एक कविता छोटी सी
एक ग्रंथ का काम करेगी ,
सही राह मानव को देगी
सबको लक्ष्य प्रदान करेगी ।
लोभ लालच भय भ्रष्टाचार
यही बढ़ाते अत्याचार ,
आदर्श व्यवस्था यही तोड़ते
नष्ट कर दिया सदाचार ।
धर्म – सनातन जीवन- दर्शन
मानव परम – लक्ष्य पाता है ,
जन्म-मृत्यु का चक्र तोड़कर
जीवन सफल बनाता है ।
बदनसीब है ऐसा मानव
धर्म – सनातन न पाया ,
जीवन उसका पशुवत जानो
मानव जीवन व्यर्थ गंवाया ।
सबसे गिरे हुये हैं नेता
विश्वासघात जो करते हैं ,
धर्म की कुछ भी समझ नहीं है
बातें मजहब की करते हैं ।
नहीं जानते मजहब क्या है
धर्म तो दूर की कौड़ी है ,
चरित्रहीनता इनपर हावी
शपथ जो खायी तोड़ी है ।
भोग- विलास में फंसे हुये हैं
पशुवत जीवन है उनका,
मंदिर को तुड़वाने वाले
किया कलंकित जीवन अपना ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”