मिष्ठी – चुनमुन – चेतना , बाबा की रानी बेटी ;
खाने में बस दूध है भाता , या कुछ खट्टी-चटपटी ।
पिज्जा भी अच्छा लगता है व हो भुनी हुयी लइया ;
मन की बात कहा करती हैं , हमें चाहिये छोटा भैया ।
पढ़ना-लिखना बहुत पसंद है , पुस्तक लेकर आती हैं ;
बाबा-दादी से जिद कर-करके, पोयम-स्टोरी सुनती हैं ।
बहुत सी पोयम याद कर रखी , संग-संग दोहराती हैं ;
फिर पुस्तक से खेला करतीं, चीड़-फाड़ कर देती हैं ।
तब मम्मा बाबा से कहकर , पुस्तक को जुड़वाती हैं ;
मनोयोग से मिष्ठी देखें , गोद में बैठी रहती हैं ।
बाबा पुस्तक को चिपकाते , सेलो-टेप से जोड़ा करते ;
इसी तरह से हम सबके दिन, बहुत मजे में कटते रहते ।
बच्चा – पार्क हैं कई यहां पर , बाबा के संग जाती हैं ;
सबसे प्रिय है झूला झूलना , स्लाइड भी मन भाती है ।
सी-सॉ भी अच्छा लगता है , मंकी-बार भी करती है ;
मंकी-बार का राड पकड़कर , मजे में लटका करती है ।
बाबा सतर्क खड़े रहते हैं , गिरते ही लपका करते ;
इसी तरह मिष्ठी के संग-संग , बाबा खेल किया करते ।
घर के पास मॉल स्थित है , वहां पे जाना अच्छा लगता ;
इतनी खुश होती हैं वहां पर,जाने कितना अच्छा लगता।
घर के पास ही क्लब हाउस है , सामने स्विमिंग पूल है ;
वहां घूमना बहुत पसंद है , मन में खिलते फूल हैं ।
पहले तो पैदल चलती हैं , फिर गोदी चढ़ जाती हैं ;
फोन किया करते तब बाबा , बच्चा-गाड़ी आ जाती है ।
गाड़ी लेकर नैनी आती है , मिष्ठी झट से चढ़ जाती है ;
और मजे से घूमा करती , सांझ हुये घर आती है ।
बाबा की पक्की दोस्त है मिष्ठी,तरह-तरह खेला करती है ;
योगासन जब बाबा करते , पीठ में बैठा करती है ।
हैप्पी-बर्थडे बहुत पसंद है , सबके केक ये काटा करती ;
बाद में बाबा से जिद करके , उसके वीडियो देखा करती ।
इसी तरह से बाबा के दिन , मिष्ठी के संग मजे से कटते ;
एक बरस यूँ बीत गया है , मिष्ठी के संग हंसते-खेलते ।
लगता जैसे साथ पुराना , पिछले जनम का नाता है ;
ईश्वर का स्वप्न इसी को कहते , माया से भासा करता है ।
रचयिता : मिष्ठी के बाबा (ब्रजेश सिंह सेंगर)