आप सबमें जिसने भी गांधी को ठीक से पढ़ा है, उसने गौर किया होगा कि गांधी ने बड़ी चतुराई से महाभारत को काल्पनिक कह उससे गीता निकाल लिया, और राम-रावण युद्ध को काल्पनिक कह उससे प्रक्षेपित उत्तर कांड से राम-राज्य निकाल लिया। गीता को भी उन्होंने अपनी व्याख्या दे दी।
गांधी ने बड़ी सोच-समझ कर रामायण और महाभारत की वीर गाथा से हिंदुओं को विमुख करने का प्रयास किया, ताकि नपुंसक अहिंसा की फांस इस समाज पर डालने में उन्हें मदद मिले। वह जानते थे कि राम-कृष्ण का विरोध करके नहीं, उनके अहिंसक स्वरूप को सामने रखकर वह हिंदुओं को कर्त्तव्य विमुख कर सकेंगे। अंग्रेजी राज और मुस्लिम सांप्रदायिकता को बचाने के लिए ‘हिंदू नपुंसकता‘ को अति के आसमान में ले जाना जरूरी था।
गांधी मिलावट में माहिर थे। उदाहरण के लिए ‘रघुपति राघव राजा राम’ भजन को तोड़-मरोड़ कर उसमें ईश्वर-अल्ला तेरो नाम का प्रक्षेप कर दिया। नरसिंह मेहता जी का ‘वैष्णव जन’ को ऐसे पेश किया जैसे यह उनका लिखा भजन हो!
मैं जैसे-जैसे गांधी को पढ़ता जा रहा हूं, मुझे उनका मनोविज्ञान बहुत अच्छे से समझ में आ रहा है! गांधी का कोई भी कदम अनायास नहीं था, बल्कि बड़ी-सोच समझ कर बढ़ाया गया था।
संदीपदेव
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