डॉ. रजनी रमण झा।। आज दशम गुरु श्रीगुरु गोबिंद सिंह का जन्मदिन है। पौष शुक्ल सप्तमी। बीच में उनका जन्मदिन अंग्रेजी तिथि के अनुसार 05 जनवरी को मनाया जाने लगा था। मैं उन दिनों झालावाड़ (राजस्थान) में पदस्थापित था। वहां विश्व हिन्दू परिषद् के जिला अध्यक्ष एक सरदार थे। मैंने उनके पास जाकर अपना विरोध जताया कि दशमेश गुरु का जन्मदिन अंग्रेजी तिथि से क्यों मनाया जाए ।
वे भी सहमत थे,पर उनका कहना था कि अकाल तख्त का निर्णय है, अतः हमें मानना ही पड़ेगा। फिर वहां राष्ट्रीय सिख संगत के राष्ट्रीय अध्यक्ष आये थे। मैंने उनके आगे भी यह विषय रखा था। वे भी सहमत थे। पर वहां भी वही अकाल तख्त का निर्णय ही मान्य था।
अस्तु, फिर अचानक क्या हुआ कि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्मदिन पौष शुक्ल सप्तमी को ही मनाने का निर्णय पुनः ले लिया गया।
और अब ऐसे ही मनाते हैं।
मुझे यह जानने की इच्छा अवश्य है कि आखिर दशमेश गुरु की जन्मतिथि को लेकर अंग्रेजी तारीख का निर्णय लेने के पीछे क्या कारण रहे ।
तथापि अन्त भला तो सब भला ।
स्वामी विवेकानन्द ने दशमेश गुरु को सन्त-सैनिक (saint soldier) कहा।वे लेखक, दार्शनिक और योद्धा सब एक साथ थे। उन्होंने संस्कृत में भगवती चण्डी की स्तुति लिखी है। मैं एक बार जब महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर (राजस्थान) में संस्कृत विषय की पाठ्यक्रम समिति में था, तो उस पुस्तक के कुछ अंश जोड़ने की इच्छा की।
पर उसकी प्रति मुझे उपलब्ध नहीं हो पायी। मुझे किन्हीं ने बताया कि वह अमृतसर में मिल सकती है। कभी अमृतसर जाना होगा, तो उस पुस्तक को उपलब्ध करने का प्रयास करूंगा।
१६६७ में जन्मे और १७०८ में निर्वाण को प्राप्त दशमेश गुरु ने मात्र ४१ वर्ष की आयु प्राप्त की थी। तथापि इन वर्षों में उन्होंने जो ऊंचाई प्राप्त की, वह विलक्षण है। अपने चार पुत्रों – अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेहसिंह – के बलिदान को शान्त रहकर स्वीकार करनेवाले दशमेश गुरु ने कहा कि जो योद्धा रणक्षेत्र में खड़े हैं, वे हमारे पुत्र ही हैं। उन्होंने कहा था –
देहि शिवा बरु मोहि इहै सुभ कर्मन ते कबहुं न टरौं।
न डरौं अरि से जाई लरौं निसचै कर अपनी जीत करौं।
हे मां भगवती! मुझे यह वर दीजिए कि मैं शुभ कर्म से कभी ना हटूं। शत्रुओं से बिना डरे उनसे जा भिडूं और निश्चयपूर्वक अपनी जीत करूं। दशमेश गुरु ने कहा कि वे किसी का भय नहीं मानते और न किसी को भयभीत करना चाहते हैं।
भय काहू को देत नहीं नहीं भय मानत आन।
संस्कृत में एक श्लोक है कि जिस द्विज से किसी को अणुमात्र भी भय नहीं है, उस विमुक्त द्विज को भी किसी से भय प्राप्त नहीं होता।
यस्मादण्वपि भूतानां द्विजान्नोत्पद्यते भयम् ।
तस्य द्विजविमुक्तस्य भयं नास्ति कुतश्चन ।।
यही तो आदर्श स्थिति है। सबको श्रीगुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएं।