हिंदू हरदम अन्याय ही सहता ,पर चुपचाप ही रहता है ;
हजार बरस की यही कहानी,हिंदू अनवरत ही मरता है ।
जब हिंदू प्रतिकार है करता , नेता चुप करवा देता है ;
क्या है इनके डीएनए में, मोहन भागवत बतला देता है ।
हिंदू – नेता यही चाहते , समूल- नाश हिंदू हो जाये ;
फिर वे किस पर राज करेंगे ? कोई इसका भेद बताये ?
बहुत जरूरी भेद जानना , तब ही हिंदू बच पायेगा ;
वरना हिंदू सोता रहेगा और कभी न जग पायेगा ।
जितने भी विद्वान हैं हिंदू , उनसे ये ही कहना है ;
फौरन ये गुत्थी सुलझायें , क्योंकि जिंदा रहना है ।
हिंदू नेता बड़ा अजब है , हरदम गजब ही करता है ;
एक राक्षस जो मर जाये , बुक्का फाड़ा करता है ।
कितने कत्लेआम हो रहे , जिसमें हिंदू मरता है ;
हिंदू-नेता बड़ा सेक्युलर , हरदम चुप ही रहता है ।
इनके खून में कितना पानी ? या फिर सारा पानी है ;
धिम्मी इनकी कौम निकम्मी , जो शैतान की नानी है ।
छुपे हुए रुस्तम हैं सारे , राष्ट्र को धोखा देते हैं ;
हिंदू को धोखा देने को , राम की कसमें खाते हैं ।
भोला हिंदू जाल में फंसता , तड़प- तड़प मर जाता है ;
सारा धिम्मी – हिंदू – नेता , गुंडों से जूते खाता है ।
सदियों की आदत है इनकी , गुंडों से जूते खाने की ;
पता नहीं ये कब सुधरेंगे ? वो नौबत कब आने की ?
लगता है ये न सुधरेंगे , अब सबको बर्खास्त करो ;
अंतिम मालिक जनता होती, अब न इन्हे बर्दाश्त करो ।
बहुत सह चुका हिंदू अब तक ,अब कतई न सहना है ;
चरित्र का पक्का, वीर साहसी,हिंदू-नेता को चुनना है ।
ऐसा नेता अवश्य मिलेगा , उसे ढूंढकर लाना है ;
दृढ़ निश्चय हिंदू कर लेगा , ऐसे नेता को पाना है ।
नेता ढूंढो लंगोट का पक्का , इधर-उधर न मुंह मारे ;
या फिर हो पक्का सन्यासी, गुंडों को खुलकर मारे ।
दिशा मिल चुकी है हिंदू को , अब तो दशा सुधरनी है ;
धिम्मी की पहचान हो चुकी , अब न दशा बिगड़नी है ।
सन्यासी की अगुवाई में , हिंदू – राष्ट्र बनाना है ;
सारे संकट दूर हटाकर ; रामराज्य को लाना है ।
“वंदेमातरम- जयहिंद”
रचयिता: ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”