन्म दिलाते हैं ;
पाप- कर्म वाले जो होते , वे सूअर बन जाते हैं ।
यहां – वहां का मैला खाते , नाली में मर जाते हैं ;
एक जन्म में कर्म न कटते , फिर कुत्ता बन जाते हैं ।
कुत्ता , बिल्ली , चूहा , छछूंदर , ऐसे लोग ही बनते हैं ;
पर जो अच्छे कर्म हैं करते , इन सबसे बच जाते हैं ।
बड़े भाग्य से मानव जीवन , उसको यूं ना बर्बाद करो ;
इतने गंदे पाप मत करो , माफी की फरियाद करो ।
जब भी आंख खुलेगी तेरी , तभी सुबह हो जायेगी ;
जब तू अच्छे कार्य करेगा , तेरी सद्गति हो जायेगी ।
अभी से तू ये निश्चय कर ले , कोई पाप नहीं करना ;
सबको एक बराबर समझो , तुष्टीकरण नहीं करना ।
अल्पसंख्यकवाद मिटा दो सारा , मानव में मत भेद करो ;
सारे बर्बर – हत्यारे मारो , मजहब का मत भेद करो ।
मानवता को बचाना है और हर अपराध मिटाना है ;
भ्रष्टाचार मिटाकर सारा , कानून का शासन लाना है ।
जस का तस कानून हो लागू , भेदभाव बिलकुल न होगा ;
चाहे शेर हो या बकरी बच्चा , एक ही घाट का पानी होगा ।
सारे गुंडे – नेता पकड़ो , राजनीति को शुद्ध करो ;
राष्ट्रनीति में बदल दो इसको , अब न इसमें देर करो ।
तेरे बाद भी ठीक चलेगा , शासन को आदर्श बनाओ ;
सदा – सर्वदा आदर्श रहेगा , देश को हिंदू -राष्ट्र बनाओ ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”