दिशा सुशांत प्रतीक है उस बलि के जो भ्रष्टाचार की बेदी पर चढ़ाई गई ,
यह प्रतिनिधि है आगे बढ़ने की चाह वाले ,देश के हर नौजवानों के ;
जिन्हें अपराधी राजनीति व आतंकवाद का गठजोड़ जिंदा निगल गया ,
यह उन लाखों करोड़ों मासूमों की ख्वाहिशें हैं ,जिन्हें गुंडे कातिल माफिया ने पैरों तले रौंद दिया ,;
यह उस आजादी के भुक्तभोगी है ,जो गुलामी से भी बदतर है ,
जहां किसी की जान की कोई कीमत नहीं, किसी नारी की इज्जत सुरक्षित नहीं ;
जहां देश भक्ति पर गद्दारी हावी है, अंजाम बिल्कुल अच्छा नहीं है जो अवश्यंभावी है ,
अब तो जनता को ही आगे आना होगा ,बुझते हुए चिरागों को जलाना होगा ;
एक से दूसरा फिर तीसरा ,सारे दिये जलाओ ,जिसकी लौ में हर तरह का भ्रष्टाचार मिटाओ ,
ऐसा करना अनिवार्य है वरना तुम सब खुद मिट जाओगे एक एक करके सारे मारे जाओगे ;
चुपचाप हार मत मानो ,मरते दम तक जीतने का हर संभव/ असंभव प्रयास करो,
अब तो हर स्थिति में सब के सब यह ठान लो कि या तो करो या मरो l
रचयिता :बृजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”