कवि गौरव चौहान। कैसी नीति,दृष्टि है कैसी,कैसा कुटिल इरादा है,
क्यो शासन सम्मेद शिखर के शोषण पर आमादा है,
वह पावन सम्मेद शिखर जो मोक्ष ज्ञान की थाती है,
जो हर जैनी के जीवन की चिर आलोकित बाती है,
वह पावन सम्मेद शिखर जो,जैन धर्म की गाथा है,
जिसका शिखर,तत्व दर्शन का तेज प्रतापी माथा है,
वह पावन सम्मेद शिखर जो आभा से निष्कामी है,
त्याग साधना तप की चोटी,आत्मज्ञान सदनामी है,
वह पावन सम्मेद शिखर जो पार्श्वनाथ की छाया है,
बीस तीर्थंकर का जिसमे महा निर्वाण समाया है,
उसी शिखर की मर्यादा का मान घटाने निकले हो,
तीर्थ भूमि को पिकनिक का स्थान बनाने निकले हो,
सन्यासी परिवेश तुम्हे क्या भोग विलासी करना है?
तीरथ को टूरिज़्म बनाकर सत्यानाशी करना है?
तुलसी के गमले में तुमको मनी प्लांट लगवाने है?
मन को शांति जहां मिलती हों, वहां शोर करवाने हैं?
तीरथ को पर्यटन बनाकर कैसे गुल खिलवाने है?
जहां मोक्ष का तत्व वहां पर हनीमून करवाने है?
लेकर आड़ पर्यटन की क्या भोगी तुम्हे बुलाने हैं,
मुनियों के चिन्हों के ऊपर डिस्को बार खुलाने है,
ये कुत्सित उन्नति के प्याले औऱ कहीं तुम भर लेते,
ऐसा करने से पहले शर्म ज़रा सी कर लेते,
जो समाज भारत को ऊंची अर्थवयवस्था देता हो,
जो भारत का सबसे बढ़कर इनकम टैक्स प्रणेता हो,
वो समाज ही मिला तुम्हे अंदर तक ज़ख्मी करने को,
पुण्य कमंडल छीन रहे हो,कीचड़ का जल भरने को,
ओ दिल्ली के तानाशाहों,नही कुठाराघात करो,
जिसने तुमको ताकत दी,उस पर ही मत आघात करो,
शासन को यूं मनमानी में मस्त नही होने देंगे,
हम सम्मेद शिखर का सूरज अस्त नही होने देंगे,
कवि गौरव चौहान कहे,यह नीति सरासर काली है,
इसीलिए हमने शब्दो की ये तलवार उठा ली है,
चेतावनी हमारी सुन लो,इस निर्णय को शुद्ध करो,
निर्मल और अहिंसक मन को साज़िश से मत क्रुद्ध करो,
अय्याशी के दौर न होंगे,पार्श्वनाथ की कक्षा में,
हर हिन्दू है खड़ा यहां सम्मेद शिखर की रक्षा में,
कवि गौरव चौहान (कृपया कविता को बिना कांट छांट,एडिट किये,शेयर और फारवर्ड करे।रचनाकार का नाम न हटाएं)