कल्पवृक्ष हिंदू ने पाया
इसकी सारी बातें झूठी , ये देश नहीं बचने देगा ;
इसको दायित्व से मुक्त करो , ये चमन नहीं खिलने देगा ।
श्रेष्ठ – परम्परायें तोड़ रहा , सारी नैतिकता छोड़ रहा ;
सबकी जीत का श्रेय ले रहा , हर हार से पल्ला झाड़ रहा ।
हर जगह ये टांग अड़ाता है, कुछ आता हो या न आता ;
आत्ममुग्धता इस कदर है हावी,केवल खुद को देखा करता।
कपड़े बदले पाँच बार , लगता कोई काम न दूजा है ;
कितने उद्घाटन करता है ? हर जगह काटता फीता है ।
ट्रेनों को झंडी दिखलाता , नियुक्ति – पत्र भी देता है ;
पर जो है इसका असली काम, वो काम कभी न करता है ।
घूम रहा है दुनिया भर में , राष्ट्र के धन को लुटाता है ;
जैसे दीमक लगा हो जड़ में , नींव खोखली करता है ।
अंग्रेज-मुगल तक हिला न पाये , देश की हिंदू-नींव को ;
अब्बासी – हिंदू हिला रहा है , हिंदू – धर्म की नींव को ।
झूठे-इतिहास की गंदी-शिक्षा , हिंदू गफलत में सोया है ;
पर जितने हिंदू जाग गये हैं , उतने भर से भय खाया है ।
जगे हुये जितने हिंदू हैं , जितने सोये हैं जगा डालो ;
चाहे कुछ भी हो जाये , अबकी अच्छी सरकार बना डालो ।
आजादी के बाद से लेकर , अच्छी सरकार नहीं आयी ;
अवसरवादी , चोर-लुटेरे , अब्बासी-हिंदू की बन आयी ।
मरता हिंदू क्या न करता ? कूड़े से बेहतर चुनता रहा ;
अच्छा विकल्प कोई भी नहीं था , बोझ गुलामी ढोता रहा ।
पर अब ऐसी बात नहीं है , सर्वश्रेष्ठ अब विकल्प मिला है ;
हर हालत में ढहने वाला , अब्बासी – हिंदू का किला है ।
कल्पवृक्ष हिंदू ने पाया , “एकम् सनातन भारत” आया ;
अब हिंदू सब कुछ पायेगा , हजार बरस में जो भी गंवाया ।
हिंदू – जीवन धर्म – सनातन , सम्पूर्ण – विश्व में छायेगा ;
सर्वश्रेष्ठ जो भी शासन है , अब भारत में आयेगा ।
लोकतंत्र के इस महायज्ञ में , हर – हिंदू आहुति देगा ;
दसों – दिशायें गूँज उठेगीं , धर्म का शासन आयेगा ।
आने वाले खुशियों के पल हैं , स्वागत की तैयारी कर लो ;
कोई अन्याय न तुम पर होगा , खुशियों से दामन भर लो ।
जितने भी अन्यायी हैं , अत्याचारी हैं व व्यभिचारी ;
कोई भी न बच पायेगा , नेता-अफसर जो स्वेच्छाचारी ।