भारतवासी याद करें , धृतराष्ट्र के कुशासन को ;
खुद भी डूबा वंश भी डूबा, आग लगा दी शासन को ।
धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था,पर आज अक्ल के अंधे हैं ;
राष्ट्रधर्म की अनदेखी कर, वोट – बैंक के धंधे हैं ।
तुष्टीकरण की यहीवजह है, अल्पसंख्यकवाद बढाते हैं;
गुंडों को हर तरह छूट है , राष्ट्रभक्त मरवाते हैं ।
आरक्षण की महिमा न्यारी , गधे पंजीरी खाते हैं ;
योग्यता की कदर नहीं है ,नालायक छा जाते हैं ।
इन्हें राष्ट्र से कोई ना मतलब ,बच्चे विदेश में पढ़ते हैं ;
जब भी राष्ट्र में संकट होता , ये विदेश भग जाते हैं ।
बाहर इनका ठौर ठिकाना , स्विट्जरलैंड में पैसा है ;
दोनों हाथों देश को लूटा , तभी तो भारत ऐसा है ।
जैसा नेता वैसी जनता , अंधा नेता अंधी जनता ;
भ्रष्टाचार आंखों पर छाया, सही राह पर कोई न चलता।
इसीलिए सब ठोकर खाते , जैसा करते वैसा भरते ;
गुंडों को पूरा मौका है , भले लोग हैं इसी से मरते ।
भले लोग सब मिलकर बैठें, राष्ट्र का अब कल्याण करें ;
अच्छा शासन देश में लाकर ,सबका ही कल्याण करें ।
सबसे अच्छा धर्मका शासन,चाणक्य विदुर की नीति हो;
जनता नेता धर्मपरायण , कोई भी न कुरीति हो ।
भ्रष्टाचार कहीं न होगा , आरक्षण भी मिट जायेगा ;
हिंदू -राष्ट्र बनेगा भारत , राम -राज्य आ जायेगा ।
“वंदे मातरम- जय हिंद”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”